हाल ही में कलकत्ता में रहनेवाली गृहिणी संध्या पोस्ट-पारटाॅम डिप्रेशन( पीपीडी यानी कि प्रसव के बाद होने वाली तनाव ) से ग्रस्त थी। यह बात परिवार में किसी को तब तक पता न चल पाया जब तक कि उसने अपनी दो माह की बच्ची सानिया की गला दबाकर हत्या न कर दी।
उसका, इस कृत्य ने पूरे कलकत्ता शहर को झकझोर कर रख दिया। और साथ ही यह घटना हमें यह चेतावनी भी दे गया कि अगर समय रहते हम सचेत न हुए तो पीपीडी का परिणाम बड़ा भयानक हो सकता है!
संध्या मालौ, एक गृहिणी है, जो कल तक दो प्यारे प्यारे बच्चों की माँ थी। उसका एक बड़ा बेटा है और दूसरी दो माह की बेटी थी जिसका नाम सबने बड़े प्यार से सान्या रखा था। फूलबगान में रहने वाले इस परिवार में इन माँ- बच्चों के साथ संध्या का पति और सास ससुर भी रहते थे।
घटना के समय संध्या की सास और पति मंदिर गए थे। अपनी छोटी सान्या के नामकरण विधि हेतु पंडितजी से सलाह लेने। संध्या ने अपने बेटे को भी उनके साथ मंदिर भेज दिया। फिर उसने ससुर जी को भी बाजार से कुछ लाने के बहाने बाहर भेज दिया। इसके बाद काम-काज करने वाली आया को उसने छत पर कपड़े सुखाने को भेज दिया।
और इस तरह जब घर में केवल माँ और बेटी ही रह गए तो संध्या ने अपनी दुधमुँही बच्ची के मुँह पर पहले तो यह सोच कर टेप लगा दिया कि उसकी आवाज बाहर नहीं निकल पाएगी। फिर गला दबाकर उसकी हत्या कर दी!!
फिर उसने बच्ची की लाश को घर के नीचे एक सूखे गटर के अंदर छिपा दिया। जब घरवालों ने आकर बच्ची के बारे में पूछा तो संध्या ने उनको कुछ इस तरह की कहानी बताई---
"जब मैं घर पर अकेली थी तो कुछ लोग जबरदस्ती अंदर आ गए। उन्होंने मुझे धक्का दे दिया जिससे मैं गिरकर बेहोश हो गई। उसके बाद पता नहीं क्या हुआ। वे ही लोग शायद सान्या को अपने साथ ले गए हैं।"
इसके बाद परिवार वालों ने पुलिस में बच्ची के गुम होने का रिपोर्ट दर्ज करवाया। पुलिस आकर पूछताछ की तो उन्हें संध्या की बातें सुनकर उस पर कुछ शक हुआ। जब इलाके के सीसीटीवी फूटेज देखा गया तो उससे इस बात की पुष्टि हो गई कि संध्या के कहे हुए समय पर कोई भी अपरिचित उस बिल्डिंग में नहीं आया था।
फिर पुलिस के जिरह के आगे उस माँ ने अंततः यह स्वीकार किया कि उसने ही बच्ची के रोने से तंग आकर उसे मार डाला।
संध्या दरअसल एक बिजनेस की शुरुआत करना चाहती थी। परंतु बेटी के पैदा होने के कारण वह बहुत चिड़चिड़ी हो गई थी। न ढंग से रात को सो पाती थी और न दिन में उसे कोई चैन था। इसलिए, अपनी उस हालत को वह जब और ज्यादा बरदाश्त न कर पाई तब उसने ऐसा भयानक कदम उठा लिया।
एक माँ होकर अपनी ही कोख जायी का गला दबाकर हत्या कर दी!!
दोस्तों, आप सोच रहे हैं कि ऐसा कैसे संभव है? परंतु ऐसी बहुत सारी घटनाओं के बारे में मैंने स्वयं अपने कानों से सुना है।
विदेशों में यह पीपीडी बहुत सामान्य सी बात है। मेरी एक कज़िन है, जो अब अमरीका में रहती है, उसने मुझे एक बार बताया था कि उसकी दूसरी बेटी के जन्म के बाद उसे पीपीडी हो गया था। जिसके कारण वह बहुत उदास और चिड़चिड़ी रहती थी और घंटों टाॅयलेट में बैठकर रोया करती थी!
