" The summer of your life "का अर्थ है-- जीवन का मध्यकाल। हमारे जीवन का वह कालखंड जिस समय हमारी आयु कोई 30-45 वर्ष के बीच हुआ करती है। यह काल व्यक्ति के जीवन में काफी उथल- पुथल लेकर आता है। Mid life crisis का भी यही समय होता है।
सुरभि को अपने काॅलेज के sociology - project के लिए यही विषय मिला था जिसमें कुछ case studies के द्वारा उसे अपनी स्टोरी प्रस्तुत करनी थी।
परंतु मुश्किल यह हुई कि जिस किसी से भी उसने बातचीत करने की कोशिश करी वही कन्नी काटकर साफ निकल गया।
अड़ोस- पड़ोस में सब जगह उसने try करके देख लिया पर ऐसा कोई भी न मिला उसे जो अपने midlife crisis के बारे में उससे बात करना चाहता हो।
ग्रीष्म की छुट्टियाँ लगते ही सुरभि हर साल की तरह नानी के घर रहने गई। अभी तक वह इसी उधेड़बुन में थी कि प्रोजेक्ट को कैसे अंजाम दिया जाए! गाँव की खुली हवा में दिमाग शांत हो जाता था उसका, तभी वह काम कर पाती थी।
उस दिन दोपहर को नानी पड़ोसी की लड़की को देखने गई जो अभी- अभी माँ बनी थी। सुरभि घर में अकेली थी। उसके लिखने के कागज़ खत्म हो गए थे। कागज़ खोजते समय उसने बिस्तर के नीचे रखी एक पुरानी ट्रंक का खोज कर डाला, जिसमें पुराने ज़माने के कुछ पेपर, अखबार के कंटिग्स आदि रखे हुए थे।
कोरा कागज़ तलाशते हुए सुरभि के हाथों कुछ पुरानी चिट्ठियाँ लगी जिनमें से कुछ चिट्ठियाँ उसके नानाजी द्वारा लिखे गए थे। हस्ताक्षर देखकर उसे यह जानने में बिलकुल देर न लगी, परंतु उनमें से कुछ चिट्ठियाँ किसी अनजान हस्ताक्षर वाली भी थी। जिसे वह पहचान न पाई।
सारी चिट्ठियाँ एक ही बात की ओर इशारा करती थी कि उसके नाना जी, जो बहुत ही उच्च ओहदे पर थे, उन्हें अपने जीवन के ग्रीष्म- काल में किसी हसीना से इश्क हो गया था। ये सारे पत्र उसी समय के दौरान लिखे हुए उनके प्रेम- पत्र थे।
यह राज़ जानकर सुरभि हैरान- परेशान थी, क्या नानी को यह सब मालूम है? तभी उसे सिल्क की साड़ी में किसी के चलकर आने की आवाज़ आई।
सुरभि ने मुड़कर देखा कि नानी वापस आ गई है। सुरभि को थोड़ी देर के लिए लगा कि उसको यूँ चोरी -छिपे दूसरों के पत्र पढ़ते देखकर नानी बहुत नाराज़ होंगी।
पर उसकी नानी एक सोफे पर बैठ गई और जैसे सुरभि के दिल की बात समझ गई, इस तरह से बोली,
" बेटा, हर एक इंसान को इस मिड- लाइफ क्राईसिस के दौर से गुज़रना होता है। जब आप जैसा चाहते हो वैसा कुछ भी नहीं होता। आपके संघर्ष का आशानुरूप परिणाम न होते देखकर मन निराशा से भर उठता है।"
" परंतु नानी-- आपने यह सब कैसे झेला?"
" मैंने तुम्हारी नानाजी का पूरा साथ दिया। दुःख तो मन में बहुत हुआ परंतु उस समय उनको सहारे की जरूरत थी। फिर सब कुछ धीरे- धीरे अपने आप ठीक हो गया।"
"तुम्हारे पिताजी, मामाजी, माँ और मासी सबको इसी दौर से गुज़रना पड़ा था।"
"नानीजी उनकी कहानियाँ भी सुनाइए न। मुझे प्रोजेक्ट के लिए अपना स्टोरी तैयार करना है।"
यह कहते हुए उत्सुकतावश सुरभि अपनी नानी के कुछ और निकट सरक आई।
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