नर्म सी प्यारी सी व़ो सुबह की चाय सबसे न्यारी सी
पीते जिसे इस दिल को बड़ा चैन मिलता
सुबह जिससे मेरी जिससे मेरा दिन ढ़लता
कड़क सी वो थोड़ी सी सुस्ती सारी भगा जाती
वो सुबह की गरम चाय सपने कितने दिखा जातीं
फीकी जरा भी हो तो दुनिया अधूरी लगतीं
जितनी मिठास भरो इसमें दुनिया उतनी मीठी लगतीं।
हल्की सी हो जरा तो ख्वाहिश मे पलट जातीं
ये चाय मेरी जिंदगी बदल जातीं …
आलस्य जो ये दूर भगातीं
सुबह उठते ही मुझे इसकी तलब़ सताती
मिट जाती सारी थकान इसके एक घूंट से
सारी नींद, सारे दर्द ये उड़ा ले जातीं ।
जितनी दफ़ा इससे रूबारू हूं उतनी प्यास ये बढ़ा जाती
ये सुबह की चाय उम्मीदें कितनी जगा जाती
न मिलें जो ये एक दफ़ा , त़ो आबरु मेरी भी मुझसे सवाल उठातीं
कहाँ गई वो तेरी सबसे प्यारी सहेली ।…तेरी जो तुझे. इतना सता जातीं ।
चाय क्यों तुझे इतना सता जातीं ।
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