"कब से कॉल कर रही हूँ , कहां हो ?"
"अरे यही तो.हूँ क्यों परेशान हो रही हो ? क्या बात है?"
" मुझे तुमसे अभी मिलना है"।
" अभी इस वक्त ?"
" हां मुझसे मिलने पार्क में आओ "।
" अभी इस समय ऐसी क्या बात हो गई ?"
" पहले आओ फिर बताऊंगी "। इतना कहकर माधुरी फोन काट के पार्क में निकल जाती है ।इधर माधुरी की बात सुनकर नितेश भी पार्क में निकल जाता है । पार्क मे माधुरी को देख कर मुस्कुराता है और बोलता हैं :-"पगली क्यों इतनी रात को बुलाया हैं?"।
इस पर माधुरी ने आंखों में आंसू भरते हुए अपने बाएं हाथ की मध्य उंगली नितिन की तरफ बढ़ाते हुए कहा :-" लो देख लो हो गई मैं किसी और की "। इतना सुनते नितेश चौक जाता हैऔर बोलता हैं -:" कैसी बातें कर रही हो?"
" क्यों यकीन नहीं हो रहा क्या? यह देखो सगाई की अंगूठी आज को पक्की कर कर गए हैं वो शादी मेरी ।अब कुछ दिन बाद शादी और फिर मैं किसी और की रहो तुम अपनी झूठी शान में खुशकब से कह रही थी तुमसे कि घर पर बात कर लो पर तुमने मेरी कभी नहीं सुनी क्योंकि तुम कभी मुझे अपना बनाना ही नहीं चाहते थे "।
"ऐसा नहीं है माधुरी मेरी बात तो सुनो"।
" सुनने के लिए कुछ औरछोडा ही कहा हैं आपने "। इतना कह कर माधूरी तो वहां से चली जाती पर नितेश वही खडा खडा सोचता है छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा मैं मानता हूं मैं गलत था पर मैं। माधूरी उतना ही प्यार करता हूं जितना मैं अपनी मां से करता हूं मैंने कभी किसी और की तरफ देखा भी नहीं ।गलती तो मेरी किस्मत की थी कि मेरी नौकरी ना लग पाई और वो किसी और की हो गई ।इतना सोचकर नितेश भी अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाता हैं ।
दोस्तों आज भी ऐसी कहीं प्रेम कहानियाँ होती हैं तो नौकरी न होने के कारण अधूरी रह जाती हैं ।
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