आइए, आज पीपीडी के बारे में कुछ चर्चा करते हैं।
बच्चे को जन्म देने के बाद शरीर में जो हार्मोनल बदलाव होते हैं उसके ही कारण यह पीपी डी हो जाता है। अकसर बच्चों को जन्म लेने के पहले के कुछ ही महीनों में माँओं को इस तनाव से होकर गुजरना पड़ता है। आठ में से एक महिला को यह तनाव झेलना पड़ता है। पाश्चात्य देशों में इसे " बेबी ब्लूज" भी कहते हैं। इसके निम्न लक्षण होते हैः-
॰ मूड बदलना
॰ तनाव
॰ निराशा की भावना/ मानसिक अवसाद
॰ चिड़चिड़ापन
॰ रोना
॰ नींद में बाधा
॰ ध्यान में कमीं
॰ भूख की कमी, आदि
हालाॅकि "बेबी ब्लूज" और पोस्ट पार्टम डिप्रेशन में अंतर होता है। पीपीडी के लक्षण कुछ ज्यादा गंभीर किस्म के होते हैं और लंबे समय तक प्रभावी रहते हैं। ये लक्षण माँओं द्वारा बच्चों की देखभाल करने में अथवा उनके दैनिक कार्यों को करने में बाधा उपस्थित करते हैं।
जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है, ये लक्षण बच्चे जनने के पहले हफ्ते से लेकर एक साल के अंदर तक हो सकते हैं। कुछेक केसों में तो प्रेगनेन्सी के आखिरी हफ्तों के दौरान ही इस प्रकार के तनाव का बोध होना शुरु हो जाता हैं।
पीपीडी के निम्न लक्षण हो सकते हैं--
1) तनाव और मूड का अत्यधिक उतार चढ़ाव
2) अत्यधिक रोना -धोना
3) बेबी के साथ बंधन में बंधने की दिक्कत
4) परिवार और दोस्तों से कटे कटे रहना
5) भूख न लगना
6) नींद में कमी या फिर बहुत अधिक सोना
7) अत्यधिक थकान
8) अत्यधिक चिड़चिड़ापन और क्रोध
9)स्वयं एक अच्छी माँ न बन पाने का डर
10) निराशा की भावना
11)असमर्थता, अपूर्णता,हीनता,
12) किसी प्रकार के गुनाह की भावना से ग्रस्त होना
13)निर्णय न ले पाने की क्षमता , अथवा उचित चिंतन की शक्ति में बाधा
14)अत्यधिक तनाव और पैनिक अटैक का आना
15) स्वयं को और बेबी को हानि पहुँचाने की भावना
16)हत्या और आत्महत्या जैसी भावनाओं का बार बार मन में उदय होना।
वजह/ कारण
मूलतः शारीरिक मानसिक कारण ही होते हैं। जैसे हारमोन के बदलाव-- एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रोन हारमोन हमारी देह में पीपीडी पैदा करते हैं। मानसिक कारणों में थकान, नींद की कमीं और बच्चे जनने की पूरी प्रक्रिया से गुजरते हुए मानसिक तनाव का महसूस करना।
बचाव/ निदान
हमारे देश में किसी मानसिक रोग को प्रधानता नहीं दी जाती हैं।
हम शारीरिक रोगों की चिकित्सा तो करवाते हैं परंतु कौंसीलर या मनरोग विशेषज्ञों की तब तक सलाह नहीं लेते हैं जबतक कि मामला हाथ से बाहर न चला जाए। तो इसलिए सबसे पहले जरूरी है , ऐसे रोगों की पहचान करना। जो कि परिवार वाले ही कर सकते हैं। फिर बड़े धैर्य और शांति से रोगिणी की सहायता करना। उसे समझना।
एक बच्चे को जन्म देते समय एक औरत को शारीरिक और मानसिक दोनों ही दृष्टियो से बहुत कुछ बलिदान करना पड़ता है। इस बात को समझना। अतः इस समय उसके साथ थोड़ी सी हमदर्दी भी दिखाने की आवश्यकता है। जब बच्चा सोए तो उस समय माँ को भी अपनी नींद पूरी कर लेने का अवसर देना।
बच्चा पालना सिर्फ एक माँ की जिम्मेदारी न समझकर , ऐसे समय में जितना हो सके उस नई माँ की मदद करना। उसके खाने और विशेष रूप से सोने का खास ख्याल रखना और उसे हमेशा ही खुश रखने की कोशिश करना।
उसे कुछ नहीं आता है, यह कहकर कभी भी ताना नहीं देने चाहिए। (दरअसल कोई भी माँ , माँ बनने की ट्रेनिंग पाकर नहीं आती हैं। सभी यह कला धीरे-धीरे ही सीखती हैं । जरूरी है, इस कटु सत्य को स्वीकार कर लेना) ।
दूध पिलानेवाली माँ का शारीरिक और मानसिक रूप से विशेष ध्यान रखना बहुत आवश्यक है।
इन सब बातों का यदि हम ध्यान रख सकें तो मुझे ऐसा लगता है कि नई माँओं और हमारे छोटे-छोटे बच्चों को इससे बहुत लाभ हो सकता है।
तथ्य आभार: हिन्दुस्तान टाइम्स, गूगल।
वि॰ द्र॰ -संध्या मालौ की घटना एक सत्य घटना है, जिसे मैंने कुछ समय पहले अखबार में पढ़ी थी।
इस रचना का उद्देश्य उसके इस जघन्य कृत्य का समर्थन करना नहीं है, बल्कि पाठकों को इसके पीछे के कारणों से अवगत कराना है। ताकि थोड़ी सी हमदर्दी और सूझबूझ से भविष्य में ऐसी घटनाओं को घटने से बचाया जा सकता है। बच्चें हमारे देश का भविष्य है । अतः हमारी आगामी पीढ़ी को सुरक्षित रखना हम सभी का कर्तव्य है।
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