बेटी

बेटी की व्यथा

Originally published in hi
Reactions 0
1352
Pragati gupta
Pragati gupta 21 Dec, 2019 | 1 min read

नन्ही सी चिडिय़ा बैठ आंगन की डाल पर

गुनगुनांए एक गीत की मधुर बेला रे

आने दे उस मासूम को अपनें अंगना रे

सुनरे सखियां ,प्यारी कलिया को न मुर्झा रे

देख तो लें उसके नन्हे कपोल की अलबेला रे

कैसी है वो ,जो पलें नौ महीने मां तेरी कोख में

न कर जुल्म रहने दें उसे अपने अस्तित्व में 

ढेंरो खुशियां वो तुझ पर उलटाएंगी 

जब बगिया मे तेरे वो तुझे मां मां पुकारेगीं

तेरा मान सम्मान बढ़ा वो

 तुझे  ममतित्व का एहसास दिलांएगी

यूं ही नहीं वो बेटी तेरे आंगन की कहलाएगी ।

दे गुजर उसे अपने आंचल की छांव मे

करना देखभाल सदा उसकी ,

न बनन ढ़ाल उसकी ,बनाना उसे पहचान खुद की

देना सुझाव सही गलत का 

,रखना उसे बना देवी इंसाफ की

देना शिक्षा एक नए आवरण की

प्रकृति शील नारित्व की ।


0 likes

Published By

Pragati gupta

pragati

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.