देखा जब बेटी को कोख मे मरते
पूछा मैनें वालिद से उसके
क्या खता है उसकी जो ये सजा दी
जीने से पहले उसकी दुनिया खत्म कर दी
कुछ ऐसा जबाब मुझे मिला
सुनके जबाब मेरा सिर घूमा
हकीकत कही उस पिता ने अपनी जुबां से
कैसे मारा अपने अंश को पूछो मुझसे
बेटे की चाह मे न मारा उसको
कैसे देखूंगा उसे तड़पते इस जग मे
इसलिए मौत का तोहफ़ा दे डाला उसको
कब तक मैं उसकी रक्षा करूंगा
देखते उसे लूटते मैं हर पल मरूगा
अपने ही आंगन उसकी किलकारी चिल्लात में बदले
इससे बेहतर है उसे मारकर ही हम हंस ले
लूटेगी वो हर कदम पर छेड़ी जाएगी वो हर पथ पर
कैसे देखू मैं ये हालात उसकी
बेहतर हैं मौत ही जिदंगी हो उसकी
क्या खूब उस पिता ने कहा
सुनकर सच ये दिल रोया
गलत कहते हैं लोग कि बेटे की चाह मे मारते है बेटियाँ
सच तो ये हैं, न बेमौत मारी जाए उनकी गुडियां
इसलिए कोख मे ही मार देते हैं अपनी परियां
Pragati Gupta
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