आस्था का परिणाम

एक छोटा बच्चे की आस्था की कहानी

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 26 Jun, 2020 | 1 min read

यह कहानी थोड़ी पुरानी है। कुछ समय पहले एक गाँव में एक गरीब औरत रहती थी। उसका नाम था पूनम। उसका एक पाँच साल का बेटा था। उस बेचारी का और कोई भी न था। उसके पति की कुछ समय पहले मृत्यु हो चुकी थी। वे एक शिक्षक थे। पूनम का ईश्वर में बड़ा विश्वास था। उसने अपने बेटे को भी रोज प्रार्थना करना सिखाया था।

पूनम चाहती थी कि उसका बेटा भी पढ़-लिखकर अपने पिता की तरह ही एक शिक्षक बने। इसलिए उसने गाँव के हैडमास्टर से बड़ी मिन्नत करके अपने बेटे का उनके स्कूल में दाखिला करा दिया। टिंकू पढ़ने में बड़ा हीशियार था। चूँकि उसके पिता उसी स्कूल के शिक्षक थे। अतः उन लोगों ने उसकी फीस माफ कर दी थी। बेचारी पूनम के पास फीस देने के पैसे भी कहाँ थे।

स्कूल के सभी मास्टर टिंकू के होनहार होने के कारण उसकी प्रशंसा किया करते थे और साथ ही उनके भूतपूर्व सहकर्मी के बेटे होने के कारण उससे प्रेम भी करते थे। परंतु हेडमास्टर बड़ा लालची था।

एकदिन जब हेडमास्टर की बेटी की शादी थी तो उन्होंने सभी बच्चे से कहा कि घर से एक व्यंजन बनवाकर अगले दिन स्कूल में लेकर आए। टिंकू के हिस्से में दही आया। उससे कहा गया कि वह सारे बारातियों को खिलाने के लिए दही लेकर आए। शादी के लिए स्कूल को अच्छी तरह से सजाया गया। उसदिन और अगलेदिन सभी बच्चों की पढ़ाई से छुट्टी घोषित करा दी गई थी। उनको सिर्फ अपने हिस्से का पकवान और मिष्टान्न स्कूल में पहुँचाना था।

टिंकू जब घर आकर अपनी माँ से मास्टर जी का हुक्म सुनाया तो उसकी माँ की आँखों में आँसू आ गए। इतना पैसा तो था नहीं उसके पास कि उस छोटे से बच्चे को कभी एक गिलास दूध भी पिला सकें, बारातियों के लिए दही कहाँ से लावेगी? फिर भी अगले दिन टिंकू को उसने तैयार करके स्कूल भेज दिया। जब टिंकू ने दही के बारे पूछा तो उसकी माँ ने कहा कि रास्ते में गोपाल भैया को पुकारना। वही तुम्हारे लिए दही लेकर आएंगे।

अब अबोध बच्चे ने माँ की बात गाँठ बाँध ली। रास्ते में एक घना जंगल पड़ता था, जिससे होकर टिंकू रोज स्कूल जाया करता था। वहीं जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठकर वह गोपाल भैया को पुकारने लगा,

" गोपाल भैया, जल्दी दही लेकर आइए। देर होने पर मास्टर जी मारेंगे।"

कुछ देर बाद एक इंसान ग्वाले के वेश में टिंकू के पास आया और एक छोटा सा दही का कटोरा टिंकू के हाथ में दिया।

" इतना छोटा कटोरा क्यों लाए गोपाल भैया। मास्टर जी ने तो सभी बारातियों के भोजन के लिए मंगवाया था।"

" इतना बहुत है, टिंकू। इससे सभी बारातियों का पेट भर अच्छी तरह भर जाएगा।" कहकर गोपाल भैया जंगल के अंदर चले गए। टिंकू को फिर वे दिखाई न दिए।

इसके बाद, जैसा कि टिंकू ने कहा था, उसके हैडमास्टर इतना छोटा सा कटोरा लाने के लिए उसे पहले तो बहुत डाँटे फिर बारातियों को दही परोसने चले। जैसे ही वे किसी की परात में दही डालते और कटोरा पूरा खाली हो जाता, वह तुरंत फिर से भर जाया करता था। इस तरह सभी बारातियों को दही परोसने के बाद भी वह चमत्कारी कटोरा पूरा भरा हुआ मिला।

सबने टिंकू से पूछा कि उसे यह दही का कटोरा कहाँ मिला? तो बिना सोचे समझे टिंकू ने तुरंत सबको बता दिया कि यह तो गोपाल भैया उसके लिए लेकर आए थे।

दोस्तों, आप तो अब तक समझ ही गए होंगे कि टिंकू के ये गोपाल भैया और कोई नहीं बल्कि स्वयं यशोदानंदन थे। बच्चे की आर्त पुकार सुनकर उसकी सहायता करने वे सगुण रूप में प्रकट हुए थे।

किसी ने सच ही कहा है ,

" भक्त नहीं जाते कहीं, आते तो हैं भगवान।"

यदि भक्तिपूर्वक पुकारा जाए तो कहते हैं कि भगवान किसी न किसी रूप में जरूर प्रकट होते हैं। परंतु हमारी भक्ति सच्ची होनी चाहिए।


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