तुम प्यासा, मैं सागर

एक मायूस, निराश जिन्दगी से खुशनुमा भविष्य के ओर कदम

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 08 Dec, 2020 | 1 min read

आज सुबह से ही शिल्पी का मन बहुत दुःखी था। नहीं, कोई नई बात नहीं थी। शादी के ठीक एक हफ्ते के अंदर ही एक अक्सीडेन्ट के कारण उसकी एक टांग को काटना पड़ गया था। और इसके साथ ही सात साल का लंबा उसका पत्रकारिता का कैरियर भी अंत हो गया था। इतने वर्षों के बाद भी रह- रहकर यही बात उसे उदास कर देता था!

और जब भी वह उदास होती तो अपनी डायरी निकालकर बैठती थी। अपने भावों को लिपिबद्ध करके ही उसके मन को शांति मिलता था।

उसका पति रौनक यद्यपि उसका बहुत ख्याल रखता था।उसका दुःख बाँटने का भी काम किया करता था और साथ ही भाँति- भाँति के साँत्वना से शिल्पी का मन बहलाने की कोशिश करता था।

रौनक जानता था कि शिल्पी को जो बिमारी है वह शारीरिक कम और मानसिक ज्यादा है। क्योंकि अपनी शारीरिक विकलांगता को तो शिल्पी ने मन से मान लिया था, परंतु उसका जो मन था वह हमेशा बड़ा विचलित रहा करता था---!

शादी के दस साल बाद भी वे दोनों माता- पिता न बन पाए थे। इसमें शिल्पी का अनाग्रह ही अधिक था। वह बहुत डरती थी माँ बनने से। इसलिए भी उनके जीवन में अपार खालीपन व्याप्त था।

शिल्पी अपने कार्यालय के संपादक विभाग में काम करती थी। मतलब कि उसे आउटडोर काम नहीं करने होते थे। उसे और भी कई सारे ऑफर आए थे काम के, परंतु एक दो इंटरव्यू के बाद वह घर से बाहर जाने को राज़ी न हुई।

आजकल वह दिनभर डायरी में न जाने क्या लिखा करती थी। किसी से ज्यादा बोलती चालती भी नहीं।

पिछले मार्च में लाॅकडाउन के समय रौनक ने उसके लिए एक लैपटाॅप खरीदकर दिया और स्टडी रूम के एक कोने को सजाकर शिल्पी के लिए उसका अपना राइटिंग काॅर्नर बना दिया।

आजकल शिल्पी ज्यादातर समय यहीं बिताया करती थी!


आठ महीने बाद।


शिल्पी का आज जन्मदिन था। इस दिन का कोई विशेष महत्व न था उसके लिए।अक्सीडेन्ट के बाद से उसने सारे सेलिव्रेशन्स से अपने आपको अलग कर लिया था।

दोपहर से ही सरदी भी बहुत बढ़ गई थी। रोज़ की तरह वह चुपचाप आकर राइटिंग डेस्क पर जा बैठी थी। कई रोज़ से उसकी प्यारी डायरी उसे नहीं मिल रही थी। उसी को ढूँढने में वह व्यस्त थी कि तभी डोरबेल की आवाज़ उसके कानों पर पड़ी।

शिल्पी के नाम से कोई पार्सल आया था। उसे कौन पार्सल भेजेगा यह सोचते हुए उसके हाथ तेजी से पार्सल खोलने में लग गए थे।

रौनक आज घर पर ही था। उसने आकर टीवी चला दिया।

विज्ञापन में अपना नाम सुनकर शिल्पी चौंकी। उसके द्वारा लिखित किताब का एक विज्ञापन टीवी पर आ रहा था। पर उसने तो कोई पुस्तक प्रकाशित ही नहीं करवाई थी?! फिर???

उसने आश्चर्य से रौनक की ओर देखा। रौनक ने उसके हाथ में पड़े पार्सल की ओर इशारा किया।

अपनी किताब को हाथ में पकड़कर खुशी से बरसों बाद शिल्पी की आँखों से आँसू निकल आए थे!

रौनक ने उसकी डायरी की कविताओं को चुपचाप प्रकाशित करवाकर उसे बहुत बड़ा surprise दिया था। शाम को अपने पुस्तक का virtually विमोचन करते हुए उसने अपने विचार सबके सामने रखे।

शिल्पी बार- बार रौनक की ओर देख रही थी। रौनक के चेहरे के भाव मानो इस समय यही कह रहे थे-- " शिल्पी लंबी सरदियों के बाद तुम्हारे जीवन में ग्रीष्म का आगमन हुआ है। उसका दोनों हाथों से वरण करो।"

लंबे अरसे के बाद आज शिल्पी ने रौनक के साथ मिलकर अपने जन्मदिन का केक काटा था!

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