"हैलो!"
माहिरा संग अचानक मार्ग में टकराते ही उसने एक छोटी सी मुस्कान के साथ आशीष को हौले से 'हैलो' कहा और उसे राह देती हुई वह एक ओर हट गई ! फिर उसने झट से अपना सर नीचे कर लिया।
आशीष को सामने देख कर न जाने माहिरा को आज कल यह क्या होने लग जाता है!
उसका सारा चेहरा गुड़हल के फूल के समान लाल वर्ण धारण कर लिया। मानों शरीर का सारा खून इस समय उसके चेहरे के इर्द-गिर्द आकर जमा होने लग गया! साँसें भी उसकी कुछ तेज- तेज़ चलने लगी थी।
अभी उसका मन आशीष को बहुत कुछ कहना चाह रहा था, परंतु जीभ हमेशा की ही तरह, ऐसे मौकों पर, दगाबाज़ी कर बैठी थी।
हर बार की तरह ही उसकी जिह्वा जो इस समय तालु से जा चिपकी थी तो फिर एक ढीठ की तरह वहीं की वहीं चिपकी रह गई---न तनिक इधर हिली न उधर!
इधर, आशीष भी उसे एक छोटा सा" हाई!" कह कर बगल से तेजी से निकलने ही वाला था कि तभी उसके कानों ने सुना,
" कैसे हो आशीष? बहुत जल्दी में हो क्या? थोड़ी देर रुक सकते हो?"
अपने जिस्म की समस्त ताकत को एकत्र कर एक ही साँस में माहिरा ने किसी भाँति ये तीन प्रश्न आशीष से पूछ डाले थे!!
आशीष को, लेकिन अपने ही कानों पर, विश्वास न हुआ कि माहिरा जैसी लड़की,, भी , उससे बातें करना चाहती है?!! उसका हालचाल पूछ रही है?!! क्या करेगी वह उसका हाल जानकर?!
माहिरा कक्षा की उन सबसे खूबसूरत लड़कियों में से थी जो अपनी सुंदरता के कारण थोड़ी घमंडी भी थी।
कक्षा के सभी लड़के इसलिए माहिरा को पीठ-पीछे "बद-दीमाग", "खडूस लड़की", "नक्की" और जाने क्या- क्या कहकर चिढ़ाया करते थे। वजह यह थी कि माहिरा कभी भी किसी लड़के से सीधे मुँह बात न किया करती थी। अतः आशीष भी उसे ज्यादा भाव न दिया करता था।
आशीष अपनी कक्षा की दूसरी लड़की रीमा को पसंद करता था। उसी के साथ समय बीताना आशीष को सबसे अच्छा लगता था।
रीमा भी माहिरा की जैसी ही खूबसूरत लड़कियों की शुमार में थी। बल्कि अपने ब्याज़ कट, शार्प लूक में वह माहिरा से भी अधिक स्मार्ट दिखती थी। अच्छी शक्लोसूरत के अलावा अपनी वित्तीय स्थिति से वह अमीरज़ादी थी।
एक बड़ी सी गाड़ी में घर का ड्राइवर रीमा को रोज़ स्कूल के गेट के सामने छोड़कर जाया करता था।
रीमा एक सामाजिक तितली ( social butterfly ) थी, जो जल्द ही सबसे घुल-मिल जाया करती थी। वह अकसर लड़कों से घिरी हुई ही पाई जाती थी। वे लड़के भी उसकी मित्रतासूची में शामिल होने के कारण काफी गर्व महसूस करते थे।
आशीष भी उन्हीं में से एक था। उसने भी स्वयं को तब खुशकिस्मत समझा जब रीमा ने एक दिन उसे प्रोपोज़ किया था।
रीमा के पिताजी विधायक थे। अतः इलाके भर में उनकी काफी अच्छी साख थी। इसीलिए, शायद कक्षा लेते समय शिक्षक- शिक्षिकाएँ भी रीमा का विशेष खयाल रखा करते थे। वे हमेशा रीमा की ओर देख कर ही पढ़ाया करते थे। कभी- कभी तो यह देख कर अन्य छात्र ऐसा महसूस करते थे कि शिक्षक अन्य छात्र- छात्राओं की उपस्थिति से वाकीफ़ है भी या नहीं? ज़ाहिर सी बात थी कि रीमा क्लास में टाॅपर थी।
इस समय, आशीष रीमा से ही मिलने जा रहा था। परंतु रास्ते में वह माहिरा से टकरा गया था।
आज न जाने किस उद्देश्य से माहिरा आशीष के साथ बातचीत करने को उतावली हो रही थी! शायद स्कूल का आखिरी दिन था, इसलिए। इतने वर्षों के सारे गिले शिकवे वह एक बार कह लेना चाहती थी। लेकिन आशीष के पास इतना सब कुछ सुनने के लिए समय न था।
अतएव ज़रा उपेक्षामिश्रित स्वर में वह माहिरा से बोला,
" ठीक हूँ!" ---फिर सौजन्यतावश, न चाहते हुए भी आशिष ने उससे पूछ ही लिया--
" और तुम?"
