जब तुमसे नजरे मिलाने की हिम्मत जुटा सकी मैं,
तब तुम "तुम" न थे,
मैं भी कहाॅ " मैं" रह गई थी?
कोई और हो गए थे हम-तुम।
किसी और की हो गई थी हमारी जिन्दगियाॅ,
रास्ते अलग थे,
दुनिया अलग बसा ली थी हमने।
सबकुछ तो था हमारे पास।
पर, यादें बेशुमार,
बेचैन कर देती थी कभी-कभी।
कुछ प्रेमोन्माद का माहौल-सा बन रहा था
हम फिर डूब रहे थे---
अपनी ही भावनाओं के बवंडर में।
नाजायज कुछ भी नहीं होता प्यार में,
इसलिए-- चीख-चीखकर घोषित करना चाहती है
मेरी अनकही
"हाॅ, मुझे तुमसे प्रेम है, प्रेम है ।"
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