क़ातिल कौन? भाग-1, लाश किधर है?

टिना और सारांश अपना हनिमून मनाने मनाली आते हैं। सोचा था कि खूब घूमेंगे - फिरेंगे, मौज- मस्ती में दिन बीतेंगे, मगर एक अजीब सी परिस्थिति में दोनों फँस जाते हैं। इसके आगे क्या होता है-- जानने के लिए पढ़िए

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 25 Oct, 2020 | 1 min read

सारांश और टिना हनीमून मनाने मनाली आए हैं । कल रात को ही पहुँचे हैं वे दोनों यहाँ पर! कुल्लू एयरपोर्ट में उतर कर होटल तक पहुँचते - पहुँचते कल शाम हो गई थी! पहाड़ों में अंधेरा छाते ही रात बहुत गहरी लगने लगती है। इसलिए होटल पहुँचकर दोनों ने आराम करने की सोची! जून महीने का अंतिम सप्ताह था। मौसम इस समय बड़ा ही सुहाना था। हल्की- फुल्की बारिशें हो रही थी कभी- कभी। टूरिस्ट सीजन अब कुछ ही दिनों में अंत होने वाला था। मान्सून शुरू होते ही सैलानियों का यहाँ आना लगभग बंद हो जाया करता है। बारिश के समय पहाड़ी सड़के जगह-जगह से टूटकर भयंकर सड़क - हादसों का कारण बन जाती हैं, इसलिए भी उस समय बहुत कम लोग आते हैं यहाँ। सारांश को यद्यपि समुन्दर पसंद है परंतु टिना के खातिर उसने हनीमून के लिए मनाली का प्लाॅन किया था। पहाड़ियाँ, टीना को,कच्ची उम्र से ही, हद से ज्यादा आकर्षित किया करती हैं। वह शिलाँग में जन्मी थी, शायद इसलिए! यह उन दोनों की ही दूसारी शादी थी। सारांश और टिना हाईस्कूल फ्रेन्ड्स थे। परिचय, दोस्ती,प्यार--सबकुछ उनका स्कूल की चारदीवारी के अंदर ही हुआ था। परंतु स्कूल समाप्त होते ही दोनों अपने कैरियर को लेकर व्यस्त हो गए थे और दोनों इसी व्यस्तता में एक दूजे से दूर होते चले गए थे। फिर घरवालों के दवाब से दोनों को ही दूसरी जगह शादी करनी पड़ गई थी। चूँकि कोई काॅमिटमेन्ट न कबूला था इन दोनों ने कभी स्कूल में! परंतु अपनी जिन्दगी में खुश में भी कहाँ रह पाए थे? दुनिया बहुत ही कम देखी थी उन दोनों ने उस समय ! अतएव सब कुछ वक्त के हाथों में छोड़ देना उचित लगा था, उन्हें! जैसे-- किस्मत में मिलना लिखा होगा तो जरूर मिलेंगे! कहते हैं न-- जीवन में सोलमेट मुख्यतः एक ही होता है। सो, उनको अपने पार्टनरों में वह सोलमेट वाली बात नहीं मिल पाई थी। उनसे रिश्ता सिर्फ परिवार वालों की खातिर ही निभाई जा रही थी। फिर आया फेसबुक का दौर! इसी आभासी दुनिया में वे दोनों पुनः एकबार मिले। और फिर ऐसा लगा कि जैसे उनकी सोलमेट वाली तलाश एक- दूजे में पूरी होती हुई दिखी! लगा कि, जैसे अपने जीवन के इस खूबसूरत अध्याय को पूरा किए बिना ही वे कहीं दूसरा अध्याय खोल चुके थे-- जिसमें उनकी आत्माएँ दुखी थी। फिर क्या था, उन्होंने अपने आपको दिखावे के रिश्तों से आज़ाद करना तय कर लिया और हमेशा के लिए एक- दूजे को पा लेने का निर्णय किया। हालाँकि यह सबकुछ इतनी आसानी से न हुआ था। परिवार वालों का रोना- धोना, विरोध, मन- मुटाव, नौकरी/ बिजनेस से हाथ धोना, यहाँ तक कि उनमें से एक को तो अपना देश और दूसरे को शहर भी बदलना पड़ गया था। परंतु अंत तक हौसला किसी का भी कम न हुआ था! आज तक जो कुछ भी किया था वह किसी और को खुश करने के लिए, लेकिन अब उन्हें अपनी खुशी के लिए कुछ करना था, फिर पीछे क्यों हटते? आखिर जिन्दगी न मिले दोबारा! सो, सारी इच्छाएँ, सारे शौक हमें इसी एक जिन्दगी