25 मई 2020 को मिनियापोलिस में पुलिस अधिकारियों द्वारा बड़ी बेरहमी से की गई 46 वर्षीय जार्ज फ्लाॅयेड की हत्या के बाद विश्वभर में black life matters की मुहिम छिड़ गई है। पश्चिमी देशों में घटी ऐसी घटनाएँ दर्शाती हैं कि सिर्फ रंगों के आधार पर होने वाली भेद भाव की यह भावना मानव मन में कितनी गहराई तक विस्तार पा चुकी हैं।
यह घटना कुछ इस प्रकार घटित हुई थी। मिनियापोलिस के एक कन्विनिएन्स स्टोर से जब पुलिस के पास (911) फोन गया था कि जार्ज फ्लाॅयड नामक इस व्यक्ति ने एक पैकेट सिगरेट खरीदने के लिए स्टोर कीपर को बीस डाॅलर का जाली नोट पकड़वाया है। इस अपराध के कारण तीन गोरे पुलिस अधिकारियों ने आकर उसको तुरंत धर दबोचा और उनमें से एक अफसर ने अपना घुटना उसके गर्दन पर रख दिया। फ्लाॅयड द्वारा यह शिकायत किये जाने पर भी कि वह साँस नहीं ले पा रहा है, वह ऑफसर 8 मिनट 46 सैकेण्ड तक अपना घुटना वहाँ से न हटाया। यहाँ तक कि प्रत्यक्षदर्शियों के द्वारा अनुरोध किए जाने पर भी वह पुलिस अफसर विचलित न हुआ और इस तरह घटनास्थल पर उस शख्स की मौत हो गई।
यह घटना काले लोगों के प्रति अत्यथिक नफरत के परिणामस्वरूप घटाई गई थी। अतः इस घटना की चर्चा तुरंत विश्व भर में फैल गई । सोशल मिडिया पर जहाँ एक ओर इसकी तीव्र निंदा की गई वहीं मानवता को बचाने और काले लोगों को न्याय देने की गुहार भी मच गई । भारत के दिग्गज भी पीछे न रहे! और उन्होंने भी जोर शोर से इस मुहिम में शामिल होकर सोशल मिडिया पर तरह- तरह के पोस्ट लिख डाले।
यह सही है, कि इस भेदभाव और नृशंसता की केवल निंदा ही काफी नहीं है, बल्कि ऐसा करनेवालों के प्रति सख्त कारर्वाई भी होनी चाहिए। साथ ही उन लोगों को ऐसी सजा भी दी जानी चाहिए कि दूसरे लोग ऐसा करने के बारे में कभी सोच भी न पावे!
परंतु मुद्दा यहाँ सिर्फ इतना नहीं है। बात यह है कि जब भारतवासी काले लोगों के बचाव की मुहिम में शामिल होकर आंदोलन करते हैं तो मुझे बहुत हँसी आती है। लगता है, उन लोगों को यह याद नहीं कि वे स्वयं अपनी बहू- बेटियों के साथ क्या सलूक करते हैं। और सिर्फ बहू- बेटियाँ ही क्यों, आजकल तो लड़के भी फैयरनेस क्रीम लगाने लगे हैं!!
शादी के हर एक विज्ञापन में यह लिखा होता है कि गोरी और सुंदर कन्या की आवश्यकता है। मतलब कि अगर कन्या गोरी न हुई तो वह विवाह के उपयुक्त नहीं मानी जा सकती। और यदि किसी तरह अत्यधिक दहेज का लालच देकर विवाह करा भी दी गई तो ताउम्र ससुराल में उस कन्या को अपने रंग के लिए ताना सुनना पड़ता है।
हम भारतीय तो फिर भी उतने काले नहीं हैं। पूरा विश्व हमें brown कहती हैं। जब हमारा यह हाल है तो न जाने उन बेचारी लड़कियों का क्या हाल होता होगा जिनको ब्लैक कहा जाता है।
रंगभेद समाप्त हो चुका है, दास- प्रथा भी खत्म करा दी गई है। परंतु सबकुछ सतही स्तर पर ही। सही है कि आप खुले आम यह सब नहीं कर सकते। परंतु क्या मानव मन से सचमुच यह भेद भाव मिट पाई है? दूसरों के प्रति नफरत और भेदभाव, न कभी समाप्त हुआ है और न जल्द ही हो पाएगा। उपर्युक्त घटनाएँ उसी का प्रमाण है।
सवाल एक नहीं है, बल्कि कई सारे हैं। सिर्फ एक अकेले रंग की बात होती तो कोई खास बात न थी। परंतु जाति, धर्म, ऊँच-नीच, धनी-गरीब, स्त्री- पुरुष और न जाने कितनी सारी असमानताएँ हमारे भारतीय समाज में व्याप्त हैं। न जाने इन सबका खातमा कब होगा? कब हम इंसान को सिर्फ उनके इंसान होने के लिए ही , कद्र करना सीखेंगे!! न जाने कब हम अपने इन सब पाखंडों को त्याग पाएंगे?
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