एक रात के अतिथि भाग-1

केरोलीन के पति अभिजीत अपनी माँ की बीमारी की खबर सुनकर भारत चला आता है। अकेली कैरोलीन के घर रातभर का शरण लेने एक अतिथि आते हैं। फिर क्या होता है?

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 29 Nov, 2020 | 1 min read

केरोलिन अपनी पति की तीसरी बीवी थी। उसका पति उससे तकरीबन बीस साल बड़े थे। केरोलिन से शादी के बाद उनके व्यापार में काफी इज़ाफा हुआ था। इसलिए वे केरोलिन को अपने लिए बहुत लकी मानते थे। अपने दोनों तलाक के बाद अभिजीत की माली हालत इतनी गिर गई थी कि नए व्यापार की शुरुआत के लिए उन्हें लोन लेना पड़ गया था और साथ ही कानूनी कारर्वाई के चलते हुए मानसिक तनाव के कारण उनका स्वास्थ्य भी पूरी तरह से टूट चुका था।

उनको जिस अस्पताल में भर्ती कराया गया केरोलिन वहाॅ की नर्स थी। उसी की सुशुश्रा से उनके स्वास्थ्य और जीवन दोनों में सुधार हुआ था। इसीलिए वे केरोलिन से बहुत प्यार करते थे।इसी करण स्वस्थ होने के बाद भी उन्होने उसे छोड़ा नहीं। शादी करके अपने घर ले आए।

इस बार कार्लाइल में जमकर बर्फबारी हुई थी। हालाॅकि हर साल ही यहाॅ बर्फ गिरा करती है लेकिन इसबार बर्फ की बारिश कुछ ज्यादा ही हुई थी !! चारों तरफ इस समय सिर्फ बर्फ ही बर्फ नजर आ रहे थे। घर की छतों से लेकर पेड़-पौधे तक सब कुछ श्वेत वर्ण धारण किए हुए था। शाम के सात बज रहे थे। नगरपालिका के लोग दिनभर सड़कों को साफ करने के उपरांत घर जा चुके थे। वे फिर कल सुबह आएंगे।

केरोलिन इस समय धुंआदार काॅफी की छोटी-छोटी सीप ले रही थी और खिड़की से बाहर बर्फ को गिरते हुए देख रही थी और अनमने से ही अपनी जिन्दगी के पिछले पन्नों को धीरे -धीरे पलट रही थी ।आंखों के सामने उसका बनाया हुआ शानदार फूलों का बगीचा फैला था और उसके इर्दगिर्द वह आलीशान लाॅन था जो उसने अपने हाथों से धीरे धीरे तैयार किया था । इस समय हीमचादर ओढ़े सफेद साड़ी में लिपटी किसी महिला की भांति लग रही है।

इस कड़क सर्द मौसम में वह पूरे घर में अकेली है। उसका पति अभिजीत इंडिया गया है। दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में जहाॅ उसकी माॅ और पुराने रिश्तेदार रहते हैं, वहाॅ उनसे मिलने वह गया है। केरोलीन को पीछे घर और कोरोबार की रखवाली के लिए अमरीका छोड़ गया है। उसकी माॅ मरनासन्न है--- इसलिए बेटा तैतीस वर्ष बाद उनसे आखिरीबार भेंट करने गया है। पिछले तीन दशक से जिन माॅ -बाप की अभिजीत ने कभी सुधि न ली थी, बाप के मरने पर भी वह इंडिया न गया था, इसबार माॅ के आखिरी दिनों में उनकी सेवा हेतु वहाॅ कुछ दिनों के लिए रुक गया था। माॅ की आखिरी ख्वाहिश थी कि उनके आखिरी वक्त में उनका बेटा उनके पास हो। माॅ ने अपनी पूरी जिन्दगी में कभी किसी से कुछ न मांगा था, इसलिए उनकी आखिरी इच्छा को अभिजीत टाल न सका और इंडिया आ गया।

अभिजीत से केरोलीन का मिलना महज एक इत्तेपाक ही था मगर इस शादी ने उसके जीवन को पूरी तरह बदल डाला था। कहाॅ तो न्यूयार्क जैसे बड़े शहर की चहल पहल में पली बढ़ी इस छोटे से कंट्रीसाइड में आकर गृहस्थी जीवन में अभ्यस्थ हो गई। दरअसल अभिजीत ही एक तरह से उस शहरी वातावरण से भाग आया था और यहाॅ एक सुंदर सा काॅटेज लिया था ताकि शेष जिन्दगी कम से कम शांति से गुजरे।

शांति? हाॅ, इस शांत सी जगह में शांति पर्याप्त मात्रा में मौजूद थी। साठोत्तर अभिजीत के लिए शांति जीवन के लिए सबसे अहम् प्रयोजन था। मगर चालीस के दहलीज पर अभी अभी पहुंची केरोलीन जिन्दगी के सभी रूप-रस -रंग के आस्वादन से अबतक ऊब नहीं गई थी। उसके मन में भी कभी कभी उसी शहरी जीवन में वापस जाने की एक सुप्त इच्छा सर उठाने की कोशिश करती रहती है।

इसी तरह अपने विचारों में वह खोई हुई थी कि अचानक डोरबेल की आवाज से उसकी चिंता में बाधा उत्पन्न हो जाती है। दरवाजा खोलकर देखा तो आपादमस्तक स्नो- सूट में ढके कोई मुसाफिर था, जिसकी गाड़ी बर्फ में फंस गई थी। इसलिए रात गुजारने के लिए उसकी शरण में आया था।

मुसीबत में फॅसे हुए को केरोलीन कैसे मना करती। इसलिए वह मान गई। और उसने आगंतुक का अपने घर में स्वागत किया।

****** शेष अगले भाग में।


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