तेरे बिना भी क्या जीना-2

आशीष की कथा

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 11 Feb, 2022 | 1 min read

कोलोनासी ( Kolonaki) ग्रीस देश की राजधानी ऐथेन्स शहर की एक उपनगरी है। यह यूनानी नगर जितना साफ सुथरा है उतना ही खूबसूरत भी। "कोलोनासी" का शाब्दिक अर्थ होता है-- छोटा सा स्तंभ! यह उपनगरी एथेन्स के केन्द्रस्थल में लाइकाबेट्टस पर्वत के दक्षिणी ढलान पर स्थित है।

अगर देखा जाए तो समूचा यूरोप ही बेहद खूबसूरत है। प्रकृति की शोभा इस महादेश की एक प्रमुख विशेषता है, जिसे देखने की लालच में सैलानी दुनिया के कोने- कोने से यहाँ तक खींचे चले आते हैं!

परंतु पर्यटन के लिए यूरोप जितना ही आकर्षक है उतना ही महंगा भी है। अतः अगर आप यूरोपीय देशों में सफर करने की इच्छा रखते हैं तो जेब भी आपकी ज़रूर भारी होना चाहिए।

अगस्त महीने के किसी एक रविवार की मटमैली सी शाम में आशीष अपने बड़े से अपार्टमेन्ट की सुसज्जित बैठक में खिड़की के पास एक आरामकुर्सी में इस समय बैठा हुआ है।

खिड़की के बाहर थोड़ी ही दूरी पर लाइकाबेट्टस पर्वत का शिखर दिखाई दे रहा है। रह- रहकर आसमान में बिजलियाँ कड़क रही है, परंतु बारिश का कहीं नामोनिशान तक नहीं है! यहाँ इस शहर में जुलाई-अगस्त के महिनों में अकसर ऐसा ही मौसम हुआ करता है।

प्रकृति के इस सुंदर नज़ारे का लुत्फ उठाता हुआ अपनी धूम्र उगलती हुई काॅफी के कप में से आशीष छोटा- छोटा सिप ले रहा था। बाहर हवा में काफी उमस थी, इसलिए इतवार के दिन होने पर भी वह आज शाम को घर से बाहर न निकला था।

उसकी गर्लफ्रेन्ड एलिज़ाबेथ ( लिज़ा) आज उसके साथ म्यूज़ियम जाना चाहती थी। म्यूज़ियम के प्रेक्षागृह में लिज़ा के भाई द्वारा एक टाॅक शो का आयोजन था जिसके लिए आशीष को खास आमंत्रण दिया गया था! परंतु आज उसका घर से बाहर जाने का बिलकुल भी मन न हुआ। उसने इसलिए लिज़ा को मना कर दिया। वह बेचारी भी क्या करती? अकेली ही चली गई! फिर अपने लिए एक मग काॅफी बनाकर इसी खिड़की के पास खिसक आया था।

अपने अपार्टमेंट का यह कोना उसे खास पसंद थी। जब भी उसे अपने अकेलापन को महसूस करने की इच्छा होती थी, या फिर यूँ कह लीजिए कि जब वह थोड़ा समय अपने साथ बीताना चाहता था तो यहाँ पर आकर बैठ जाया करता था। यूँ तो वह इस अपार्टमेंट में लिज़ा के साथ रहता था। सिर्फ दो ही प्राणी थे वे, और वे सदा अपने - अपने कामों में व्यस्त रहते थे। इसलिए एकांत की कोई खास कमीं न थी उसके जीवन में! परंतु यह कोना उसे उस खास अकेलेपन को महसूस करा देता था जहाँ वह स्वयं के साथ दिल खोलकर रू-ब-रू हो पाता था!

