परंतु अपराधियों के साथ यों उसका दिनरात काम करना राजा जी को पसंद न आया था। अपने पेशे के बदौलत वे जानते थे कि काजल की कोठरी में कितने ही सयानो जाए, एक लीक काजल के लागि पै लागी है। परंतु बेटी का काम में मन लग रहा था देखकर वे चुप हो गए थे। आखिर, कोई काम में अपने आपको उलझाकर ही तो प्रेरणा अपने अतीत को भूला सकती थी। फिर अपनी बेटी को खुश देखना कौन पिता न चाहेगा? प्रेरणा राजाजी की सगी बेटी न थी। उन्होंने कभी विवाह न किया था। आजीवन ब्रह्मचारी रहनेवाले राजाजी को जिसदिन चारदिन की प्रेरणा चीथरों में लिपटी, रोती हुई दिल्ली नगर निगम भवन के पास एक कूड़ेदान में पड़ी मिली थी, उसदिन उसे देखकर उनके अंदर छुपा हुआ पितृहृदय जाग्रत हो उठा था। वे उस नन्ही सी बच्ची को अपने घर ले आए थे। अपना समस्त पितृस्नेह उड़ेलकर उन्होंने अकेले ही प्रेरणा को बड़ा किया था। उसे विदेश में पढ़ाया , फिर उसी के पसंद के लड़के से धूमधाम से शादी करवाई थी। परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था। गाड़ी अचानक हिचकोले खाकर रुक गई। उसके साथ राजाजी भी अपने अतीत से तुरंत वर्तमान पर पहुंच गए। उनकी मर्सीडीज़ इस समय उनके कर्मस्थल के नजदीक खड़ी थी। उन्होंने जब ड्राइवर से पूछा कि क्या हुआ तो ड्राइवर ने उनके तरफ सिर घूमाकर जवाब दिया, " प्रदर्शनकारियों और मिडियावालों ने आगे रास्ता बंद कर रखा है, साहब। कुछ लोग धरने पर भी बैठे हैं। अब पुलिस के आने पर ही हम आगे जा पाएंगे।" " यह सब राजनैतिक पार्टियों के चोंचले है। अपराधी इस तरह हर बार साफ बच जाते हैं तथा आगे और अपराध करने पर उतारू हो जाते हैं।" राजाजी ने मन में सोचा।" " मानव अधिकार वाले अपराधियों में मानवता तो खोज सकते हैं, लेकिन पीड़िता के दर्द को नहीं समझ सकते!" "जितने लोग उतनी तरह की सोच! कुछ नहीं हो सकता इन लोगों का।" राजाजी बड़बड़ाए। ड्राइवर ने अपना मोबाइल निकालकर पुलिस का नंबर मिलाया। कुछ ही देर में पुलिस एस्काॅर्ट आ गई। और फिर राजाजी की गाड़ी न्यायलय परिसर में दाखिल हो सकी। राजाजी सुब्रमण्यम, सर्वोच्च न्यायलय के विशेष न्यायधीश, के अधीन आज की कार्रवाई आरंभ हुई। मुआमला था उन्हीं की बेटी पत्रकार प्रेरणा मलहोत्रा का सामूहिक बलात्कार और मर्डर का! दोनों निचले न्यायलयों में अपराधियों को दोषी करार दिया गया था और उन्हें फाँसी की सजा सुनाई जा चुकी थी। सबूत सारे अपराधियों के खिलाफ थे, परंतु एक अपराधी , जिसका कि सीधा संबंध केबिनट मंत्री से था, ने अपना रौब जमाते हुए, उच्च न्यायलय द्वारा दिए गए आदेश पर स्टे आर्डर लगवा दिया। फिर मुआमले को सर्वोच्च न्यायलय के अधीन कर दिया गया। केस तीसरी बार चला। राजाजी इन लोगों के सारे दावपेंच भलिभाॅति समझ रहे थे। जानते थे, कि उनके फैसले के बाद वे राष्ट्रपति के पास जाएंगे मानवाधिकार के आधार पर अपील करने। इसलिए जो कुछ भी हो,उन्हें आज ही करना पड़ेगा। राजाजी को याद है दस साल पहले की वह रात जब उन्हें हाइवे के पास प्रेरणा के मिल जाने की खबर मिली थी। जिस भी हालत में वे थे, बदहवास भागे थे। पाॅच दिन के बाद प्रेरणा की कोई खबर मिली तो भी इस हाल में!!