" मैं भी ठीक! अच्छा अपना हाथ दिखाओ?" माहिरा अचानक बोली।
" हाथ,,, ? क्यों मेरे हाथों में क्या है?" आशीष जाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा चुका था। पर बड़ी हैरानी से वापस मुड़ कर पूछा,
" तुम्हें मैं अपना हाथ क्यों दिखाऊँ? क्या मतलब है तुम्हारा!"
कहते हुए आशीष ने अपना दाहिना हाथ आगे प्रश्नचिह्न की मुद्रा में बढ़ा दिया।
पर माहिरा उससे कुछ न बोली-- केवल पीछे से उसने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाया और गहरे नीले स्फटीक ( crystal ) की बनी हुई एक सुंदर गणेश जी की छोटी सी मूर्ति आशीष के बढ़े हुए उस हाथ में उसने रख दी।
रखते समय माहिरा की ऊंगलियाँ आशीष की बढ़ी हुई हथेली से हौले से स्पर्श हो गई थी!
उस अनजान छुवन के अहसास में न जाने ऐसा क्या था कि दोनों ही जिस्म में एक अजीब से सिहरन पैदा हो गई!
दोनों का शरीर ही एक साथ पुलकित हो उठा था। माहिरा ने तब अपना हाथ झट से पीछे खींच लिया!
आशीष को उसकी यह हरकत कुछ समझ में न आई।
"यह क्या है?"
उसने माहिरा की ओर देखा तो, माहिरा शरारत भरी आँखों से हँसती हुई बोली,
" तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट!!!" " हैपी बर्थडे!"
" मेरा बर्थडे!! हैंऽऽ ---पर वह तुम्हें कैसे मालूम?!!"
" भूल गए? तुम्हीं ने कभी कहा था!"
" मैंने?" कब?!!"
" आज से ठीक दो वर्ष पहले,ऐसे ही फरवरी का एक दिन था। इत्तेफाक से उस दिन भी हमारा फेयरवेल होना था! दसवी कक्षा का फेयरवेल! याद आया कुछ?" इतना कह कर माहिरा वहाँ से खिसक ली।
और आशीष,, वहीं पर हक्का - बक्का सा मानों एक अनसुलझी पहेली को सुलझाता हुआ खड़ा रह गया!