कल शाम को इंडिया से मम्मी का फोन आया था। पापा की तबीयत कुछ महीनों से खराब चल रही है। यह बात उसे मालूम थी। परंतु कल पता चली कि पापा अब एक बार आशीष से मिलना चाहते हैं।

कभी- कभी न पापा भी, बच्चों की सी जिद्द पर उतर आते हैं। कल उससे बातें करते समय बार- बार कहने लगे--

" घर आ जा आशु। एक बार आकर इंडिया घूम जा। बहुत याद आता है, आजकल तू! शायद अब बूढ़ा हो गया हूँ इसलिए, बेटे के साथ थोड़ा सा वक्त बीताना चाहता हूँ!" इतना कह कर पापा हाँफने लगे थे। साथ ही उनकी खासी भी बढ़ गई थी।

फिर थोड़ा सा दम लेकर पापा बोले--

" कितनी दूर चला गया रे तू आशु! अब चाहकर भी तुझे एक बार देख नहीं पाता। शायद तुझसे कभी मुलाकात हो या न हो!"

"पापा-- ऐसा मत कहिए--!" उत्तर में आशीष केवल इतना ही कह पाया था! उसका गला रुँध आया था!

कल ही सुबह सुपर मार्केट जाकर आशीष महीने भर की शाॅपिंग कर लाया था। इस समय उसका विशाल रेफ्रीजरेटर और स्टोर खाद्यसामग्रियों से खचाखच भरा हुआ था! उसे भूख भी बहुत जबरदस्त लग रही थी इस समय। फिर भी ,अपने लिए उठ कर कुछ बनाने का मन नहीं हो रहा है।

पर कुछ खाना जरूरी था। कल से हफ्ता शुरु होने वाला था। सुबह सात बजे ही उसकी क्लाइंट के साथ जरूरी मीटिंग थी।

आशीष उठ कर स्टोर में से एक कप नूडल्स का पैकेट निकालकर किचन में ले आया। फिर माइक्रो- आवेन में एक कप पानी नूडल्स के लिए गर्म करने को रख दिया।

मन बड़ा अशांत हो रहा है आज। पापा की बातें रह- रह कर दिमाग में घूम रही थी। शायद देश की मिट्टी उसे पुकार रही है! एक बार इंडिया जाना ही पड़ेगा!

बरसों हो गए है उसे अपना स्वदेश की मिट्टी की खुशबू लिए हुए। एक युग से ऊपर हो गया है! याद है, वह उस समय उन्नीस वर्ष का था! काॅलेज में एक वारदात हुई थी जिसके तहत एक अपराधिक मामले में उसे जेल की सज़ा हो गई थी! उसका पूरी जिन्दगी, पढ़ाई, परिवार का नाम सबकुछ दाव पर लग चुका था!

मम्मी के मौसेरे भाई,शैलेश मामाजी, जो पुलिस में थे,उस दौरान उन्होंने उसकी और उसके परिवार की बहुत मदद की थी। किसी तरह ऊपर की पहुँच लगवाकर उन्होंने आशीष को ज़मानत दिलवाई थी। फिर, उस रात को ही उसका टिकट कटवाकर उसे विदेश की फ्लाइट में मामाजी चढ़ा आए थे।

तब से आशीष अपने देश की सरज़मीन से बेदखल हो गया है! बहुत दिनों तक मारा- मारा फिरने के बाद काफी संघर्षों के पश्चात् आज वह यहाँ तक पहुँच पाया है। अब उसकी खुद की कंपनी है, अपना अपार्टमेंट है, लक्ज़री कार है, बैंक- बैलेन्स -- सब कुछ है, उसकी लाइफ बन चुकी है! शायद यही सही समय है, एक बार देश की मिट्टी की पुकार को सुनने के लिए!

पानी गरम हो चुका था! उसमें उसने नूडल्स को मिला कर पाँच मिनट के लिए एक प्लेट से ढक दिया और फिर इंतज़ार करने लगा। इतनी देर में आशीष ने अपने लिए थोड़ा सा सलाद भी काट लिया। फिर फ्रिज में से योगर्ट ( yoghurt) निकाल कर लाया और डिनर करने डाइनिंग टेबल पर बैठ गया!

क्रमशः


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