परंतु उन्हें क्या पता था कि नियति उनके लिए और भी कुछ निदारुण घटना लिए इंतजार कर रही है। प्रेरणा एक हाई- प्रोफाइल मर्डर केस की तहकीकात कर रही थी । इसके पीछे बहुत ताकतवर लोगों का हाथ था। उसने मानो मधुमक्खियों के छत्ते को छेड़ा था। वह लगभग अपनी मंजिल के करीब पहुँच चुकी थी। उनलोगों ने पर्दाफाश होने के डर से पहले तो प्रेरणा को रोकना चाहा फिर जब वह न मानी तो उसको अगवा करवा दिया। पाँच दिन तक उसका कोई अता -पता न मिल पाया था राजाजी को। वे परेशान हो गए थे। पुलिस भी उसे ढूंढ पाने में नाकाम रही। उस दिन शाम को जब समाचार पाकर राजाजी उसके पास पहुंचे तो उनकी हंसती खिलखिलाती बेटी जीते जी मर चुकी थी। कई दिनों तक उसका सामूहिक बलात्कार करने के बाद, उन दरिंदो ने उसे एक नाले के किनारे फेंक दिया था। विवस्त्र और लाचार!!यही नहीं ,जाने से पहले उसपर तेजाब डालकर उसकी पहचान और आत्मबल दोनों को हमेशा के लिए मिटाने की कोशिश की। परंतु, उन दरिन्दों को नहीं मालूम था कि वह राजाजी की बेटी थी! शायद इसलिए वह उनके आने तक जिन्दा रही। उसने सारे सबूत पहले ही एक पेन ड्राइव में इकट्ठा कर रखा था। चुपके से उसने उसरात उसे राजाजी के हाथ में खिसका दिया था। राजाजी को अब भी याद है कि प्रेरणा के चेहरे के सारे अंग तेजाब से पिघल गए थे। कुछ भी अपने जगह पर मौजूद न था, न नाक ,न मुॅह और न आंखें। यंत्रणा से उसकी देह विकृत होना चाह रही थी, परंतु प्रेरणा फिर भी दाॅत भींचकर अपने आपको न जाने किस जादूबल से संभाले हुई थी। जो भी उसे उस समय आकर देखता, चीखकर अलग हो जाता था। यही हालत राजाजी की भी थी। उनके लिए प्रेरणा के तरफ देख पाना मुश्किल हो रहा था। उन्होंने तुरंत एम्बुलेस बुलवाया और प्रेरणा को अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल पहुंचने पर प्रेरणा कुछ देर तक जीवित थी। वहाँ बाप- बेटी में कुछ देर तक बंद कमरे में आखिरी बार बातचित हुई थी। बुढ़ापे में बेटी की मुखाग्नि करने का कष्ट वही जान सकता है जो इस हद से गुजर चुका है!!राजाजी की उस समय की अवस्था का वर्णन करना आसान नहीं है। उनके निकलते हर एक आंसूँ उनके इरादों को मजबूत बनाते जाते थे। वे हर पल आज के दिन के लिए अपना दिल मजबूत कर रहे थे! उनके जिन्दा रहने का कदाचित एकमात्र कारण सिर्फ यही था। प्रेरणा उनके लिए प्रेरणा स्वरूप-सी थी। वह उनकी सगी बेटी से भी बढ़कर थी। बेटी नहीं बल्कि वह तो उनकी माॅ के आसन पर विराजित थी। उनकी सारी खुशी, सारी हंसी, दुःख में सुख और काली अंधेरी रात में सुबह को किरणों जैसी थी। उसे खोकर वे एक पल भी जिन्दा न रहना चाहते थे। कोर्टरूम में इस समय वही औपचारिक बातें चल रही