आज उनके हाई स्कूल में बारहवीं कक्षा का फेयरवेल होने वाला था। सारे बच्चे बन ठन कर एक- एक कर आने लगे थे।और स्कूल के मैदान में उनके लिए रखे बेंच पर बैठने लगे थे।
इसका मतलब आज के बाद से उनके स्कूली- जीवन का समापन होना था! हाँ,, उन लोगों का बारहवीं का इम्तेहान होना अभी बाकी था। फिर सभी छात्र अपने- अपने निजी जिन्दगी की राह पर निकलने वाले थे।
दो वर्ष पहले, आशीष और माहिरा अपने दोस्तों के साथ इसी स्कूल में पढ़ने के लिए आए थे। उनका ज्ञानभारती पब्लिक स्कूल दसवीं कक्षा तक ही था। अतः आगे की पढ़ाई को ज़ारी रखने के लिए उसके क्लास के सभी बच्चों ने नज़दीक स्थित "स्काॅलर्स एकेडेमी" नामक इस हाई -स्कूल में प्रवेश ले लिया था।
ज्ञान-भारती पब्लिक स्कूल को छोड़ते समय दसवी कक्षा के प्रथम बैच के सभी छात्रों को एक शानदार फेयरवेल दिया गया था।
आशीष और माहिरा उन दिनों करीबी दोस्त हुआ करते थे। बल्कि आशीष के दिल में माहिरा के लिए जो जगह आरक्षित थी, वह दोस्ती से कुछ बढ़कर ही थी।
वह दिन- रात उसी के सपने देखा करता था। एक बार शायद उसने माहिरा को प्रोपोज़ करने की कोशिश भी की थी। परंतु माहिरा की ओर से उसे कोई प्रतिक्रिया न मिल पाई थी। इसलिए बात कभी आगे न बढ़ पाई थी।
फिर नए स्कूल में आकर नए साथियों को पाकर आशीष माहिरा को भूल गया था। फिर रीमा उसकी जिन्दगी में आई तो उसकी जिन्दगी का रुख ही पूरी तरह से बदल गया था।
माहिरा, यदि किसी झिल का ठहरा हुआ पानी जैसी थी तो रीमा हर पल झर- झर बहती उस पहाड़ी झरने की तरह थी जिसकी शोभा हर किसी को थोड़ी देर के लिए मंत्रमुग्ध कर देती थी। लोग उसकी चंचलता में खोकर मोहाविष्ट के समान उसकी ओर आकृष्ट होते चले जाते थे।
आशीष ने दूर जाते हुए माहिरा की ओर देखा। आज उसने हल्के आसमानी रंग के सलवार सूट के ऊपर सलीके से चुनरी ओढ़ रखा था। माथे पर एक छोटी सी बिंदी भी थी।आज पहली बार आशीश ने उसे आँखों की कोरों में काजल भरते हुए देखे थे! होठों पर उसकी लिपस्टिक की लाली भी थी। कुल मिलाकर माहिरा का रूप पहले से और अधिक निखर आया था। उसके रूप- यौवन का आकर्षण आज कई गुणा बढ़ गया था!
आशीष ने लंबे समय के बाद माहिरा को ध्यान से देखा। वह पहले से ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी! अचानक उसकी नज़र अपने हाथों में पकड़े उस छोटे से गणेश जी की मूर्ति की ओर गया! कारीगर ने बड़े जतन से और बहुत बारीकी से उस मूर्ति को बनाया था! सूर्य की रौशनी उसमें पड़ते ही वह झिलमिल कर उठा। उस मूर्ति की दैविक सुंदरता इस समय देखते ही बनती थी।
" गणेशजी सफलता और सिद्धि के प्रतीक हैं।" बचपन में आशीष की माँ हमेशा उससे कहा करती थीं।
अतः हर बार इम्तीहान में बैठने से पहले आशीष गणेशजी को स्मरण किया करता है। यह उसकी पुरानी आदत थी। वह बचपन से ही गणेश जी का भक्त था। अतः हाथ में पकड़े हुए उस मूर्ति को आशीष ने एक बार अपने माथे से लगाया और फिर उसको अपनी पतलून की जेब में रख ली।
एकबार उसके मन में यह खयाल आया कि माहिरा को उसकी पसंद के बारे में कैसे पता चला?
" ऊँह,,, मुझे क्या मालूम,, कैसे?"
" लड़कियाँ सारी बहुत रहस्यमयी हुआ करती है!"
अपने आप को यह कहता हुआ आशीष फिर बड़े- बड़े कदमें भरता हुआ उस तरफ चल दिया जहाँ रीमा दोस्तों के साथ खड़ी खिल- खिला रही थी।
क्रमशः
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