निशि डाक- 7

निष्ठा और निशिथ का गोपन प्रेम क्या छुपा रह पाता है?

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 02 Aug, 2021 | 1 min read
#tramdepo

इसके बाद निष्ठा और निशीथ रोज रात को मिलने लगे। हर रोज़ रात के बारह बजे के बाद निष्ठा निशीथ के पास आती और गिर्जा की घड़ी जब चार बार घंटी बजा देती तो वह लौट जाया करती थी।

नित्य का यही क्रम चलता रहा ,,,यही कोई अगले छह- आठ महीने तक!

अब निशीथ निष्ठा के प्रेम में पूरी तरह से पागल हो गया था। वैसे ' पागल' कहने से उसकी स्थिति का शायद सही आकलन आप पाठकगण न कर पाए, सो कहना यह चाहिए कि वह" उन्माद " हो चुका था और उन्मत्त हरकतों पर उतर आया था!

निशीथ कभी- कभी अकेले में हँस पड़ता था, तो कभी वह अपने आस पास तितलियों को उड़ते हुए देखता था! कभी वह कुछ न करता था और शांत भाव से बिस्तर पर लेटे- लेटे छत की सीलिंग को ताका करता था!

काॅलेज जाना तो लगभग उसने छोड़ ही दिया था। और जाता भी कैसे? पूरी रात जगने के बाद सुबह उठ पाना उसके लिए असंभव था! अपने इलाके के लोगों से भी मिलना- जुलना उसने छोड़ दिया था! बिना प्रयोजन वह आजकल कमरे से बाहर नहीं निकलता था! रात के समय की बात अलबत्ता कुछ अलग थी!

काॅलेज के प्रोफेसर और उसके सहपाठी भी अब उसका चेहरा भूलने लगे थे। केवल उसका एक मात्र दोस्त गैबरियल ही ऐसा था जिसे उसकी भले- बुरी की फिक्र थी।

वही उसकी खबर लेने उसके घर आ जाया करता था। परंतु वह जब भी आता, दोपहर के बाद ही आ पाता था, क्योंकि ग्रैबरियल को काॅलेज भी जाने होते थे,,,, और तब तक निशीथ अपनी स्वाभाविक अवस्था में आ चुका होता था।

वह ग्रैबरियल के घर आने पर उसे खिलाता- पिलाता, और उसके साथ हँसी मज़ाक करता था।

लेकिन ग्रैबरियल के लाख पूछने पर भी वह निष्ठा के बारे में उसे कुछ नहीं बताता था। निष्ठा ने उससे एक प्रकार का वादा लिया था कि निशीथ निष्ठा से अपनी प्रेम की कहानी पूरी दुनिया से छिपाकर रखेगा!

हाँ निष्ठा ने इसकी एक वजह भी बताई तो थी, कि अगर उसके घरवालों को इस बात की भनक लग जाएगी तो वे कभी उसे निशीथ से मिलने नहीं देंगे क्योंकि वे प्रेम- संबंधों के सख्त खिलाफ हैं!

निशीथ भला इतना बड़ा जोखिम कैसे मोल लेता? अब तो निष्ठा से मिले बगैर वह एक दिन भी नहीं रह सकता था!

निशीथ ने निष्ठा से कई बार आग्रह किया था कि वह दिन के समय उससे मिलने आया करे, ताकि वह सुबह काॅलेज जा सके, परंतु निष्ठा की एक ही रट थी,,,,

" घरवालों के सो जाने के बाद ही चुपके से घर से निकलकर तुमसे मिलने आ पाती हूँ। वे जान जाएंगे तो कभी न आने देंगे!"

बात में दम तो था! इसके बाद निशीथ ने उसे कहना छोड़ दिया था!

अब निष्ठा और निशीथ रात को बाहर भी जाने लगे थे,, कभी वे सामने वाले पार्क में जाकर बैठते थे, तो किसी दिन खुले मैदान में, दूसरे दिन दोनों एक दूजे का हाथ पकड़कर सूनसान सड़कों पर निकल जाया करते थे! रात की कलकत्ता नगरी इतनी खूबसूरत और मायावी लगती है, यह निशीथ को कभी पहले मालूम न था!

