" सुनो मन,,, मनीषा एक मिनट रुको, तुमसे कुछ कहना था!"
देव पीछे से भागता हुआ मनीषा के बराबर आता हुआ बोला। " हाँ बोलो, "
मनीषा ज़रा रुक कर पीछे मुड़ कर देखती है,, फिर दोनों साथ- साथ चलते हुए बातें करते हैं! काॅलेज की छुट्टी हो चुकी थी और इस समय दोनों अपने घरों को जा रहे थे। परंतु थोड़ी देर तक कोई भी कुछ नहीं कहता। सिर्फ भागने के कारण देव की तेज़- तेज धौंकनी सी चलती हुई सासों की आवाज़ें आ रही थी।
" बोलो देव, क्या कहने आए थे?!" आखिर मनीषा ने उससे कहा।
" समझ में नहीं आता कि कैसे तुमसे कहूँ? वह,,, मेरा दोस्त है न, सुमित,,,वह,,, वह,,तुम्हें,, बहुत,,,, बहुत पसंद करता है।"
मनीषा ने एकबारगी चौंक कर देव की ओर देखा,,,, फिर वह उसे देखती ही रह गई। और तब तक उसे देखती रही जब तक कि उसकी आँखें डब- डबा न आई। धीरे से वह बोली--
" तो तुम, क्या चाहते हो?"
" एक बार उससे बात कर लो, please----!"
पर मनीषा की आँखों में आँसू देखकर देव आगे न कुछ बोल सका। देव ने सर नीचा करके हौले से एक सर्द आह छोड़ी!
आह मनीषा! मनीषा की आँखों में आँसूँ! उसकी मनीषा--- एक दिन वह इसी मनीषा के खातिर अपनी जान तक देने को तैयार था! अगर उसने न ठुकरा दिया होता उसे उस दिन तो! और भाग्य का कुछ ऐसा फेर था, कि आज फिर उसी मनीषा से अपने दोस्त की खातिर प्रेम निवेदन करने देव आया हुआ है।
" देव! अपने दोस्त से कहना, ऐसा संभव नहीं हो पाएगा! मेरे दिल में पहले से ही कोई है---!" मनीषा देव को चुप देखकर निर्णयात्मक स्वर में बोली।
" ओह-- अच्छा!" इन दो शब्दों के अलावा और कुछ कहने को सूझा नहीं देव को।
उसकी मनीषा,,,किसी और को चाहती है!
" हे भगवान, यह बात सुनने से पहले मैं धरती में समा क्यों न गया!"
देव सिर को आसमान की तरफ करके शायद भगवान से शिकायत कर रहा था!
"देव! यह नहीं पूछोगे कि मैं किसे चाहती हूँ?" मनीषा उसकी ओर जरा attitude सा दिखाती हुई पूछी।
" क्या करूँगा, जानकर!"
" हाँ,,, वही तो!"
इतनी देर में सुमित जाने कहीं से वहाँ आ पहुँचा। उसने देव और मनीषा को बातें करते हुए देखकर इशारे से देव से पूछा-- " तूने इससे कहा??"
सर हिला कर देव ने अपने दोस्त को देख कर हामी भरी। " फिर क्या जवाब मिला?" सुमित ने उसके कान में फुसफुसाकर पूछा! अब उस तरफ से भी " हाँ" सुनने को सुमित उतावला हो रहा था।
देव कुछ नहीं बोला! वह मनीषा और सुमित के बीच में सर झुकाकर खड़ा हो गया! देव को चुप देख कर सुमित को ज़रा गुस्सा आया।
" अरे देव तू तो अपने प्यार से कभी न कह सका कि उससे कितना चाहता है, मेरी क्या खाक मदद करेगा?"
सुमित भड़क उठता है उस पर! देव इससे पहले उसे कुछ जवाब दे-- मनीषा तुरंत उस बात के सिरे को पकड़ कर बोल बैठी---
" वही तो--- आपने बिलकुल ठीक कहा-सुमित--- यही नाम है न आपका?"
" तुम--- आप--- आप मेरा नाम जानती हैं?"सुमित अचानक हकलाने लगा।
काॅलेज की सबसे खूबसूरत लड़की , जिस पर इस समय उसका दिल आ गया था,,, उसके मुँह से अपना नाम सुनकर सुमित प्रफुल्लित हो उठा था। इसका मतलब यह भी मुझे चाहती है---। पर वह श्योर होना चाहता था!
" तो क्या--- आप,,, तुम भी मुझे---।" पर बात को बीच में ही काटकर मनीषा फिर से उसे बोली-
- "--प्रोपोस वैगरह देव के बस की बात नहीं है---। अपने दिल की बात को ठीक से बोलना कहाँ आता है इसे-- दिल में कुछ और जुबान पर कुछ--- हमेशा से यही देख रही हूँ।"
बात यह है कि देव के दोस्त उनके क्लास की एक लड़की टीना को लेकर उसे चिढ़ाया करते थे। टीना दिलोजान से देव को चाहती थी, परंतु देव उसे तनिक भी भाव नहीं देता था!
