एक अनोखा न्याय- भाग -1 ( बलात्कार को कैसे रोके)

बलात्कारी को फाँसी देने से वह केस खतम हो सकता है, परंतु देश से बलात्कार मिटाना हो तो कानून में परिवर्तन जरूरी है।

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 05 Oct, 2020 | 1 min read

  भारी मन से राजाजी आज कोर्ट जाने के लिए तैयार हो पाए थे। काला सूट पहनकर कोट का बटन लगाते समय उन्होंने महसूस किया कि उनकी हाथ की ऊँगलियाँ काॅप रही हैं। कई महीनों की सुनवाई के बाद आज फैसला दिए जानेवाला दिन था। परंतु उनकी मुखमुद्रा इस समय बता रही हैं कि वे सहज नहीं हैं। अपने लंबे वकालत की पेशे में आज शायद पहला ही ऐसा दिन था जब फैसला सुनाने से पहले वे इतना नर्वस हो रहे थे। हो भी क्यों न? आज का मुकद्दमा कुछ खास था! इसका हर एक पहलू का संबंध उनकी निजी जिन्दगी से है। राजाजी जिस समय गाड़ी में जाकर बैठे उस समय उनका दिल इतने जोरों से धड़कने लगा था कि वे डरें कि ड्राइवर उसे कहीं सुन न लें। पता नहीं क्या सोचेगा वह मन में? सर्वोच्च न्यायलय के इतने बड़े न्यायधीश और दिल बिलकुल चूजे सा!! बहरहाल, वे दिल मजबूत करके गाड़ी में बैठे और खिड़की से बाहर देखने लगे। सुबह हड़बड़ाहट और घबराहट दोनों के चलते ही उन्हें नाश्ता करने की सुध न रही ।भूख तो उनकी कल रात से मर चुकी थी। इतने तनावग्रस्त वे अभी महसूस कर रहे थे कि आब़ोद़ाना उनके हलक से नीचे उतर पाना मुश्किल था। खैर,वह सब मुकद्दमा समाप्त होने पर देखी जाएगी। रातभर जगकर उन्होंने केस स्टडी तैयार की थी। मन में ख्याल आया कि एकबार सारे दस्तावेजों की पुनः जाॅच कर लूँ । वैसे तो सारे पेपर्स रात को ही उनकी सेक्रेटरी ने फाइल में लगा दिया था। फिर भी जाने क्यों मन इतना बेचैन हो रहा है। वे फिर कानूनी कागजातों में डूब गए। सुबह से ही राजाजी की बायीं आॅख फड़क रही थी। न जाने क्या होनेवाला है आज? उनके इस एक निर्णय पर पूरा देश आस लगाए बैठा है।सबको उनसे उचित न्याय की उम्मीद थी। बेटी को दिया हुआ वचन निभाने का समय अब उपस्थित था। प्रेरणा की आखिरी इच्छा भी तो यही थी। अंतिम साॅस लेते वक्त उनका हाथ पकड़कर उसने यही तो जाहिर किया था -" जो वह भोग कर गई वैसा कोई और न भोगने पाए! " इसके लिए अपराधियों को ऐसी सजा देने की आवश्यक्ता थी जो आनेवाली पीढ़ियों तक लोग याद रख सकें। इधर अभियुक्तों के सारे राजनीतिक संगी साथी, तरह तरह के हथकंडे अपनाकर राजाजी को जान की धमकी देकर समझा गए थे कि अगर उनके साथियों को बाइज्जत बरी न किया गया तो उन्हें मजबूरन राजाजी को पीड़ा पहुंचानी पड़ेगी। राजाजी को इस बात पर बहुत हंसी आई। ये क्या समझते हैं कि वह पीड़ा उनके लिए कोई नई बात होगी? यहाॅ जीना चाहता ही कौन है? वैसे भी बहत्तर के तो वे हो ही चले हैं। कितने वर्ष और जीएंगे? फिर प्राणाधिका प्रियतमा पुत्री प्रेरणा के जाने के बाद उनको अब अपना जीवन बेस्वाद सा लगने लगा था! अतः मृत्यु से उन्हें डर नहीं लगता!! उन्होंने अपनी साॅसों से सिर्फ इतनी इजाजत माॅगी थी कि प्रेरणा की आखिरी इच्छा पूरी करने तक वे केवल चलती रहें। इस खेल की शुरुआत प्रेरणा से हुई थी। और अब खत्म उन्हें करना है। प्रेरणा एक जानेमाने समाचार पत्र की क्राइम रिपोर्टर थी। क्रिमिनल साइकोलाॅजी में उसने मास्टर्स किया था और पत्रकारिता में डिप्लोमा भी। तभी क्राइम रिपोर्टर का ड्रीम जाॅब उसे मिल पाया था। यह काम पाकर तो जैसे उसकी दुनिया ही बदल गई थी। वरना, नीलेश के जाने के बाद तो उसकी जिन्दगी वीरान सी हो गई थी। 


--क्रमशः--'


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