एक दिन निष्ठा उसे नोनापुकूर ट्राम डिपो पर लेकर गई। निशीथ यद्यपि कई महीनों से कलकत्ता रह रहा था परंतु अब तक उसने ट्राम की सवारी न करी थी।

रात के बारह बजने के कुछ बाद वे दोनों वहाँ पर पहुँचे थे। तब तक दिन की आखिरी ट्राम निकल चुकी थी, परंतु उन लोगों की किस्मत अच्छी थी।

थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि एक खाली ट्राम कहीं जा रही है,,, शायद अपने डिपो पर लौट रही थी। और वे दोनों मंथर गति से चलने वाले उस ट्राम पर कूदकर चढ़ गए!

इसके दोनों फर्स्ट क्लास में पास- पास की सीट पर बैठ गए थे। निशीथ को अब निष्ठा के शरीर की गर्माहट महसूस होने लगी थी। धीरे- धीरे उसके लहू में डोपामिन की मात्रा के बढ़ने से उत्तेजना बढ़ने लगी थी!

वह शरीर पर से अपना नियंत्रण खोने लगा था! धीरे- धीरे निष्ठा के होंठ निशीथ के करीब आते चले गए! इसके बाद दोनों एक- दूसरे में खो गए! वक्त का कुछ पता ही न चल पाया उन दोनों को। निशीथ धीरे- धीरे अपना होश खोता चला गया!

उस रात को निशीथ घर कैसे आया यह वह अगले दिन याद न कर पाया! शायद निष्ठा ही उसे घर पर छोड़ गई थी। उस लड़की को इस शहर का चप्पा- चप्पा मालूम है!!

अगले दिन दोपहर को वह मोहाविष्ट सा बिस्तर से उठा और यंत्रचालित सा सारा काम निपटाने लग गया!

एक दिन निशीथ का मौसेरा भाई गाँव से उसके पास रहने को आया!

और उसके अगले दो दिन तक निष्ठा उससे मिलने न आई! पता नहीं निष्ठा कैसे सब जान जाती है? शायद वह इस घर पर दूर से नज़र रखी हुई है। इसलिए निशीथ की एक- एक बात की वह खबर रखा करती है!

पर तीसरे दिन निशीथ की बेचैनी फिर बढ़ने लगी। जैसे ही रात को राना सो गया निशीथ चुपके से बरामदे के रास्ते से खिसक गया और आकर पार्क की एक बेंच पर बैठ गया!

थोड़ी देर बाद उसे किसी के ज़ोर से दीर्घ- श्वास छोड़ने की आवाज़ सुनाई दी! निशीथ ने बढ़कर देखा तो निष्ठा एक दूसरी बेंच पर सिर पर हाथ धरे बैठी थी!

" अरे निष्ठा,,, तुम यहाँ? घर क्यों नहीं आई?" निशीथ उसे पहचान कर तुरंत उसके पास जाकर बोला!

निशीथ की ओर मुँह फेर कर निष्ठा बोली--

" निशीथ,,,मैं तुम्हारे कमरे तक जा- जाकर लौट आती थी रोज़! तुम्हारा भाई आया हैं न? सो मैंने सोचा कि तुम व्यस्त होंगे,,,इसलिए तुम्हें बुला नहीं पाई,, यहाँ आकर बैठी रही,,, इस उम्मीद से कि शायद तुम कभी बाहर आओगे!"

निष्ठा के इस एकनिष्ठ प्रेम पर निशीथ का दिल भर आया। यह लड़की उसे इतना चाहती है कि उसके लिए सारी- सारी रात वह अकेली इस सूनसान पार्क में बैठी रही!

इतना सोचकर निशीथ बहुत भावुक हो उठा और निष्ठा को अपनी बाहों में भर लिया। फिर निशीथ ने निष्ठा के मुखड़े पर चुम्मियों की बरसात करनी आरंभ कर दी!!

