सुबह उठी तो मायरा को याद आया कि कल जरूरी कागज़ात उसने ड्राइंग- रूम में ही छोड़ दिए थे। दफ्तर से आकर उन्हें उठाने की याद ही न रही! दिल इतना दुखी था उसका, पर वे कागज़ात् बेहद जरूरी हैं।
माँ का डेथ- सर्टीफिकेट का ऑरिजनल भी उसमें है!
कल ही बैंक जाकर जिसे जमा करवाना है। अगर माँ की सम्पत्ति में उसे अधिकार चाहिए तो। अब नौकरी तो गई हाथ से। माँ की जमा पूँजी की रकम भी कुछ- कुछ उनकी चिकित्सा में खर्च हो चुकी हैं। जितनी बची है उससे पढ़ाई और घर खर्च के लिए अगर रकम निकल आए तो ग्रेजुएट होते ही वह कोई अच्छी सी नौकरी की तलाश कर लेगी।
यह सब सोचते हुए जैसे ही मायरा उठी तो उसने महसूस किया कि उसका सिर ज़ोरों से दुःख रहा है, कल रात के समान ही। बाम लगाकर फिर वह कुछ देर के लिए वह विस्तर पर लेट गई। तब तक बुआ जी उसके लिए अदरक वाली चाय लेकर आई।
चाय पीकर वह अब थोड़ा ठीक महसूस करने लगी थी। कागज़ातो को सहेज कर रखने के लिए उसने फिर से उसी अलमारी को खोला। सारे फाइल्स समेटने के बाद उसे वहाँ लाॅकर में माँ की एक छोटी सी डायरी मिली। खोल कर देखा तो माँ की हिसाब किताब की डायरी थी। जिसमें रुपये- पैसों का जोड़ना घटाना -- यही सब ब्यौरा लिखा हुआ था। कुछ पृष्ठों में उनके सारे बैंक खातों का नंबर, लाॅकर का ब्यौरा,पासवर्ड और पिन भी लिखा हुआ था। उसकी बड़ी काम की चीज है, ऐसा सोचकर डायरी को अपने पास रख कर पुनः मायरा ने माँ की उस अलमारी को चाबी से बंद कर दिया।
जब पलंग पर बैठी मायरा उस डायरी के पन्ने पलट रही थी तो उसे वहाँ माँ की एक श्वेत- श्याम तस्वीर मिली। माँ के युवा दिनों की छवि देखकर उसका मन मोहित हो गया। माँ की गोदी में एक छः महीने का बच्चा भी था। जो फोटोग्राफर की ओर देख कर दंतहीन मुस्कान दे रहा था। मायरा को लगा कि शायद यह उसी की बचपन की तस्वीर होगी। वह बचपन में कैसी दिखती थी, इसके पहले उसने अपनी कोई तस्वीर न देखी थी।
घर पर कोई पुरानी अलबम भी न था। माँ से बहुत बार पूछा था-- पर उसके बचपन की बात कहते ही उसकी माँ पापा को याद करके रो पड़ती थी। अतः यह बात कभी आगे बढ़ी ही नहीं पाई थी।
" अरे नहीं,, रुको फोटो के पीछे भी कुछ लिखा हुआ है!" मायरा मन ही मन बुदबुदाई और उस धुँधली होती स्याही में लिखे हुए शब्दों को पढ़ने लगी-- " मैं और,,,, अनिकेत!"
"अरे यहाँ भी अनिकेत? आखिर कौन है यह अनिकेत? माँ से उसका क्या रिश्ता है?"
" अरे बिट्टो! तुमने बताया नहीं,, तुम्हें कब से दफ्तर जाना है?जब तक यहाँ हूँ, सुबह उठकर तुम्हारा टिफिन बना दिया करूँगी।" बुआ जी कह रही थी।
परिवार और स्नेह- संबंध के नाम पर बस यही एक बुआ जी ही अब मायरा के रिश्ते में बची हुई थी। पर बुआ जी को यूँ अचानक कमरे में दाखिल होते देख कर मायरा ने जल्दी से उस फोटो को डायरी के नीचे छुपा दिया!
" बुआ जी,वह,,,, नौकरी ,,,,उन लोगों ने किसी और को दे दिया है!"
" यह क्कक्या कह रही है बिट्टो तू,,,? ऐसा कैसन कर सकत है कोई? इ भी किसी ने सुना है कभी?" मारे आश्चर्य से बुआ जी अपनी ग्रामीण लहजे में बोल पड़ी थी।
शहरी भाषा उनकी जुबान से फिसलने लगी थी। " यहाँ बैठिए बुआ जी!!" और मायरा ने हाथ पकड़ कर बुआ जी को अपने पास पलंग पर बिठा लिया। " ऐसा ही हुआ है, बुआ जी।
कल जब दफ्तर गई तो उन लोगों ने बताया कि वह जगह उन्होंने किसी और को दे दी है। जो उस पद के लिए अधिक उपयुक्त थे।"
" और तूने वह मान लिया? अरे बिट्टो यह तेरा हक है। तेरी माँ की जगह है वह--- तूझे ही मिलनी चाहिए। तूने कुछ कहा क्यों नहीं बेटो?"
" बहुत बार कहा बुआ जी! एक अफसर के केबिन से दूसरे अफसर की केबिन तक दौड़ी। पर कुछ न हुआ। सब यही कह रहे थे ' हम कुछ नहीं कर सकते हैं। आखिर हमें भी कायदे से चलना पड़ता है'!"
" यह तो हद हो गई! पहले खुद बुलाते हैं, फिर कायदा समझाते हैं! अच्छा यह बता कि जिसको यह जगह मिली है ,, उसका नाम पूछा तूने?"
" जी बुआ जी,,,, अनिरुद्ध नाम है!"
" कहाँ रहता है?" " यह तो नहीं मालूम बुआ जी।"
" हम्म,,,,," कह कर बुआ जी कुछ देर तक बैठी कुछ सोचती रही।
" सुन बिट्टो,,,, मुझे ऐसा लगता है कि तूझे छोटी और नासमझ समझकर वे लोग कोई गंदा खेल, खेल रहे हैं। तू एक काम कर,, किसी तरह अनिरुद्ध का पता कर। फिर देखते हैं उस बच्चू को। मैं भी चलूँगी तेरे साथ!"
" पर कैसे पता करूँ, उनका,,, बुआ जी?"
" अरे दफ्तर में अपना पता तो लिखाया होगा न उसने? वहीं फोन कर के पूछ ले!"
" हाँ , यह ठीक रहेगा!" अंधेरे में आशा की एक हल्की सी किरण दिखाई दी मायरा को। बुआ जी की सलाह उसे बहुत पसंद आई।
उसने पूछा, " अगर पता मिल जाए उनका, तो क्या सचमुच आप भी मेरे साथ चलेंगी, बुआजी?"
" चलूँगी क्यों नहीं, बिट्टो? अब तेरा और मेरे सिवा है ही कौन? मैं तुझे इस तरह जंग हारते हुए नहीं देख सकती, समझी?"
कहकर बुआ जी ने मायरा की ठुड्डी पकड़कर जरा सी हिला दी। अचानक मायरा को अपनी इस बुआ जी पर बहुत सारा प्यार आने लगा और वह अपनी दोनों बाहें फैला कर बुआ जी के गले से लग गई!
क्रमशः
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👏
Nice
शुक्रिया चारु जी और रुचिका जी😍🥰
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