नवनीता देवसेन कर्कट रोग से जूझती हुई आखिरकार मृत्यु से हार गई, बंगाल की प्रसिद्ध कवयित्री, साहित्यकार, जादवपुर विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य की प्रोफेसर रह चुकी नवनीता देवसेन। मृत्यु के समय ये आयु 81 वर्ष की थी।
पिता आचार्य नरेन्द्र देव और सुविख्यात कवयित्री राधारानी देवी की इकलौती संतान, उनकी प्यारी "खुकु" थीं वे। साहित्य अकादमी और पद्मश्री और कमलकुमारी से सम्मानित नवनीता जी अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डाॅ अमर्त्य सेन की भूतपूर्व पत्नी रह चुकी हैं। उन दोनों की दो बेटियाॅ भी है-- अंतरा और नंदना।
नंदना देव सेन अभिनेत्री हैं जिनकी अभिनय प्रतिभा को "ब्लैक "और "रंगरसिया"जैसी फिल्मों में अभिनय के हेतु काफी सराहना मिली हैं। ये आजकल अमरीका में रहती हैं।
बड़ी बेटी अंतरा देवसेन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहती हैं। इनका खुद का एक पब्लिशिंग हाउस था और कुछ समय के लिए इन्होंने एक लिटल मैगजीन भी निकाला है। नवनीता देवसेन का जन्म 13 जनवरी 1938 को कलकत्ता में हुआ था। कहते हैं कि इनके जन्म के समय बंगला के सुप्रसिद्ध कथाकार शरत् चंद्र चट्टोपाध्याय अपनी मृत्यु शय्या पर थे और वहीं से उन्होंने इनके लिए नाम रखा था "अनुराधा", परंतु किसी कारणवश इनका अनुराधा नाम न रखा जा सका और आगे चलकर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ द्वारा सुझाया नाम "नवनीता" ही इनकी उज्ज्वल ख्याति की आधार बनी।
इनका जन्म कलकत्ता के हिन्दुस्तान पार्क स्थित "भालोबासा" में हुआ था। इनके माता-पिता ने अपने घर का नाम भालोबासा यानी कि प्यार रखा था , अर्थात् प्रेम ( भालोबासा) के मध्य इनका जन्म हुआ ! इनके माता और पिता दोनों ही बांगला भाषा के जाने माने कवि थे। इनकी माॅ राधारानी देवी एक असाधारण महिला थी। वे बाल्यविधवा थी परंतु बाद में उन्होंने नरेन्द्र देव से प्रेम-विवाह किया था। उनकी पहली संतान की अल्पायु में देहांत हो गया और फिर खुकु का जब जन्म हुआ तो उसे अत्यंत लाड़-प्यार एवं देख-रेख के साथ पाला गया।
इनकी माॅ एक अत्यंत तेजस्वी महिला थी। कहते हैं एकबार किसी आलोचक द्वारा उनकी रचना के बारे में यह कहे जाने पर कि ऐसी रचनाएं केवल महिलाएं ही लिख सकती हैं उन्होंने अपराजिता उपनाम से एक ऐसी सुंदर रचना लिखी कि पूरे साहित्य जगत् में वह चर्चा का विषय बन गया। अपनी शख्शीयत को छुपाने हेतु राधारानी जी ने वह पुस्तक स्वयं और अपने पति को समर्पण किया था!!फिर क्या था? किसी को पता ही नहीं चला पाया कि उस पुस्तक का असली लेखक कौन हैं?