देव ने आँखें उठाकर मनीषा की ओर देखा। पर इधर मनीषा ने भी जैसे कुछ अनचाही कह दी हो, ऐसे वह ज़रा खिसियाकर अपना बैग संभाले वहाँ से तुरंत निकल गई और बसस्टाॅप पर रुकी हुई बस का बिना नंबर देखे ही उस पर चढ़ गई।
सुमित उसे पीछे से बुलाता रहा--- वह उससे और बात करना चाहता था, पर मनीषा ने वह सब कुछ सुना ही नहीं!
देव और मनीषा स्कूल से ही एक- दूसरे को जानते थे। उन दोनों के बीच में कुछ था जो दोस्ती से बढ़कर था। इस लिए दोनों ने साथ- साथ एक ही काॅलेज में दाखिला लिया था। दोनों एक- दूजे के साथ बहुत कम्फर्टेब्ल फिल करते थे।
मनीषा बहुत बातूनी थी, जबकि देव बिलकुल शांत और मैचियोर था। मनीषा में हालाँकि अब तक बचपना शेष था, इसलिए वह जब तक सारी बातें आकर देव को बता न देती थी, उसका दिल न मानता था। देव को भी उसका साथ बहुत पसंद था! वह कुछ नहीं भी कहे लेकिन उसकी बातें बिन कहे ही मनीषा सब समझ जाती थी। और उसके दोस्तों के बीच अकेले मनीषा के पास ही यह गुण था।
परंतु काॅलेज आने के बाद सब कुछ बदल गया था। मनीषा जैसे अपने दोस्तों के साथ ज्यादा समय बिताने लगी थी। देव को कभी- कभी ऐसा लगता था कि जैसे मनिषा उसे avoid करने भी लगी है। दोनों के विषय अलग- अलग थे। मनीषा ने बटाॅनी ले रखी थी तो देव ने फिजीक्स चुना था। परंतु लैन्गूएज क्लासेज़ उनकी सेम थी।
आज कल मनीषा अंग्रेजी के क्लासेज में बहुत कम जाती थी। आज कोई आठ महीने के बाद मनीषा से देव बोला था। फिर भी उसकी बेरुखी का कारण वह नहीं समझ पाया। इससे तो अच्छा था कि मनीषा एक बार उसे जी भर कर डाँट लेती।
घर जाकर देव काफी उधेरबुन में था। पढ़ाई में आज उसका मन न लगा। वह कमरे के बाहर बालकाॅनी में चहलकदमी करने लगा। फिर उससे रहा न गया तो, कमरे में जाकर पलंग पर से अपना फोन उठाकर मनीषा का नंबर डायल कर डाला।
उधर से "हैलो" सुनकर वह पूछा--- " घर ठीक से पहुँच गई न मन? गलत बस में चढ़ गई थी।"
मनीषा को एकाएक कुछ कहते न बना, परंतु देव के इस केयरिंग वाले प्रश्न से उसके दिल को बहुत सुकून मिला। देव अब भी वैसा है। छोटी सी छोटी बात भी उसकी नज़रों से चूकती नहीं।
" मैं कुछ पूछ रहा हूँ, मन तुमसे ! बोलो---कितनी देर तक भटकती रही तुम आज-- घर ठीक से पहुँच गई न?"
" हाँ,,,पहुँच गई--।" " मुझसे नाराज़ होकर तुम आज भी गलत बस पर चढ़ जाती हो--- और इधर मैं समझा था कि मेरी मन बदल गई है---।"
" अच्छा तभी तुम दोस्त का पैगाम लेकर आए थे?" " तुम जैसे बिलकुल नहीं बदले?"
" मैं कुछ समझा नहीं--" देव चाह रहा था कि मनीषा जी भर कर उससे झगड़ा करे-- पर उस तरफ सन्नाटा था।
कुछ देर रुक कर उसने पूछा-- " क्या हुआ तुम कुछ कहती क्यों नहीं---?" देव ने पूछा। पर दूसरी ओर से एक दबी हुई सिसकी की हल्की सी आवाज़ उसे सुनाई दी।
मनीषा को रोते हुए सुनकर देव का हृदय भी भावुक हो गया था! फिर जैसे उसे कुछ याद आया--ऐसे वह पूछा--
" अच्छा, तुम्हें तो किसी और से प्रेम हो गया है-- तभी मुझसे नाराज़ हो। बोलती क्यों नहीं हो? पूछ सकता हूँ कि वह खुशनसीब कौन है?"
फिर भी मनीषा कुछ न बोली।
" हैलो-- हैलो मन--- तुम सुन रही हो न?" देव ने पूछा।
" हाँ,, बोलो।"
" क्या मैं उसका नाम जान सकता हूँ?"
