"अजय तुम पागल हो गए हो क्या ?क्या करने जा रहे हो ये तुम ?"
"मां इसमें हर्ज ही क्या है?"
" हर्ज क्या हैं ?पागल तो नहीं हो गये हौ। ना तुम? वह औरत विधवा है "।
"हां तो कहां लिखा है कि विधवा से प्यार करना गुनाह होता है "।
"देखो अजय में कह चुकी तो कह चुकी मैं उसको अपने घर की बहू नहीं बनाऊंगी किसी भी कीमत पर नहीं "।
"तो मां आप भी सुन लो मैं भी शादी नहीं करूंगा किसी और से अब या तो आप अपने बेटे को जिंदगी भर कुँहारा देखो या फिर अपने बेटे की खुशी के लिए उसकी शादी उसी से कर दो जिससे वह कह रहा है ।"
"ये क्या कह रहो हो तुम बेटा तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते ?"
"मां तुम क्यों नहीं समझती "
" बेटा पर वो"
"मां आपको याद है जब पिताजी हमें छोड़ कर देते तो मैं सिर्फ 4 साल का था और जब से 4 साल के लिए हुए आपने मुझे अकेले पाला क्या-क्या नहीं किया आपने मुझे पढ़ाने लिखाने के लिए और आज आपके आशीर्वाद और भगवान की कृपा से मैं पढ लिखकर एक अच्छा और बड़ा आदमी बन गया। आज हमारे पास सब हैं और आप तो जानती हो ना अपने पापा के बिना ये साल कैसे गुजारें होंगे तो क्या आप चाहती हैं जो अकेलापन और तनहाई आपने देखी वह कोई और भी देखें अगर । आपकी वजह से किसी को खुशियां नसीब हो आपको पीछे नहीं हटना चाहिए"।
ये शब्द किसी और के लिए शायद कुछ न था पर एक विधवा के लिए इन शब्दों की एहमियत बहुत थी ।दोस्तों प्यार शक्ल ,सूरत और सुंदरता से नहीं होता ।ये तो बस हो जाता हैं कभी भी कहीं भी।
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