टिना हाथ में वह चेन वाली घड़ी लेकर अतीत की गहराइयों में डुबकी लगा रही थी कि अचानक डोर बेल बज उठता है। वह जल्दी से अपने पर्स में घड़ी को छुपा देती है। फिर सारांश का सूटकेस बंद करके उसे दीवार से टीकाकर खड़ा देती है। इतनी देर में दूसरी बार डोर- बेल बज उठता है।
" जरूर वेटर चाय- पकौड़ा लेकर आया होगा। बड़ी देर कर दी,,, कब से चाय की तलब लगी थी,,, शायद पकौड़े के लिए सब्जियाँ खेत से तोड़ने गया था! "
"अभी आई ,,भैया, जरा रुको!" कहकर वह जल्दी- जल्दी दरवाज़ा खोलने जाती है। दरवाज़ा खोलने के बाद उसे कुछ दिखाई नहीं देता। बाहर घुप्प अंधेरा था। प्रकाश में रहने के कारण अचानक उसे अंधेरे में कुछ दिखाई न दिया। लगता है, किसी ने काॅरीडोर की बत्ती न जलाई थी!!
" ज़रा रुकिए" कहकर टिना मोबाइल का टर्च जलाने की कोशिश करने लगी। बैटरी उसमें न के बराबर थी। कल रात के बाद से उसे चार्ज करने का ध्यान ही न रहा। "-- होटलवाले बड़े लापरवाह किस्म के है!! सैलानियों से इतना पैसा लेते हैं परंतु सेवा के नाम पर वही दोयम दर्जे की चीज़ें--- ट्रीप एडवाइज़र पर इनका बड़ा नाम देखकर ही सारांश से कहा था मैंने, यह होटल बुक करने के लिए! वर्ना क्या मनाली में होटलों की कोई कमीं है? -- पर देखो इनका हाल! बिजली के पैसे बचाने के लिए बत्ती गुल कर दी! --- नाम बड़े और दर्शन छोटे!"
इसी तरह मन ही मन झुंझलाते हुए टीना हाथ में पकड़े हुए अपना मोबाइल का टर्च जलाकर जैसे ही दरवाजे पर फोकस करती है कि चार गुँडे किस्म के लोग कमरे में अचानक घुस आते हैं। उन गुंडों में से जिसकी मूछें साउथ इंडिया के फिल्म इंडस्ट्री के हीरों जैसी थी वह सीधे टीना के पास आकर उसे दोनों हाथों से पकड़कर, उसके हाथों को पीठ की तरफ मोड़कर अपने कब्ज़ें में ले लेता है।
और बाकी तीनों तब तक पूरे कमरे मैं फैल जाते हैं और सामानों की तल्लाशी करने लगते हैं। एक आदमी सारांश के बारे में पूछता है, पर टिना उसे जवाब दिए बिना अपना हाथ छुड़ाने में लग जाती है। उसका हाथ दुखने लगा था। काफी बलशाली था वह साउथ का हीरो। टीना की हर कोशिश नाकाम रह जाती है। दो आदमी तब तक बाथरूम और पीछे का दरवाज़ा खोलकर आंगन में भी ढूँढकर आता है।
" नहीं है सरदार!" इतना कहकर हिमाचली भाषा में न जाने चारों क्या - क्या कहते हैं जिसको टिना समझ नहीं पाती। इसके बाद उस टाॅलीवुड के हीरो ने टिना का हाथ- पैर रस्सी से कसकर कमरे में रखी की इकलौती लकड़ी की आलमारी के हैन्डल से बाँध दिया और उसके मुँह में एक कपड़ा भी ठूँस दिया।
टिना की हालत इस समय ऐसी थी कि वह अपनी जगह से हिल- डुल नहीं पा रही थी! लेकिन उन चारों की बातें वह बखूबी सुन पा रही थी! चारों की भाषा न समझते हुए भी टिना इतना तो समझ पा रही थी कि ये चारों जिस लिए यहाँ आए थे, उनका वह मनोरथ पूरा नहीं हुआ! उनके स्वर में निहित निराशा को टिना बखूबी समझ पा रही थी। तभी जो आदमी उन चारों में से छोटे कद का था उसने अपनी जेब में से एक रामपुरिया निकाली। उसकी तीखी धातु से बनी नोक कमरे में,फैली रौशनी से चमक उठी थी।
