दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय विमानवन्दर में उतर कर आशीष ने सबसे पहले तो सामान की पेटी से अपना बड़ा सा, बेहद भारी सूटकेस को उठाया। उसे सामान की ट्राॅली में रखकर फिर मैसेज़ेस चेक करने के उद्देश्य से उसने अपने फोन को ऑन कर लिया। लिज़ा के कुछ अंतरंग मेसेज़स को पढ़ कर उसका चेहरा गुलाबी हो गया!
उसने कुछ देर तक दूसरे मेसेजैज़ को यूँ ही ऊपर नीचे स्क्राॅल किया। लिज़ा के संदेशों के उत्तर में कई एक लव इमोजिस भेजने के बाद एक संदेश पर उसकी आँखें आकर अटक गई।
"जीवन में सुख- दुःख चक्रवत् चलता रहता है।" विद्यार्थी जीवन में पढ़ा हुआ यह पाठ अचानक उसे याद आ गया।
मम्मी के ह्वाट्स एप्प नंबर से वह संदेश आया था।
इस संदेश को उस समय भेजा गया था जब आशीष फ्लाइट पर था। इसलिए उसे समय रहते नहीं मिल पाया क्योंकि ज़ाहिर सी बात थी कि उसका फोन उस समय बंद था।
संदेश पढ़ कर पहले तो उसे बिलकुल भी विश्वास न हुआ। ऐसा कैसे हो सकता है?!! उसने दो- तीन बार उस संदेश को पढ़ा। सब कुछ साफ-साफ तो लिखा हुआ था। उसका मस्तिष्क जैसे सुन्न हो रहा था!
थोड़ी देर बाद जब उसकी चेतना लौटी तो वह अपना सारा सामान उठा कर निकासी गेट की ओर तेजी से भागा।
इसके बाद आशीष ने प्रीपेड टैक्सी बुथ में पहुँचकर तुरंत रोहतक के लिए एक कैब बुक करवाया। फिर फटाफट सामान टैक्सी के पीछे लादकर अपने बचपन का शहर, और जवानी की क्रिड़ा-स्थली रोहतक की ओर बिना एक मिनट समय गँवाएँ निकल गया।
देर करने से शायद बहुत देर हो जाए!
ड्राइवर का नाम था सुजानसिंह। जाति का सरदार। देख कर लगता था कि वह बरसों से केवल यही काम कर रहा है। उसकी बड़ी-बड़ी अनुभवी आँखें, कुछ हद तक अपने सवारियों के अंतःस तक पढ़ लिया करती थी।
उसी भाँति आशीष के चेहरे का भाव पढ़कर उसने भी बिना एक मिनट समय गँवाए गाड़ी आगे बढ़ा दी।
रोहतक हरियाणा राज्य में स्थित एक नगरी है जो दिल्ली से बहुत दूर नहीं है। यह इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से, सड़क मार्ग से तकरीबन 75 किमी की दूरी पर अवस्थित है।
टैक्सी में बैठकर पहली बार आशीष को ध्यान आया कि उसके मोबाइल में से तो नेटवर्क गायब है। यूनानी सिम भला दिल्ली में कैसे चलता?
जबकि उसे भलीभाँति याद है कि आने से पहले उसने अंतर्राष्ट्रीय रोमिंग सेवा को एक्टिवेट करा लिया था, जो दिल्ली एयरपोर्ट पर तो अच्छी तरह से चल रही थी, परंतु एयरपोर्ट से निकलते ही नेटवर्क गायब हो गया!
उसने फोन को हाथ में उठा लिया! एक बार और मोबाइल डेटा को चलाने की नाकाम कोशिश की और जब वह न चला तो फिर उसने अपने फोन को गुस्से से सीट पर पटक दिया! यही प्रक्रिया उसने दो-तीन बार दोहराई।
टैक्सी का ड्राइवर रियर व्यू मिरर से आशीष के इन हरकतों को गौर से देख रहा था। थोड़ी देर बाद उसने आशीष से बोला,
" साहब, इस कैब पर फ्री वाई- फाई की सुविधा उपलब्ध है। पासवर्ड:" सुजान1234सिंह " ट्राई कर लीजिए!"
