अगले दिन सुबह जब उसकी आँखें खुली तो निशीथ बहुत प्रसन्न था। अब उसके पास अपना कहने को एक नया बासा होने जा रहा है! रात भर सपने में भी उसे अपना वही सजा-धजा सुंदर सा कमरा दिखा था! अब सपने का क्या कसूर? सपनों में हमें वही दिखते हैं जो हम दिन भर सोचते रहते हैं! सुबह से वह बड़ी बेसब्री से दिन ढलने का इंतज़ार करने लगा।
जैसे ही शाम होगी सपनों के आशियाना की चाबी उसके हाथों में होगी! इसी छटपटाहत में एक समय शाम भी हो गई और निशीथ रमेनबाबू से मिलने उनके घर चला! उत्तेजना के कारण आज काॅलेज की लेक्चरों पर वह खास ध्यान न दे पाया था और काॅलेज में अर्ध-अवकाश होते ही उसने सरदर्द का बहाना बनाया और गेट से बाहर निकलकर आ गया! फिर समय से पहले ही वह रमेन बाबू के घर पहुँच गया।
उसका उतावलापन देख कर रमेश बाबू भी मन ही मन हँसे बिना न रह सकें! निशीथ अपने साथ एक महीने का किराया लेकर आया था जिसे उसने पेशगी के तौर पर रमेश बाबू को सौप दिया। और अपने नए ठिकाने की चाबी उनसे ले ली। घर वापस जाने से पहले उसने एक बार अपने कमरे का मुआयना करना उचित समझा।
जाकर देखा तो रमेनबाबू अपने वादे के पक्के निकले। उन्होंने आधे दिन के अंदर ही कमरे की पूरी तरह से साफ- सफाई करा दी थी। आज मिलने पर उन्होंने निशीथ से कल उसके आने के समय के बारे में पूछा लिया! इसके बाद रमेन बाबू ने निशीथ से एक और वादा किया। कल शाम को निशीथ के सामान लेकर पहुँचने से पहले वे इस कमरे पर पेंटिंग भी करवा देंगे।
निशीथ को अब एक नया ताला खरीदना था। इसलिए वह बाज़ार की ओर चल दिया। रास्ते में निशीथ को याद आया कि उसे कुछ नए बर्तन भी चाहिए होंगे रसोई के लिए। परंतु बाज़ार पहुँचकर वह किसी तरह तय नहीं कर पाया कि उसे ठीक कौन- कौन से वर्तन लेने चाहिए!! क्योंकि उसने पहले कभी इस तरह कि खरीददारी नहीं की थी। अतः इस मामले में वह कोरा अनाड़ी था! माँ की रसोई के एक- एक बर्तनों को याद करके उसने पहले एक लोहे की कढ़ाई खरीदी, फिर खुद के खाने के लिए एक थाली, चम्मच और गिलास भी ले लिया। इसके बाद उसने पकाने के लिए एक मिट्टी की हाँडी भी ले ली। लेकिन जब वह चूल्हा लेने गया तो उसका रेट सुनकर उसका सिर चकरा गया---
" अब तो जेब में केवल थोड़े से ही पैसे बच रहे हैं! इतने में चूल्हा तो न आ पाएगा,,, फिर क्या करूँ?" निशीथ वहीं खड़ा- खड़ा सोचने लगा!
तभी दूसरी ओर से उसने अपने दोस्त गैबरियल को उधर आते हुए देखा! गैबरियल अपने दोस्त को परेशान देख कर उसके पास आ गया और पूछा कि आखिर परेशानी की क्या बात हुई? जब निशीथ ने अपनी परेशानी उससे कही तो गैबरियल हँसकर बोला,
" दोस्त, तुम्हारी परेशानी का हल तो मेरी माता जी के पास है। चलो घर चलकर उनसे पूछते हैं।" निशीथ को घर पर लाकर गैबरियल ने थोड़ी देर के लिए उसे अपने बैठक में बिठाया। फिर घर के अंदर जाकर अपनी माता जी से वह बोला,
" माँ, आपके पास एक पुराना चूल्हा रक्खा हुआ है न? मेरे दोस्त ने नया- नया कमरा किराए पर लिया है, उसे कुछ बर्तन वगैरह चाहिए , थोड़ी उसकी मदद कर दीजिए न!"