वह चाकू लेकर टिना की दिशा में आगे बढ़ने लगा। इसका परिणाम सोचकर टिना सिहर उठी थी। वह अकेली, ये चार लोग-- कब तक इनको रोक पाएगी? इनका सरदार उस समय सोफे पर बैठ गया और कुछ सोचने लगा! बाकी दोनों तब तक उन लोगों का सामान, टिना का पर्स कोस्लेट सब खोलकर देखने लगे। टीना के पर्स से इनको दस हज़ार रुपये नकद और सारांश के सूटकेस में भी करीब पंद्रह हजार नकद और एक सोने की चेन मिली! जिसे उन दोनों ने अपनी जेब में डाल लिया।
टिना उनको मना करने के लिए मुँह से आवाज़ निकालने लगी। पर मुँह कपड़े से बँधा होने के कारण कोई स्पष्ट आवाज़ वह न निकल पाई! टिना के हाथों में जो दो सोने के कंगण थे उसे उस काॅलीवुड के हीरो ने तो पहले ही छिन लिया था। इस समय उन दोनों के साथ जो थोड़े बहुत नगद और ज़ेवरात थे वे सब भी इन लोगों की जेबों में समा चुके थे।
टिना का दिमाग तेजी से सोचने लगा कि ये चारमूर्ति कौन हैं? आखिर किस मकसद से यहाँ आए हैं? क्या महज़ चोरी ही इनका उद्येश्य है? फिर सारांश को क्यों ढूँढ रहे हैं? उसके साथ क्या करना चाहते हैं? उसने अपनी नज़रें जब चाकूवाले की ओर घुमाई तो देखा कि वह चाकूवाला चाकू लेकर सीधे टिना के गरदन पर रखकर खड़ा हो गया। फिर सरदार से उसे खत्म कर देने के लिए पूछने लगा।
सरदार ने लेकिन उसकी बातों का कोई जवाब न दिया। परंतु उसने कोई आपत्ति भी नहीं जताई थी - यह देखकर वह नाटा आदमी चाकू को टिना के और करीब लाता चला गया। अब लगा कि अब रुकेगा नहीं। तब टिना दम साधे किसी अनर्थ का इंतज़ार करने लगी। टिना के दिल ने उस धिक्कारा। बोला कि नहीं वह अपनी हनीमून में आकर इस तरह अपनी बली नहीं देना चाहती! सारांश भी जाने कब से गायब है।
"थाने जा रहा हूँ " मेसैज करके जो गया सो अबतक नहीं लौटा। टिना ने अपनी सारी शक्ति इकट्ठी की और एक बार जोर लगाकर उस आदमी के हाथ से चाकू को गिराने में सक्षम हो गई। हाथ- पैर बँधे होने के बावजूद उसने अपने शरीर की समस्त शक्ति को एकजुट किया और घूमाकर उसे एक झटका दिया। बचपन में सीखा हुआ ताइकोन्डू काम आ गया था! वह आदमी इस विरोध के लिए तैयार नहीं था, और वह जमीन पर बैठ गया। चाकू उसकी हथेली से होकर गुज़री थी और अपना निशान छोड़कर गयी थी, जिसमें से खून की एक छोटी सी नदी बह निकली थी!
साथी को जख्मी होता देखकर तीनों आदमी टीना पर टूट पड़े। टिना की अब खैर न थी। यह सोचकर टिना ने मारे डर के अपनी आँखें बंद कर ली! अब ईश्वर ही मालिक है उसका,यह सोचकर शायद उन्हीं का ध्यान करने लगी! एक बलिष्ठ हाथ ने आकर उसकी गर्दन को दबाया। टिना की साँस रुकने लगी। तभी बाहर से कुछ दौड़ते कदमों की आहट हुई।
कुछ लोग भागते हुए अंदर आए और इन चारों को पकड़कर पीटने लगे। टिना ने देखा कि वे सब होटल के वेटर और स्टाॅफ थे। वेटर चाय पकौड़ा देने आया था, परंतु यहाँ की परिस्थिति के संकट को भाँपकर तुरंत जाकर लोगों को इकट्ठा करके टिना के बचाव के लिए आ गया।
कुछ दस एक मिनट में एक पुलिस वैन आई और उसमें से उतरें काॅनस्टेबलों ने चारों को अपनी गिरफ्त में ले लिया।
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