" क्या तुम मुझसे शादी करोगी, माहिरा। प्लीज़! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। उस दिन जो कुछ भी हुआ था तुम्हारे साथ,,, तुम्हारी सारी बदनामी के पीछे ,,, कहीं न कहीं ,,,मैं ही जिम्मेदार हूँ। अगर मैं थोड़ी देर पहले वहाँ पहुँच जाता,,, तो शायद तुम्हें मार खाने से,,, जलील होने से बचा लेता!" प्लीज़ ,,, मुझे एक बार माफ कर दो! मैं अपनी जिन्दगी देकर भी तुम्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करूँगा!" आशीष घुटनों के बल माहिरा के सामने बैठा हुआ यह सब कह रहा था।
" अरे माहिरा!!हाँ बोल दे,,क्या सोच रही है। जल्दी कर!" भीड़ में से चिल्लाकर चीकू बोला।
" परंतु इसकी ,,, तो कोई गर्लफ्रेन्ड थी , न? वह तो इसके इंतज़ार में बैठी होगी? फिर एक औरत होकर,,, किसी दूसरी औरत के अरमानों के महल को कैसे ध्वस्त कर दूँ?" माहिरा धीरे से बोली।
आशीष मुस्कराया। आज उसको माहिरा पर अत्यंत गर्व हो रहा था। मुसीबत में पड़कर भी ,,ऐसी स्वार्थहीनता की बातें केवल उसकी माहिरा ही कर सकती थी!!
आज आशीष को आभास हो रहा था, उस अनंत अपरंपार
ईश्वर की लीला भी उसे थोड़ी- थोड़ी समझ में आ रही थी।
क्यों आशीष उस एक्सीडेन्ट में बच गया था? क्यों उसे बरसो से एक ऐसी लड़की की तलाश थी जिसे वह अपनी पत्नी बना सकें,,,, जिसके कारण वह अब तक कुँवारा था!कैसे उसे एलिज़ाबेथ के साथ रह कर भी वह सकुन नहीं मिलता था जैसे इस समय माहिरा के पास बैठकर हो रहा! वह एक- एक बिन्दुओं को जोड़ने लगा!
उसके इतने वर्षों बाद इस समय स्वदेश लौटना कोई महज संयोग नहीं था, परंतु नियति का खेल अवश्य था। वर्ना, वह आज यहाँ पर इस समय नहीं होता।
आशीष उठ खड़ा होता है और माहिरा से कहता है--
" उसका नाम एलिजाबेथ है। उसने राॅब में अपना जीवनसाथी चुन लिया है। थोड़ी देर पहले ही उसने अपनी शादी की खबर एसएमएस द्वारा दिया है। यह देखो।" इतना कहकर आशीष ने अपना मोबाइल माहिरा के हाथों में रख दिया।
" और यह देखो, माहिरा,,,, तुम्हारे सारे बर्थडे मेसैज्स---- जो तुम बिना भूले हर साल भेजती रही!!!तुम न चाहो तो मुझसे शादी मत करना। कोई जबरदस्ती नहीं है। तुम अपने जीवन का निर्णय लेने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र हो, जिसे चाहो अपने पति के रूप में अपना सकती हो। बस एक बार कह दो,,, अपने मुँह से कि तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करती हो,, जितना कि मैं!" कह कर आशीष ने एक छोटी सी मुस्कान बिखेर कर फिर आशाभरी निगाहों से वह माहिरा की ओर देखने लगा!
पर माहिरा ने अपनी निगाहें झुका ली थी। सहसा उससे कुछ भी कहते हुए न बना!
फिर कुछ देर चुप रह कर आशीष से वह बोली,
" आशीष,,, मुझे सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिए,,, क्या तुम इंतज़ार कर सकते हो?"
" आजीवन,,, जीवनभर इंतज़ार करूँगा तुम्हारा,,, माहिरा!"
कह कर आशीष विवाह मंडप से निकल कर घर जाने को हुआ।
तभी माहिरा दौड़ कर उसके पास आई और उसके हाथ में उसका मोबाइल वापस थमाकर बोली,
" आशीष, मुझे गलत मत समझना। मैं नहीं चाहती कि आज कि मेरी हालत पर तरस खाकर आवेश में आकर तुम या मैं कोई निर्णय ले लें। शादी ब्याह का निर्णय सोच- समझकर लिया जाना चाहिए!"
" ठीक है,,, सोच लो,,, जितना चाहो!" कह कर आशीष घर चला आया।
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आशीष के अब वापस जाने के दिन नज़दीक आ गए थे। लिज़ अपना घर बसाने दूसरे शहर जा चुकी थी। उसने संदेश भिजवाया था कि वह उसके घर की चाबी ऑफिस में किसी को दे आई है। अब आशीष को अपने घर और ऑफिस दोनों की ही चिंता सताने लगी थी। काफी समय हो गया है उसे इंडिया में ,,,, अब वापस चलना चाहिए। उसकी हाथ की हड्डी भी अब जुड़ चुकी थी!
वह अपनी जाने की तैयारियों में जुट गया। उसने सबसे पहले फ्लिपकार्ट से अपने लिए नए फोन का आर्डर दिया।
जब उसके जाने का सिर्फ एकदिन शेष रह गया तो उस दिन माहिरा के पिताजी उसके घर आए और देर तक आशीष के माता- पिता से बातें करने लगे।
अंत में आशीष की माँ दीपा ने आशीष को अपने कमरे में बुलाया और कहा,
" बेटा, अपना टिकट कैंसिल करा दो। तुम्हें कुछ दिन और हमारे साथ रुकना है।
" क्यों मम्मी,,, क्या हुआ? पापा की तबीयत,,,!"
"नहीं बेटा,,पंडित जी को बुलवाया है। तुम्हारी शादी का दिन तय करना है!"
" माँ, यह आप क्या कह रही हैं? शादी फिर से?माँ ,,, मैं तो कह चुका हूँ कि अब शादी- वादी नहीं करूँगा,,,।"
" करेगा,, करेगा,,,, अरे माहिरा मान गई है!!,, तुझसे शादी करने के लिए! अब बोल,, करैगा उससे शादी?"
" क्या?!!" आशीष को अपने कानों पर सहसा यकीन न हुआ!
"शादी करके तुम दोनों को एक साथ विदा करवाना चाहती हूँ।"
" जैसा, आप कहें मम्मी!"आशीष अपनी खुशी को छुपाते हुए एक आज्ञाकारी बेटे की तरह बोला!
एक महीने बाद
आशीष और माहिरा को विदा करने आशीष का पूरा परिवार एयरपोर्ट पहुँचते हैं। आशीष आया तो अकेले था पर अब अपनी नवविवाहित पत्नी माहिरा को साथ लेकर यूनान, अपने घर वापस जा रहा था!
समाप्त
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