जीजिविषा: मनीप्लाॅन्ट सा

मनीप्लाॅन्ट से मिली जिन्दगी जीने की सीख

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 29 Sep, 2020 | 1 min read

श्रीतमा ने बिस्तर के चादर को उठाकर जोर से एक पटखनी दी।


कुछ धूल उड़े और साथ ही उसके अंदर का कुक्षीगत दुःख भी मानो उसी एक झटके से बाहर आ गिरा था। पिछले दो रातों से इस बिस्तर का प्रयोग किसी ने न किया था। शीरीष ऑफिशियल ट्यूर पर गए हुए थे, और श्री ने सोफे पर ही दोनों रातें काट दी थी।


सुबह के आठ बज रहे थे। 1800 वर्ग फूट के इस थ्री बी एच के फ्लैट में श्रीतमा इस समय बिलकुल अकेली थी।


जाते समय शीरीष बहुत गुस्से में था। श्रीतमा को अंदर बंद करके वह बाहर से ताला लगा कर चला गया था। घर में जितना राशन था उससे दो दिन तक किसी भाँति काम चल गया था। परंतु आज क्या होगा उसे न पता न था! भूख भी बहुत जोर से लग रही थी, उसे इस समय!


श्रीतमा इसलिए उदास थी। वह उनींदी आँखों से खिड़की के बाहर देख रही थी। न जाने कब से वह यूँ बाहर की ओर ही देखे जा रही थी। वस्तुतः उसकी नज़रें ही केवल खिड़की के बाहर थी, परंतु दर असल वह वहाँ का कुछ भी नहीं देख रही थी! असल में बीते दो दिन पहले को घटित सारी घटनाओं का वह मानसिक रूप से पुनरावलोकन इस समय किए जा रही थी।


उन दोनों का प्रेम- विवाह हुआ था। अपने घर से लड़कर ,अपना शहर,माता-पिता, सगे संबंधियों सबको छोड़कर शीरीष के लिए वह एक दिन दिल्ली चली आई थी!


उस दिन के शीरीष में और आज के इस शीरिष में कितना फर्क है!


विवाह के बाद एक साल तक बड़े मजे से बीता था। हर शनिवार- रविवार को घूमने जाना, कभी दिल्ली- दर्शन तो कभी लाँग ड्राइव करके वीकेंड वैकेशन। हफ्ते के पाँच दिन दोनों पति-पत्नी अपने दफ्तर में काम करते हुए वीकेन्ड का अधीर रूप से प्रतीक्षा किया करते थे। "वीकेन्ड मतलब आउंटिंग,मस्ती और no काम" शीरिष अकसर ऐसा कहते थे।


सबकुछ अच्छा चल रहा था। शीरिष को शादी के देड़ साल बाद प्रोमोशन भी मिल गया। बड़ी गाड़ी और रहने के लिए यह वाला घर किराए पर ले लिया था। सबकुछ ऑफिस की ओर से दिया गया था!


फिर तो जैसे सब कुछ एकदम अचानक ही बदल गया। शीरिष का रात को देर से घर आना, वीकेन्ड को ऑफिस-पार्टी अफिशियल ट्यूर इन्हीं में अब उनका वक्त बीतता गया। वह अब शराब भी पीने लग था!!


शीरिष इन दिनों श्रीतमा को लेकर बहुत possesive हो गये थे।


बहुत ही तुच्छ घटना को लेकर जिद्द करके श्रीतमा की सात साल पुरानी नौकरी उसने एकदिन छुड़वा दी थी। तब से श्रीतमा इस घर से बाहर नहीं निकल पाती थी। घर के काम- काज में उसने अपने आपको आबद्ध कर लिया था।


आजकल शीरिष का मूड हमेशा खराब रहा करता है। पहले गुस्सा गाली- गलौज और तो और अब श्रीतमा पर हाथ भी उठाने लग गया था!


अभी परसों की ही बात है, उसका गुस्सा इतना बढ़ गया था कि श्री को एक धक्का देकर वह घर से बाहर चला गया। श्रीतमा कहाँ पर गिरी, उसे कितनी चोटें आई -- यह सब भी देखने की भी जरूरत न समझी उसने। और जाने से पहले बाहर से कुंडी भी लगा गया था।


खिड़की के पास खड़ी श्रीतमा अपने घावों को सहला रही थी कि उसकी नज़र उसी खिड़की पर कभी उसके द्वारा लगाए उस मनी- प्लाॅन्ट पर जा पड़ी। उसे याद आया कि उसने एक हफ्ते से इस पर पानी नहीं डाला था, इसलिए पूरी बेल इस समय मुरझा गई थी। उसने झटपट गिलास में पानी लाकर उस पौधे के ऊपर डाल दी। पर शायद काफी देर हो चुकी थी!


उसकी जिन्दगी भी अब उसी मॅनीप्लाॅट जैसी थी। वह और जीना नहीं चाहती थी। उसे इस समय अपनी जिन्दगी बोझ समान लगने लगी थी। ऐसा कोई नहीं था जिसे वह सहायता के लिए पुकार सकती थी।


वह जानती थी कि शीरिष का कहीं अफेयर चल रहा है। और वह ट्यूर के नाम पर कभी- कभी उस औरत के साथ वक्त बीताने जाता है । वह औरत जिसका नाम रिमा है, शीरिष के ही दफ्तर में काम करती है। शायद उसकी सेक्रेटरी है। कई बार उसने शीरिष के फोन पर रीमा का मैसेज आते हुए देखा है। कभी- कभी असावधनतावश शीरिष काम करते हुए गुसलखाने चले जाते हैं और वे फोन लाॅक करना भूल जाते है । उस समय श्री ने रीमा के वे मैसेजेस देखे है।


श्रीतमा पंखे से लटकने के लिए फंदा तैयार कर रही थी । तभी उसके मोबाइल पर अनजान नंबर से एक काॅल आता है। काॅल रीसिव किया तो उसने पाया कि उसके पुराने ऑफिस के एक सहकर्मी विकास ने फोन किया। विकास उसे अपने ऑफिस में हाल ही में हुए वैकेन्सी के बारे में बताता है और उसे दुबारा ऑफिस ज्वाइन करने की सलाह कहता है।


असावधानतावश श्रीतमा के मुँह से उसके घर में बंद होने की बात निकल जाती है। विकास तब उससे पूछ कर सारी बातें पता कर लेता है। वह उससे उसके घर का पता लेता है और उससे कहता है कि वह तुरंत वहाँ पहुँच रहा है।


फोन रखने के बाद श्रीतमा का दो -दिन से भूखा प्यासा शरीर जवाब दे देता है। और वह विस्तर पर लुढ़क जाती है।


उसकी नज़र इस समय एकबार फिर उसी मनीप्लाॅन्ट की ओर जाती है। तो वह हैरानी से देखती है कि मुरझाए हुए मनीप्लाॅन्ट के कोने से एक छोटा सा पत्ता खिलने की कोशिश कर रहा है।


मरे हुए वृक्ष पर उसके कुछ बूंद पानी डालने से पुनः उसमें प्राणों का संचार हो रहा है।


मौत से जूझता हुआ वह नन्हा सा पत्ता एक हारी हुई जिन्दगी को फिर से उठ खड़े होने के लिए प्रेरित करने को काफी था!!




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