सीमा एक हाउसवाइफ थी। उसकी एक प्यारी सी पाँच साल की बच्ची थी स्नेहा। पति उसे बहुत चाहते थे, और उसकी हरेक बात का ध्यान रखते थे। परंतु इस समय में काम के सिलसिले में दो साल के एक प्रोजेक्ट पर विदेश गए थे। सीमा और स्नेहा दोनों पीछे देश में ही रह गए थे, क्योंकि उनको साथ ले जाने की इजाजत न थी।
स्नेहा स्कूल जाती थी इसलिए सीमा ससुराल में ही रुक गई ताकि बच्ची की शिक्षा में कोई दिक्कत न हो। सीमा के ससुर जी तो अच्छे थे, परंतु सास और ननद ने देखा कि सीमा को सताने का यह अच्छा मौका है। उनका बेटा/भाई अभी नहीं है सीमा का पक्ष लेने के लिए और मायका भी उसका दूर है। वे सीमा को इसलिए तरह तरह की यातनाएँ देने लगे।
मयंक के विदेश जाते ही उन लोगों ने घर की सारी नौकरानियों को छुड़वा दिया और सभी काम सीमा पर जबरदस्ती लाद दिया गया। एक ही काम उससे बार- बार करवाया जाता था। यहाँ तक कि धुले हुए वर्तन और कपड़े उससे दुबारा बेवजह धुलवाए जाते थे। पहले जो आटा चक्की से पीसवाकर लाया जाता था वह सब काम आजकल सीमा को अपने हाथों से करने पड़ते थे। और न कर पाने पर उस पर गाली-गलौच की वर्षा होती थी और कभी उसे मारा भी जाता था। यहाँ तक कि उसे अपनी बच्ची से भी मिलने न दिया जाता था।
सीमा सबकुछ सह रही थी। परंतु शायद भगवान उससे और परीक्षा लेना चाहते थे। इसलिए एकदिन विदेश से खबर आया कि उसके पति का दो दिन के बुखार में अचानक मौत हो गई है। दुःखों के साथ- साथ अनेक मुसीबतों का पहाड़ सीमा पर अब टूट पड़ा था! अब वह कहाँ जाए बच्ची के साथ?
इधर उसके मायकेवालों ने भी उसका और उसकी बच्ची का बोझ लेने को मना कर दिया। मायके में अब था ही कौन? सिर्फ भैया और उनका परिवार। सो, न चाहते हुए भी सीमा को बच्ची के परवरिश के खातिर वहीं रुक जाना पड़ा।
इधर सीमा को बेसहारा जानकर उसकी सास और ननद ने उस पर अत्याचार की मात्रा में बढ़ोत्तरी कर दी।
रोज़-रोज़ के इस झगड़े और अशांति से तंग आकर सीमा ने खुदकुशी करने का निर्णय लिया। एकदिन आधी रात को जब सबलोग खा- पीकर सो चुके थे तो सीमा घर से निकल पड़ी। इरादा था कि नदी में कूदकर अपनी जान दे देगी। परंतु कहते हैं कि मरने से पहले जीवन बड़ा सुंदर लगने लगता है। अपनी बच्ची का चेहरा याद करके वह वहीं किनारे पर बैठकर रोने लगी। सोचने लगी कि उसके चले जाने के बाद उसकी बच्ची का क्या होगा? लेकिन उसके पास कोई दूसरा उपाय भी न था।
तभी एक शख्स जो कि काफी देर से उसी की तरह नदी के किनारे बैठकर पानी का बहाव देख रहा था, अचानक उठकर सीमा के पास आता है और उसकै रोने के कारण पूछता है। सीमा उसे अपने असहाय पन की सारी कथा कह सुनाती है। तब अजनबी उसे एक वाक्य कहता है-" तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो।"
फिर एक कागज पर कुछ लिखकर सीमा को देता है और कहता है ," कल इस पते पर जाकर कोमल से मिलना और यह उसे दिखाना। तुम्हारा काम बन जाएगा। चलो, अब तुम्हारी सारी मुसीबतों का अंत हुआ समझो। जाओ, अब घर जाकर सो जाओ और कल, एक नया सवेरा तुम्हारे लिए इंतजार कर रहा होगा।"
अगले दिन सीमा को उस दफ्तर में एक अच्छी सी नौकरी मिल गई और वह अपनी बच्ची के साथ एक नई जिन्दगी की शुरुआत कर पाई।
वह अजनबी एक मशहूर उद्योगपति था। उनसे ऐसी हालत में मिलना सीमा के लिए किसी दैवी संयोग से कम न था।
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