" क्या करोगे जान कर, देव तुम! "
" ओह!! धत्त! " देव बोला " तुम ने तो यही कहा था देव। वैसे तुम उसे जानते हो। पर तुम खुश रहो टीना के साथ! मेरे इश्क से तो तुम्हें कोई लेना- देना नहीं होना चाहिए।"
" अब टीना बीच में कहाँ से आ गई, यार?"
" अरे बीच में क्यों आएगी--- वह तो तुम्हारी ही है। सिर्फ तुम्हारी। तुम दोनों कितना चाहते हो एक- दूजे को।"
" एक मिनट मनीषा,," सिरियस हो कर देव मन कहने के बजाय उसके पूरे नाम से संबोधन कर बैठा। "
टीना से मैं प्यार करता हूँ --यह तुमसे किसने कहा?"
" किसी को कहने की क्या जरूरत है? प्यार हो तो आँखों से दिख ही जाता है। मैंने अपनी आँखों से देखा है।"
" क्या देखा है?"
"यही की ,,तुम दोनों ,,hug कर रहे थे और किस् भी।"
" कहाँ? कब????"
" एक रोज--- गर्ल्स टायलेट के पास वाले पैसेज में---।" देव दिमाग पर ज़ोर डालकर सोचता रहा। अच्छा कुछ महीने पहले ऐसी कोई वारदात हुई थी, जरूर। टीना जबर्दस्ती उसके गले से लटक गई थी।
"ओहहह-- तो मनीषा ने वह सब देख लिया था। तब से ही-- हो सकता है, उसके बदल जाने का वही वजह रहा हो।"
देव ने निश्चयात्मक स्वर में कहा-- " मन, मैं अभी तुमसे मिलना चाहता हूँ। तुम्हारे घर आ रहा हूँ।"
" इस वक्त देव!! तुम पागल तो नहीं हो गए न? पता है-- रात के साढ़े आठ बज रहे हैं?"
" तुम घर पर ही हो न? मन, तुम्हारे मम्मी- पापा भी घर पर ही हैं?"
" देव, मम्मी और पापा एक शादी में गए हैं। इस समय तो मैं अकेली हूँ, पर वे अभी घर आते ही होंगे।"
" ठीक है, तो दस मिनट के बाद अपनी सोसायटी के गेट में आ जाओ। मैं भी वहीं पहुँच रहा हूँ। तुमसे जरूरी बात करनी है।"
" कल बात करते है, देव! रात बहुत हो गई है!"
" कल तक नहीं रुक सकता, मन! सिर्फ पाँच मिनट लूँगा!" कोई आधे घंटे के बाद मनीषा और देव अंधेरे में एक पेड़ के नीचे पार्क पर बैठे थे। मनिषा का घर इस पार्क के नज़दीक ही है।
देव बोला, " देखो मन, तुम तो जानती ही हो कि मैं बहुत घूमा- फिराकर बोल नहीं सकता। इसलिए सीधे- सीधे पूछता हूँ कि तुम किसे चाहती हो?" पर मनीषा कुछ न बोली!
" देखो, बता दो-- क्योंकि मुझे तुमसे मोहब्बत हो गया है। आज से नहीं, जब हम स्कूल में एक बेंच पर बैठते थे--तभी से। तुम्हारा साथ मुझे बहुत अच्छा लगता था, हमेशा से ही। परंतु तुम तो मुझे जानती ही हो, इस बात को कभी बता नहीं पाया। लगा था, तुम खुद सब समझ जाओगी। पर तुम तो कुछ और ही समझ बैठी--।"
" पर उस दिन मैंने जो देखा था, फिर वह क्या था? देव!"
" यही बताने तो अभी घर से भागे आ रहा हूँ। वह टीना की बदतमीजी थी। वह जबरदस्ती मेरे गले से लटक गई थी?"
" क्या--- ? तुम उसे नहीं चाहते?"
" रत्तीभर भी नहीं!"
" पर आज जो तुम सुमित के बारे में अर्ज़ी लेकर आए थे--- वह क्या था?"
" वह मेरी भूल थी। और क्या! परंतु इस गलती ने मेरी आँखें भी खोल दी। तब से अब तक मेरा मन मुझे धिक्कार रहा है---- ! मैं तुम्हें किसी और के साथ नहीं देख सकता, मनीषा। और यह अहसास मुझे तब हुआ, जब तुम अचानक गलत बस में चढ़ बैठी। मुझे लगा --- कि शायद अब भी हमारे बीच कुछ शेष है! यही जानने के लिए तो मैं तुम्हारे पास अभी आया हूँ। सुबह तक का इंतज़ार न कर पाया!"
इतना सुनते ही मनीषा कस कर देव के गले से लिपट गई। फिर दोनों एक साथ ही रोने लगे।
और उनकी आँखों से बहती हुई आँसुओं से सारी गलतफहमियाँ धीरे- धीरे धुलती चली गई!
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