" हैं?!! थैन्क्यू थैन्क्यू!"
कह कर आशीष ने झटपट टैक्सी के वाईफाई से अपना फोन कनक्ट कर लिया। उसे तो बिना माँगे ही मोती मिल गई थी। उसकी समस्या चुटकी में हल हो गई थी। उसने दिल खोलकर सुजानसिंह को धन्यवाद दिया।
दरअसल मम्मी से इस वक्त बात करना बहुत जरूरी था।
उसने कलाई पर लगी घड़ी में समय देखी। धत्त!! उसकी घड़ी अभी भी यूनानी समय बता रही थी! जल्दवाज़ी के कारण एयरपोर्ट से निकलने से पहले अपनी घड़ी को भारतीय समय में सेट करना तो वह भूल ही गया था!
बहरहाल, गूगल में समय चेक किया तो पता चला कि इस समय रात के आठ बज रहे हैं। उसने झटपट मम्मी को ह्वाट्सएप्प पर काॅल किया। पहली बार तो उन्होंने उठाया नहीं। तीसरी बार में फोन उठाते ही वे रो पड़ी थीं।
" बोली, जल्दी आ जा बेटा,,,तेरे पापा आई सी सी यू में हैं--!डाॅक्टर का कहना है कि अब बस उनकी चंद साँसे बची हुई है! " इतना कहकर वे फिर से रोने लगी।
" कब हुआ यह सब, मम्मी? फ्लाइट पर चढ़ने से पहले ही तो आप से बात हुई थी मेरी!"
" अभी तीन घंटा पहले, उनको अटैक आया था। तुरंत इमरजेन्सी में एडमिट करा दिया!"
" मम्मी, मैं रास्ते में हूँ,, जल्दी ही पहुँचता हूँ-- आप वहीं रुको!"
" आजा,, बेटा!"
उसकी एक तरफा बातों से ड्राईवर को पता लग चुका था कि कोई इमरजेन्सी है। तो उसने गाड़ी तेज़ भगा दी।
ड्राइवर सुजान सिंह का तो रोज का यही काम था। पैसेन्जरों का साथ देना,,, उनकी खुशी से खुश होना और ग़म में रोना। एक तरह से उसकी गड्डी में हर एक सवारी उसकी जिन्दगी में एक वृहद् परिवार के कुटुम्ब के रूप में शामिल था।
वसुधैव कुटंबकम।।
आशीष के पापा लंबे समय से बीमार चल रहे थे लेकिन फिर भी उनकी जान को कोई खतरा न था। अधिकतर बीमारियाँ अधिक उम्र के कारण थी।
उसे मम्मी ने बताया कि दो दिन पहले उनमें कोरोना ( कोविद-19) के कुछ सिम्पटाॅम्स दिखने लगे थे। डाॅक्टर ने कहा कि घर पर रख कर ही उनकी दवा की जाए तो बेहतर है क्योंकि अस्पताल में आने से और इंफेक्शन लगने का डर था।
परंतु ऐसा संभव न हो पाया। उनकी हालत बिगड़ती चली गई और फिर आज सुबह का यह हार्ट अटैक उनकी हालत को और गंभीर बना दिया!
आशीष अपनी ऊँगलियों को मटकाने लगा! बेवजह दाँत से अपने नाखूनों को कुतरने लगा। जब वह बहुत नर्वस हो जाता है तो ऐसा ही किया करता है।
एक पल तो उसे ऐसा लगा कि काश अगर उसके पास पंख होते तो वह तुरंत उड़कर पापा की केबिन पर पहुँच जाता!
क्रमशः
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.