थी। वकीलों का एक दूसरे पर कीचर उछालना जारी था। राजाजी कुछ सुन रहे थे और कुछ नहीं। बार -बार प्रेरणा का झुलसा हुआ चेहरा उनकी आंखों के सामने आ जाता था। प्रेरणा बेटी के रूप में उनकी हिम्मत भी थी! फैसला सुनाने से पहले उन्होंने उन लड़कों पर एक नजर डाली। वे सारे बड़े हृष्ट पुष्ट लग रहे थे। जेल में विआईपी परिसेवा मिली हुई थी। परंतु उनकी हंसती आंखों में डर अथवा पश्चात्ताप का कहीं भी नामोनिशां तक नहीं था। बल्कि एक तरह की निश्चिंतता थी। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे दोस्तों के साथ कोई सिनेमा देखने आए हो! कोर्टरूम में उपस्थित लोग बेचैन हो रहे थे। फैसला सुनने को उतावले हो रहे थे, वे। शोर बढ़ता जा रहा था। राजाजी ने पहले सबको शांत किया और अंत में अपना फैसला सुनाया। उन पाॅच लड़कों को उन्होंने पहले की ही तरह बरी कर दिया। केवल एक छोटा सा क्लाॅज अपनी जजमेंट में उन्होंने रखी कि चूंकि उन तीनों का अपराध बार बार साबित हो चुका है, अतएव जो अपराध हुआ है उसे झुठलाया नहीं जा सकता। इसलिए सजा के वे हकदार तो वे बनते हैं। अतः फैसला यह है कि अब से अगले तीस वर्षों तक वे सभी अपराधी कोर्ट और सरकार की निगरानी में रहेंगे। वे सबकुछ कर सकेंगे, पढ़ाई, नौकरी, शादी इत्यादि। सरकार के ओर से उनकी शिक्षा का पूरा खर्च वहन किया जाएगा और उन्हें दुबारा काॅलेज में दाखिला लेना पड़ेगा। सिर्फ और सिर्फ अगले तीस वर्षों तक किसी भी प्रकार के वस्त्र वे अपने तन पर धारण नहीं कर पाएंगे। उन्हें हर वक्त नग्न ही घूमना पड़ेगा। इस बात का सही पालन हेतु हमेशा उन पाॅचों लड़कों के साथ एक एक पुलिस के काॅन्टेबल होंगे। उन काॅन्स्टेबलों का केवल इतना ही काम होगा कि वे चौबिस घंटे उन लड़कों पर निगरानी रखेंगे। किसी को नग्न करने हेतु नग्नता का पुरस्कार उन बलात्कारियों को मिला। यह अत्यंत ही नायाब और ऐतिहासिक फैसला था। इसके बाद उन अपराधियों का क्या हाल हुआ देखिए-- वे अपराधी जहाॅ भी जाते दूर से ही बलात्कारी के रूप में चिन्हित हो जाया करते थे। लोग उनकी हॅसी उड़ाते, ऊँगलियों से दिखाते, कुछ लोग तो गुस्से से उनपर पत्थर भी उठाकर फेंकते। साथी काॅन्स्टेबल उनकी जानों को नुकसान होने से बचाता। वे लोग खीजकर चूहों की भाॅति अपने घरों के अंदर छुप जाते। मगर सर्वोच्च न्यायलय के आदेशानुर उन्हें अगले दिन फिर अपने बिल में से निकलकर काॅलेज जाना पड़ता। अबतक उनके परिजन भी पूरे समाज में बलात्कारी के परिजन के रूप में चिन्हित हो चुके थे। चारों ओर से घृणा और नफरत की बौछारें उन पर भी हो रही थी। अब जाकर किसी की इज्जत लूटने की बात उनको गहराई से समझ में आई ,जब बात खुद उनके इज्ज़त पर बन आई। पता चला कि दर्द से गुजरना कैसा होता है। हालांकि राजाजी , उस अनोखे फैसले को सुनाने के बाद ज्यादा दिनों तक जीवित न रह पाए थे। परंतु उनके इस अनोखे फैसले की चर्चा आजतक होती है। उसदिन जब