"फक्कर घुमक्कड़ के क़िस्से"
लेखक: कमल रामवाणी ' सारांश'
जब लाॅकडाउन की वजह से हम घर से बाहर कहीं नहीं जा पा रहे हैं, तो मेरे जैसे खाने और घूमने के शौकिनों ( "ट्रेवैल फूडिज़ों") के लिए यह किताब इस समय एकदम आदर्श है, जिसमें लेखक ने उनके द्वारा विज़िट किए हुए स्थानों के न केवल इतिहास, भूगोल, पौराणिक कथाओं, किंवदंतियों से ही परिचित कराया है बल्कि यात्रा के दौरान किफायती होटलों और फूड ज्वाइंटों का भी सविस्तार दिशा- निर्देश भी दिया है। साथ ही वर्ष के किन- किन महीनों में आप वहाँ जा सकते हैं, वहाँ के सारे द्रष्टव्यों के साथ ज़ायका का समुचित सफर भी इस एक पुस्तक के माध्यम से उन्होंने करवाया है।
इस पुस्तक के अध्यायों के नाम क्रमशः ये है:- 1) हिमाचल: मेरी पहली यात्रा 2) दास्तान- ए- बनारस 3) इंदौर: सेंव से करेंगे सबका स्वागत 4) अजमेर: my जन्मभूमि calling 5) चितौड़गढ़: कहानी आन- बान और शान की 6) कुम्भलगढ़ : कहानी एक अजेय दुर्ग की 7) साड्डा पंजाब : सोहणा पंजाब 8) पुष्कर: सुकून की हवाएँ, ज़ायके का सफर।
इनमें से इंदौर, पुष्कर और पंजाब के कुछ शहरों को छोड़कर बाकी सभी स्थानों पर मैं पहले जा चुकी हूँ। लेकिन उन्हीं जगहों का इस पुस्तक के द्वारा जो दुबारा मानस भ्रमण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ वैसा मेरे लिए कल्पनातीत है। वह भी एक संपूर्ण अलग ही दृष्टिकोण से! " फक्कर घुमक्कर के किस्से" नाम ही इतना फक्कराना है कि आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया बिना न रहेगा। इसके लगभग हर पृष्ठ में कमल रामवानी जी के फक्कराना अंदाज़ का आपको दर्शन हो जाएगा! इसके मुख- पृष्ठ पर मेवाड़ के राजकीय महाविद्यालय के हिन्दी के प्रोफेसर श्री सूर्यप्रकाश पारीक जी ने जो रामवानी जी की भाषा की जो तुलना "कबीर" के साथ की है वह सर्वथा सटीक ही है। जिस तरह कबीर को " वाणी का डिक्टेटर" कहा जाता था वैसे ही रामवानी जी के भाषा- प्रयोग में भी dictatorship बहुतायत से देखने को मिल जाता है।
निम्न कुछ उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाएगा--
1) " सेंव हर इंदौरी के रक्त की चौथी प्लेटलैट है।"
2) बनारस के मणिकर्णिका घाट के पास स्थित' विश्व प्रसिद्ध' ब्लू लस्सी शाॅप के बारे में वे लिखते हैं-- " यहाँ पर लस्सी पीना भी ' एडवेंचर' है। कच्चे दिल का आदमी यहाँ बैठ के लस्सी नहीं पी सकता । एक सीप लो और एकबार सुनो ' राम नाम सत' है।"
3) तो कहीं बातों - बातों में हम नवोदित लेखकों के लिए एक बेहद अच्छी सीख भी दे डालते हैं-- " किसी भी काम, हाॅबी के प्रति आपका समर्पण आपको एक अलग पहचान दे जाता है। बस होना वह लगातार और नियमित चाहिए, चाहे वह मोहब्बत हो या संगीत हो या पठन या लेखन।"
4) तो कहीं नारी- विमर्श भी देखने को मिल जाता है। " आपकी पत्नी को भी हक़ है किसी नई जगह पर साँस लेने का। वह सिर्फ आपकी रसोई और शयनकक्ष संभालने नहीं आई है।"
इनकी " भेव्यस्था" और " यूनिक" की मुझे ऐसी लत पड़ गई हैं कि इन दिनो ये मेरे तकिया कलाम बने हुए हैं!😃 आज ही किसी दोस्त को टेक्स्ट किया तो वह तुनककर पूछ बैठा, " इसमें यूनिक क्या है?"😂😂 अंत में यह कहूँगी कि यह पुस्तक पाँच सितारा होटलों की बात नहीं करता है। यह बात करता है गली- नुक्कड़ों में बसे उन ठियों की जो पीढ़ी दर पीढ़ी बस उस स्वाद को जिन्दा रख रहे हैं। अगर आपके रक्त में घुमक्कड़ी है और जिह्वा को नित्य-नवीण स्वादों की तलाश है तो इस पुस्तक को एकबार अवश्य पढ़ेंगे।
पुनःश्च : ट्रेवेल फूडी सारांश फेसबुक पर काॅफी पाॅपुलर है। इसी नाम से उनका एक ब्लाॅग भी है।
-- मौमिता बागची।
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