" कहाँ है तुम्हारा दोस्त?" गैबरियल की माताजी पूछी। " बाहर बैठक में है!"वह बोला। गैबरियल की माँ निशीथ से मिलने बैठक में आई। उसके पहनावे और मुखमुद्रा को देख कर वे सब कुछ एक पल में ही समझ गईं कि यह लड़का पहली बार गाँव से शहर आया है। निशीथ के चेहरे पर व्याप्त लाचारी से उनका हृदय पसीज गया,,,
" अहा, बेचारा!" उन्होंने अपने मन में कहा और घर के स्टोर में जाकर बर्तन- भाँडे, मिट्टी का चूल्हा,चूल्हे के लिए लकड़ी जो भी उनके पास अनावश्यक रक्खी हुई थी सब निकालकर एक बड़ा सा गट्ठर उन्होंने निशीथ के लिए तैयार कर लिया। साथ ही उन्हें अपने घर पर एक पुराना बेडिंग भी मिल गया था जिसे निकालकर उन्होंने निशीथ के लिए अलग रख दी। फिर वे अपनी अलमारी में से एक नया बेडशीट और तकीया भी निकाल लाई। काफी सोच- विचारकर कुछ पुरानी पर्दे और टेबुल पर बिछाने के लिए एक टेबल कवर भी वे ढूँढकर लाई।
कुल मिलाकर निशीथ के गृहप्रवेश का सारा सामान उसी वक्त तैयार हो गया था! उस रात को गैबरियल और उसकी माताजी ने निशीथ को खाना खिलाकर ही छोड़ा। उसके बाद तय यह हुआ कि अगले दिन शाम को गैबरियल जाएगा निशीथ के साथ सभी सामानों को उसके नए घर पर पहुँचाने और उसे उसके नए घर में व्यवस्थित करके ही वह लौटेगा।
नियत समय पर दोनों दोस्त सामानों का एक बड़ा सा गट्ठर रिक्शे पर लादे एंटाली जा पहुँचे। जाकर दोनों ने देखा कि वादे के मुताबिक रमेन बाबू ने दीवारों की पुताई भी करवा दी थी। दोनों दोस्त इसके बाद सामानों को सेट करने में जुट गए! सारा काम समाप्त होते- होते रात हो गई थी। दोनों तब तक थक कर चूर हो गए थे । उन्हें भूख भी बहुत लगी थी ।
तब वे टिफिन के डब्बे खोल कर खाने बैठे। रात का खाना गैबरियल की माताजी ने साथ में पैक करा दिया था। एक थरमस में चाय भी उन्होंने साथ में भिजवाई थी। उनका अनुभवी मन जानता था कि पहली ही रात में लड़कों द्वारा रसोई बनाना संभव न हो पाएगा। इसलिए उन्होंने पहले से ही सभी समुचित व्यवस्था करके ही उनके साथ में भेज दिया था। खाना खाने के बाद जब गैबरियल घर जाने लगा तो निशीथ ने उससे अनुरोध किया कि रास्ते में रमेन बाबू का घर पड़ेगा, अतः उन्हें मकान की पुरानी चाबी वह देता जाए।
चाबी लेकर गैबरियल " गूड नाइट" कह कर विदा हो लिया। गैबरियल के जाने के बाद गुरु भोजन के कारण हो अथवा अधिक मेहनत के कारण निशीथ को जोरदार नींद आने लगी थी। वह सीधे अपने पलंग पर जाकर लेट गया। और गहरी नींद में सो गया। जब उसकी आँखें खुली तो दिन निकल आया था! क्रमशः
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