नवनीता जी को भी ऐसा दबंग व्यक्तित्व और सेन्स ऑफ ह्यूमर अपनी माॅ से विरासत में मिली थी। नवनीता जी की शिक्षा- दीक्षा कुछ इस प्रकार हुई थी। कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी काॅलेज से स्नातक होने के उपरांत उन्हींने जादवपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात् उन्होंने हार्वार्ड विश्वविद्यालय से भी डिस्टिन्गशन्स के साथ स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की और इंडियाना विश्वविद्यालय से पी एच डी की।
बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से उन्होंने पोस्ट डाॅक भी किया है। वे दिल्ली स्थित यूजीसी की सिनियर फैलो भी रह चुकी हैं। सन् 2002 में वे जादवपुर विवि के अपने प्रोफेसर पद से सेवा निवृत्त हुई। सन् 1999 में उन्हें साहित्य अकादमी से नवाजा गया और सन् 2000 में उन्होंने पद्मश्री प्राप्त किया। उन्होने बांगला भाषा में अस्सी से भी ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित की है।
उनका पहला काव्य संग्रह -" प्रथम-प्रत्यय" सन् 1959 में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने, कविता, उपन्यास, लघु कथा, बाल साहित्य, लेख ,हास्य -व्यंग्य, यात्रा-वृत्तांत और पत्रकारिता समस्त विधाओं पर समान दक्षता के साथ अपनी लेखनी चलाई हैं। सन् 1959 में ही इनका विवाह शिक्षाविद् और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन से हुआ था परंतु 1976 में इनका तलाक भी हो गया। कहते हैं दोनों की पहली मुलाकात जादबपुर में पढ़ते समय हुआ था। नवनीता जब वहाॅ स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही थी तो अमर्त्य सेन वहाॅ पढ़ाते थे।
सुदर्शन , युवा और मेधावी अमर्त्य से उन्हें अनायास ही प्रेम हो गया था। तलाक के पश्चात् उन्होंने फिर कभी शादी नहीं की और वे आजीवन अपने नाम के साथ सेन पदवी का व्यवहार करती रहीं। डाॅ अमर्त्य सेन को कल्याण कारी अर्थशास्त्र हेतु 1998 में नाॅबेल पुस्कार से नवाजा गया था। नवनीता जी एक ऐसी शख्शीयत थी जिन्होंने जिन्दगी से कभी हार न मानना सीखा था। इसकी नींव शायद बचपन से माॅ-बाप ने ही डाल दिया था। शादी के बाद वे पति के साथ केम्ब्रीज में रही।
फिर तलाक हो जाने के बाद कुछ समय के लिए उन्होंने लंदन में टैक्सी भी चलाई है। फिर उन्हें जादबपुर विवि में पढ़ाने का ऑफर मिला तो अपनी दोनों बेटियों के साथ सिर्फ दो बैग लेकर कलकत्ता चली आई। फिर क्या था, उन्होंने अकेले ही अपनी बेटियों को पाल पोसकर बड़ा किया। काॅलेज में पढ़ाना और साहित्य साधना दोनों साथ-साथ चलता रहा। कहते हैं कि बच्चों को लोरियाॅ सुनाते-सुनाते उन्होंने अपना पहला गद्य साहित्य लिखा था।
शिशु-साहित्य पर भी इन्होंने खूब लिखा। एक और गंभीर भावपूर्ण कविताएं और लेख वहीं दूसरी ओर बच्चों के मनोरंजन हेतु लिखी गई राजकुमार राजकुमारी की कहानियाॅ उनकी बहुमुखी प्रतिभा का द्योतक है। मृत्यु से पहले उनका लिखा हुआ आखिरी लेख इस प्रकार है- " यह जो लोग मुझे नहीं जानते, फिर भी मुझे आखिरीबार मिलने के लिए दूर-दूर से आए हैं। क्या यह सही अर्थों में आखिरी मिलन है? मैंने जो इतनी लंबी जिन्दगी जी है उसका क्या? उस जिन्दगी का किसी न किसी रूप में अवसान तो होना ही है। इतनी जल्दी मेरी विदाई न होगी! दान-दक्षिणा, भोजन सबके उपरांत मेरी अंतिम यात्रा शुरु होगी।"
कर्कट रोग से जुझते हुए उन्होंने अपना अंतिम वाक्य कुछ इस प्रकार लिखा था--" काॅमअन फाइट" अर्थात" चलो लड़ते हैं।" 7नवंबर 2019 को सायंकाल में उनकी आत्मा इसके बाद परलोक की उस महायात्रा पर निकल पड़ी जहाॅ से लौटकर कोई न आया कभी!
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