राजाजी ने अपना फैसला सुनाया था तब कोर्टरूम में थोड़ी देर तक सुई पटक सन्नाटा पसर गया था! उपस्थित लोगो को फैसला समझने में वक्त लग रहा था। फिर तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा कोर्टरूम गूंज उठा था। सब खड़े होकर राजाजी का अभिवादन करने लगे थे। राजाजी का फैसला था - " जैसे को तैसा मिले। शेष सबकुछ समय उन्हें दे देगा । उनकी कर्मों की सजा वक्त के हाथों उन्हें खुद ब खुद मिल जाएगी। यदि कोई महिला बलात्कार के बाद जला दी जाती है तो उन बलात्कारियों को भी अपराध साबित होने पर पब्लिक के हवाले कर दिया जाए और पब्लिक को यह हक होगा कि उसे भी उसी भांति जिन्दा जला सकें। इसके बाद उनका फैसला महिला सशक्तीकरण का मुद्दा भी उठाता है। इस फैसले के तहत अठारह वर्ष या उससे अधिक आयु वाली महिलाओं के लिए पिस्तौल की ट्रेनिंग लेना अनिवार्य घोषित किया गया । अठारह वर्ष से ऊपर महिलाएॅ अपने पास बंदूकें रख सकेंगी और कभी भी असुरक्षित महसूस करने पर इसका इस्तेमाल भी कर सकेंगी। और आत्मसुरक्षा हेतु गोली चलाना कानून के दायरे में नहीं आएगा। ऐसा कानून पारित किया जाए। इससे आपात्काल की दशा मे महिलाएं स्वयं अपना सुरक्षा कर पाएंगी। गैंगरैप के समय अकेली निहत्थी महिला कैराटे इत्यादि हथकंडों से नहीं बच सकेंगी। साथ ही, राजाजी ने मानवाधिकार ग्राउंड पर राष्ट्रपति जी को भी अपील कर दिया कि उनका यह फैसला समस्त नारी जाति के हित को मद्देनजर रख कर लिया गया है, अतः उनके इस फैसले को जल्द से जल्द कानून के रूप में पारित कर दिया जाए। इधर अपराधियों को फाँसी की सजा न मिलने पर वे राष्ट्रपति जी के पास अपील न कर पाए। और मजबूरी में अगले तीस सालों तक के लिए नग्न जीवन व्यतित करने को बाध्य हुए। मरणोपरांत भी राजाजी अपने इस नायाब फैसले के कारण करोड़ों नारियों के हृदय मे जीवित है। असंख्य नारियां आज भी उनको धन्यवाद देती नहीं थकती। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस घटना के बाद बलात्कार के मामले आजकल बहुत कम दर्ज होने लगे हैं। नारियाॅ आज की दुनिया में काफी सुरक्षित महसूस करती हैं। यद्यपि, नग्न लोगों की संख्या में कुछ वृद्धि अवश्य हुई है, परंतु वे अपने किए पर बेहद शर्मिंदा है। हाॅ एक और बात हुई है, जहाॅ कहीं भी किसी ने किसी महिला को तिरछी नजर से देखा वहीं ये ही नग्त लोग पहुंचकर उसको रोकने लग जाते हैं। उनकी अपनी हालत से कुछ सीखने को कहते। आखिर कांटे से ही तो कांटे को निकालना पड़ता है।
एक अनोखा न्याय-- भाग -2 ( बलात्कार को कैसे रोके)
How to stop rape ?--- my own view
Originally published in hi
Moumita Bagchi
04 Oct, 2020 | 1 min read
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Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
bahut hi badiya
शुक्रिया, बबीता जी🙏
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