प्रतिभाएँ हमेशा से ही अत्यंत विरल हुआ करती है। हर कोई प्रतिभाशाली नहीं होता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उससे भी कम वे लोग हैं जो इन प्रतिभाओं का सही- सही कद्र कर सकते हैं? अब ज़ाहिर सी बात हैं कि एक प्रतिभाशाली व्यक्ति ही दूसरे प्रतिभाशाली की कद्र कर सकता है।
परंतु ऐसा अकसर होता नहीं है। बीच में ईष्या और प्रतिस्पर्धा नामक मानवीय मन की दुर्बलताएँ आ जाती हैं, जो किसी का कद्र करने से हमें रोक लेती हैं। आज ऐसी तीन घटनाओं का जिक्र करूंगी जिससे आप स्वतः ही समझ जाएंगे कि ईष्या किस कदर किसी के सद्गुणों का घातक सिद्ध हो सकती है।
पहली घटना:- क्या आपको पता है कि रेडियो अथवा wireless का आविष्कार किसने किया है? जानती हूँ कि आप तुरंत गूगल करेंगे और कहेंगे कि जी॰मारकोनी ने 1895 में इटली में किया था। और इसके लिए उन्हें नोबल पुरस्कार भी मिला था। परंतु यह सच नहीं हैं। दरअसल, मारकोनी के कुछ महीने पहले ही डाॅ जे॰ सी॰ बोस ने कलकत्ता में इसका आविष्कार किया था और इस विषय पर उन्होंने साइन्स जर्नल पर लेख भी लिखा था । परंतु उनका फार्मूला किसी तरह लीक हो गया था। उन्होंने इस विषय पर पेटेन्ट लेने में जरा देर कर दी थी। मारकोनी भी इसी विषय पर रिसर्च कर रहे थे ।और उनका प्रयोग मान्य हुआ और फिर उन्हीं को इसके आविष्कर्ता के रूप में मान्यता भी मिली।
इस घटना से डाॅ जगदीशचंद्र बोस को इतना दुःख हुआ था कि वे अपने प्यारे फिजिक्स का अध्यापन, परीक्षण सबकुछ छोड़कर एक गाँव में जाकर बस गए थे। वहाँ पर उन्होंने पौधों का विकास मापने के लिए क्रेस्कोग्राफ नामक यंत्र का आविष्कार किया था। परंतु बहुत कम लोग आज यह जानते हैं कि बोस पहले एक पदार्थ-विज्ञानी थे और वे प्रेसीडेन्सी काॅलेज में फिजिक्स के अध्यापक थे। वहीं उसी काॅलेज में उनकी प्रयोगशाला हुआ करती थी।
दूसरी घटना :- बीसवी सदी की है। नब्बे के दशक में भारत का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी और विश्व का दूसरा टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल सृजन किया था डाॅ सुभाष मुखोपाध्याय ने। उस बेबी का नाम उन्होंने दुर्गा ( कनुप्रिया अग्रवाल) रखा था। यह घटना आज के झारखंड में प्रदेश में घटी थी। परंतु इस आविष्कार का श्रेय मिला मुंबई के एक डाॅक्टर, हर्ष चावड़ा को। जिन्होंने दरअसल भारत के दूसरे टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया था। इस घटना से डाॅ सुकुमार इतने दुःखी हुए थे कि वे डिप्रेशन में चले गए थे और अंत में उन्होंने गले में फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
आज सबको पता है कि सत्य क्या है। परंतु उस वक्त यदि लोग इस बात को मान जाते तो उस महान वैज्ञानिक/ डाॅक्टर को अपनी जान न देनी पड़ती।
इस घटना पर एक फिल्म भी बनी थी, "एक डाॅक्टर की मौत"।
तीसरी घटना घटी थी सर सी॰वी ॰ रमन जी के साथ। स्थान था कलकत्ता। रमन साहब मद्रास से कलकत्ता यह सोचकर आए थे कि कलकत्ता में रिसर्च की अधिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। परंतु यहाँ आकर यहाँ के स्थानीय वैज्ञानिकों से उनका किसी कारण से पंगा हो गया था और उन वैज्ञानिकों ने उन्हें कलकत्ता से वापस जाने के लिए बाध्य कर दिया। परंतु इससे उनका कुछ बिगड़ा नहीं। वे जी तोड़ मेहनत करते रहे और आखिरकार रमन एफेक्स के लिए फिजिक्स का नोबल पुरस्कार उन्हीं को मिला।
इस तरह हम कह सकते हैं कि हमारे देश के लोगों असली प्रतिभा का कद्र करने में हमेशा से ही पीछे रहे हैं। शायद यही वजह है आज के Brain drain का।
अब जो भी होता है, वह कभी अकारण नहीं होता है।
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