अगले दिन निशीथ ने उल्टा- पुल्टा कहकर अपने भाई, राना को गाँव वापस भिजवा दिया। राना को यह सब बड़ा अजीब लगा। वह तो कुछ दिनों के लिए कलकत्ता शहर में रहने आया था। उसकी हाईस्कूल की इम्तिहान समाप्त हो गई थी तो वह मस्ती करने के उद्देश्य से कलकत्ता घूमने आया था।

इतनी जल्दी वापस जाने को वह तैयार न था। पर दूसरा कोई उपाय भी न था अब उसके पास!

राना ने गाँव वापस जाते ही निशीथ के माताजी को जाकर सब कुछ बता दिया कि निशीथ कैसे आज कल बड़ी अजीब हरकतें करता हैं! निशीथ की माताजी ने धैर्यपूर्वक एक- एक कर सारी बातें राना से सुनी! फिर वे कुछ न बोली। किसी गहरी सोच में डूब गई!

इधर निशीथ ने हालाँकि ग्रैबरियल से निष्ठा के बारे में कुछ न कहा था, परंतु तब भी ग्रैबरियल को निशीथ पर शक हो गया था। निशीथ को इस समय देख कर कोई भी यह कह सकता था कि उसकी हालत स्वाभाविक मनुष्य जैसी नहीं है। सो ग्रैबरियल ने तहकीकात करने की सोची।

इधर काॅलेज की वार्षिक परीक्षा नज़दीक आने लगी थी। इस तरह कुछ दिन और चलता रहा तो निशीथ के लिए पास करना मुश्किल था। सारे प्रोफेसर उससे नाराज़ थे!

आस पास पूछकर ग्रैबरियल को कोई खास जानकारी हासिल न हुई।

निशीथ जब से इस इलाके में रहने आया था तब से उसने किसी से मेलजोल न बनाई थी। वह अपने आप में मगन रहने वाला जीव था। अतः इस इलाके में उसका कोई ऐसा दोस्त न था जिसे उसके बारे में ठीक- ठाक पता हो!! पड़ोसी भी उसे कम ही देख पाते थे क्योंकि पहले ही कहा जा चुका है कि निशीथ घर से बहुत कम निकलता था।

और निष्ठा के साथ जब भी वह बाहर जाता था तब तक आधी रात बीत चुकी होती थी। उस समय निशीथ का पूरा इलाका नींद की आगोश में हुआ करता था। सो, कोई भी उसे बाहर निकलते हुए न देख पाता था!

ग्रैबरियल ने इस घर की कुछ बदनामी पहले भी सुन रखी थी, तभी वह निशीथ को यह कमरा लेने से मना कर रहा था। परंतु वह निश्चित रूप से इस बारे में कुछ नहीं जानता था। लेकिन उसका मन कहता था कि उसका दोस्त जरूर किसी बड़ी मुसीबत में है।

सो उसने अपनी जासूसी जारी रखी।

दिन के समय निशीथ बिलकुल स्वाभाविक रहता था। सो ग्रैबरियल ने सोचा कि हो न हो रात को ही जरूर कुछ बात होती होगी! उसने दो- तीन रात तक निशीथ के घर के बाहर पहरेदारी करनी शुरु कर दी।

पहले चार दिन तक तो ग्रैबरियल को कुछ भी अस्वाभाविक वहाँ न दिखाई दिया।

केवल मच्छरों की टोली ने उसका हाल खराब कर रखा था। उन्होंने काट- काट कर गोरे ग्रैबरियल को लाल टमाटर की तरह बना दिया था!

पाँचवे रात को उसे निशीथ के कमरे में से किसी लड़की की हँसी की आवाज़ सुनाई दी।

ग्रैबरियल निशीथ के खिड़की के बाहर खिसक आया और दम साधे खड़ा हो गया!

इसके कुछ ही देर बाद उसने निशीथ और निष्ठा को एक दूजे का हाथ पकड़कर कहीं जाते हुए देखा!

अब ग्रैबरियल को सारा माजरा समझ में आ गया था!

--क्रमशः--'


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