में पूरे करने होते हैं! आखिर वे दोनों दुनिया से लड़- झगड़ कर अपने हनीमून तक पहुँच ही गए थे!! यहाँ आकर जिस आंतरिक खुशी का अनुभव सारांश और टीना ने किया वह उन दोनों के लिए पहला ही अवसर था। कल के सफर से वे दोनों ही काफी थक चुके थे। अंधेरे में देख भी क्या पाएंगे यह सोचकर वे जल्दी ही खा पीकर अपने कमरे में सोने चले गए थे। उनका यह होटल "नग्गर काॅसिल" एक ऐतिहासिक इमारत है। अभी हिमाचल प्रदेश सरकार के HPTDC द्वारा चलाई जाती है। यह महल मध्ययुग में कल्लू के राजा सिद्ध सिंह द्वारा बनाया गया था जो आजकल एक हैरिटेज होटल में रूपांतरित कर दी गई है। सुबह सबसे पहले टिना की नींद खुली थी! रात को साजन की बाहों में खूब अच्छी नींद आई थी। फिजाएँ रूमानियत भरी थी! दोनों को बरसों से ही ऐसी रात का इंतज़ार था! ब्रश करने के उपरांत जब नाइट गाउन के ऊपर शाॅल डालकर टिना दरवाजा खोलकर बाहर आई तो सुबह के सात बज रहे थे। बाहर सुंदर खिली- खिली धूप निकल आई थी! सारांश अभी तक औंधा लेटकर सोए जा रहे थे! उसकी ओर एक प्यार भरी मुस्कान देकर टिना बाहर चली आई थी। पर आंगन में पहुँचते ही वह सहम गई! "अरे इत्ते सारे लोग!!" कल रात को चेक- इन करते समय तो इतने लोग कहीं नहीं दिखे थे! सारे होटल के बोर्डर तो नहीं लगते! तभी होटल के एक आदमी ने उससे पूछा, " मेमसा'ब आपके लिए चाय लेकर आऊँ?" उसे रूम में दो चाय देने को कहकर, टिना पूछ बैठी, " भैया, यहाँ इतने लोग क्या कर रहे हैं?" "ये लोग तो व्यू देखने आए हैं, मेमसा'ब! आज मौसम खुला हुआ है न, इसलिए! आप भी देखिए। बहुत अच्छा व्यू है।" यह कहकर वेटर चला गया! वाकई वहाँ का नज़ारा देखने लायक था! पहाड़ों की चोटियों पर धूप की पहली किरण पड़ने से कुछ श्रृंग रौशनी से जगमगा रही थीं, वहीं कहीं पर छाँव भी पड़ी हुई थी। आसमान साफ होने के कारण दूर बर्फ की चोटियाँ इस समय साफ-साफ नज़र आ रही थी, इतनी कि पहचानने वाले एक- एक को अलग नाम से पुकार रहे थे। पीर- पंजाल पर्वत श्रेणी के अंतर्गत पार्वती घाटी पर मनाली शहर अवस्थित है जहाँ स्रोतस्विनी बियास नदी बहती है। इतना सुंदर दृश्य देख सारांश को उठाने और अपना कैमरा लाने के लिए टिना जल्दी से कमरे के अंदर चली गई। इसके बाद दोनों नहा-धोकर तैयार होकर जब बाहर आए तो भीड़ और अधिक बढ़ गई थी। आज रविवार और मौसम सही होने के कारण पर्यटकों से उस प्रांगण में पैर रखने की जगह न थी। अब इन लोगों की नई- नई शादी हुई थी। दो हंसों का जोड़ा-- इन्हें तो अपने लिए थोड़ा एकांत चाहिए था! अतः इतनी भीड़ इन्हें बिलकुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। भीड़ के लिए तो उनका अपना शहर ही है, जहाँ इनकी रोजमर्रा की जिन्दगी इनका इंतज़ार कर करी थी। अतः नाश्ता समाप्त करके वे दोनों एक दूजे के साथ को और अधिक महसूस करने के लिए वाॅक करने निकल पड़े। नाश्ता करते समय इन्होंने कैमरा से कुछ सुंदर तस्वीरें भी खींच ली थी। आज नग्गर काॅसेल के रेस्तराॅ वालों ने कई टेबुल बाहर ही लगा दी थी, जिससे खाते समय भी बहुत अच्छी व्यू मिल गई थी और उन्होंने जिन्हें कैमरे में झटपट कैद कर लिया। पहाड़ों में धूप और मौसम के साथ- साथ अकसर व्यू बदल जाया करते हैं। इस समय नवविवाहित-युगल हाथों में हाथ डाले पहाड़ी रास्तों पर चले जा रहे थे, कुछ गुनगुना भी रहे थे शायद! नाश्ता कुछ भारी हो गया था इसलिए भी इस समय यह वाॅक करने की आइडिया अच्छी उन दोनों को ही अच्छी लगी। " अच्छा, मानो कि हमारी पूरी जिन्दगी यूँ ही पहाड़ों में गुज़र जाए तो, कितना अच्छा हो! है ना सारांश?" " मैडम, पहाड़ की लाइफ जितनी सुंदर दिखती है दरअसल उतनी आसान नहीं होती। यहाँ पैसा कमाना बहुत मुश्किल होता। टूरिस्ट सीजन कितने दिन का होता है? इसके बाद ठंड में रह पाना भी काफी मुश्किल होता है। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। ठंड में, बरसात में, तो आवागमन के सारे रास्ते भी बंद हो जाते हैं!" " परंतु, देखो कितनी सिंपल लाइफ है, यहाँ पर लोगों की। किसी बात की कोई जल्दी नहीं इनको।शहरों के rat race से कोई वास्ता नहीं है। ऐसा लगता है कि जैसे,बड़े सुकून की जिन्दगी जीए जा रहे हैं।" सारांश ने प्यार भरी नज़रों से एकबार अपनी टिना की ओर देखा! हलके पीले रंग की प्रिंटेट चंदेरी चुड़ीदार- कमीज में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी! जैसे अभी- अभी खिली हुई कोई पीली- सी फूल हो! उसे इस समय देखकर कोई यह कह नहीं सकता था कि टिना पूरे छत्तीस वर्ष की हो चुकी है और उसका एक दस साल का बेटा भी है। इस समय बिलकुल काॅलेज जाती लड़की लग रही थी। उसने बड़े फैशनेबुल तरीके से अपने सर को पीले दुपट्टे से ढक रखा था। डीजीटल कैमरा आज टीना के गले में लटक रहा था। आगे-आगे वह एक पंछी की तरह फुदक-फुदक कर जा रही थी जो कभी बीच- बीच में रुककर फोटो भी खींच रही थी। सारांश पीछे आ रहा था। उसने गहरी नीली पतलून पर आसमानी रंग की धारीदार कमीज़ पहन रखी थी। सारांश और टिना की आयु में केवल दो महीने का अंतर था। सहपाठी थे, इसलिए हमउम्र भी थे। अचानक सारांश ने हैरान होकर देखा कि टिना मुख्य सड़क को छोड़कर पेड़ की डंडी को पकड़ते हुए नीचे की दिशा में कहीं जा रही है! " अरे, टिना उधर कहाँ जा रही हो?" " मेरा दुपट्टा--- सारांश " इतना कहकर टिना उसकी आँखों से ओझल हो गई। सारांश भी तब उसके पीछे- पीछे चल पड़ा! सारांश अभी पगडंडी में आधा ही उतरा था कि टिना बदहवास भागती हुई वापस आई!और डरी हुई सी उससे कसकर लिपट गई!! " क्या हुआ, टिना!! तुम इतनी घबराई हुई सी क्यों हो? और तुम्हारा दुपट्टा किधर है?" " सारांश वहाँ एक लड़की की लाश पड़ी हुई है। लगता है, अभी- अभी किसी ने उसका खून कर दिया है। उसके गले से ताजा लहू बह रहा है!" " क्या कह रही हो टिना, तुमने कल रात को ज्यादा पी तो नहीं ली थी?" सारांश हँसते हुए बोला! " यहाँ पर लाश कैसे आएगी।" अपनी बातों पर सारांश को हँसते देखकर टिना को बहुत ज़ोर का गुस्सा आया! वह सारांश का हाथ पकड़कर जबरदस्ती उसे उस जगह पर ले गई जहाँ पर उसने उस लड़की की लाश देखी थी। परंतु आश्चर्य!! घोर आश्चर्य!! वहाँ तो कुछ भी न था! "क्या हुआ मैडम, आपकी वह so called "लाश "कहाँ चली गई?" " लगता है कि आपकी जो लाश यहाँ पर थी, वह आपकी आहट पाते ही पहले जिन्दा हो गई और फिर गायब हो गई!" सारांश टीना को चिढ़ाता हुआ बोला! "कहीं भूत- प्रेत तो नहीं है कोई!! हा हा हा" सारांश को भूतों में बिलकुल भी विश्वास न था। इधर टिना हैरान थी- इतने थोड़े से समय में एक लाश गाय़ब कैसे हो सकती है?  

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