तय यह हुआ था कि शनिवार शाम को काॅलेज के बाद निशीथ ग्रैब्रियल के साथ वह कमरा देखने को जाएगा! जब दोनों वहाँ पहुँचे तो मकान मालिक पहले से ही प्रतिक्षारत मिला। ग्रैब्रियल ने आने से पहले ही शायद उनको खबर कर दी थी।
कमरा अपने आप में बड़ा शानदार था। एक शांत से इलाके में वह मकान था। आस- पास घने पेड़- पौधे थे। समीप में बच्चों के लिए खेलने का एक पार्क था जिसमें झूले आदि लगे हुए थे! यह वाला कमरा समूचे मकान से पृथक ( अलग),बाहर की ओर खुलता था। शायद किराये पर चढ़ाने के लिए ही ऐसा बंदोबस्त किया गया था।
कमरे का दरवाज़ा सीधे आँगन में जाकर खुलता था जहाँ से निकल कर आप सीधे सड़क पर पहुँच सकते हैं! एक बड़ा सा कमरा साथ में चौके के लिए अलग से जगह और उससे संलग्न एक बाथरूम भी था।
बाथरूम भी पुरानी शैली की थी जिसमें स्नानागार काफी बड़ा था! एक छोटी सी चौकड़ी वर्तन आदि माँजने के लिए भी बनी हुई थी। और जो बात निशीथ को सबसे अधिक पसंद आई ,वह थी इस कमरे के बाहर पार्क की ओर खुलने वाली एक प्रशस्त बरामदा भी था।
कमरे में ज़रूरत के सभी असबाब थे-- पलंग, पढ़ने के लिए कुर्सी- मेज़, एक आरामकुर्सी,रिडिंग लैम्प आदि! इसके अलावा बाथरूम में नल लगे हुए थे जिसमें से चौबिसों घंटा पानी बहता था। निशीथ को कमरा तो बहुत पसंद आया लेकिन वह यह सोच कर थोड़ा ठहर गया कि इसका किराया शायद उसकी हैसियत से बाहर की होगी! वह इस कमरे के लिए कुछ अधिक कीमत तक देने को तैयार था क्योंकि यहाँ से उसका काॅलेज नज़दीक ही था जिससे वह रोज़ पैदल काॅलेज जा सकता था। तो उसके काॅलेज आने जाने के लिए किराये की जो बचत होनी थी उसके पैसे वह मकान- मालिक को सौंपने को तैयार था।
निशीथ जानता था कि इस इलाके में मकानों के किराए अक्सर काफी अधिक हुआ करते हैं,, इसलिए उसने कमरे पर भली- भाँति एक नज़र मार लेने के बाद हिचकते हुए मकान मालिक से इस कमरे का किराया पूछा! मकान मालिक बहुत ही भद्र आदमी था। उन्होंने उसे हर तरह से मदद करने का आश्वासन दिया। वे स्वयं भी दो गली दूर अपने परिवार सहित रहा करते थे। इसलिए इस इलाके से वे भली- भाँति वाकीफ़ थे। उन्होंने कहा कि वे मूलतः छात्रों को ही कमरा किराये पर दिया करते हैं। चूँकि वे उनकी आर्थिक स्थिति को समझते हैं इसलिए कमरों का रेट उन्होंने बाज़ार दर से हमेशा कम रखा हुआ हैं।
परंतु इतना कम किराया सुन कर सहसा निशीथ को अपने कानों पर विश्वास न हुआ-- इतने सुन्दर और सर्वसुविधासंपन्न कमरे का इतना कम किराया?!! यह कैसे संभव है?! खैर, कम हो या ज्यादा ,,, इससे निशीथ का क्या लेना देना?उसके लिए तो जितना भी कम हो उतना ही अच्छा। पैसों की बचत हो जाया करेगी!
बहरहाल, निशीथ ने यह कमरा लेने का इरादा कर लिया। उसने मकान- मालिक से कहा कि कल आकर वह पेशगी देकर जाएगा और परसों सोमवार को काॅलेज समाप्त होने पर अपने सामानों के साथ यहाँ पर रहने के लिए आ जाएगा। सिर्फ एक ही कमीं थी इस कमरे में कि वहाँ जगह- जगह पर मकड़ी के जालें और धूल की परतें जमीं हुई थी! फर्श पर कई स्थानों पर काले धब्बे पड़े थे!
बरामदे के आस- पास भी जंगली झाड़ियाँ खूब उग आई थी। देख कर ऐसा लगता था कि काफी समय से यह कमरा किराये पर न दिया गया हो! इस ओर ध्यान दिलाने पर मकान मालिक ने निशीथ को एक बार फिर से आश्वासन दिया कि उसके यहाँ आने से पहले वे सब साफ करवा देंगे! आश्वासन पाकर निशीथ खुशी - खुशी बाहर निकल आया। आज रात को ही वह माँ को पत्र लिख देगा कि उसे रहने के लिए एक बढ़िया कमरा मिल गया है, अतः वे अब उसकी ज्यादा फिक्र न करें। कुछ बर्तन भांडे लेने पड़ेंगे।
अच्छे कपड़ों के लिए एक ट्रंक भी ले लेगा वह! और कुछ ही दिनों में जब थोड़े से पैसे इकट्ठे हो जाएंगे तो पुस्तकों के लिए एक अलमारी भी खरीद लेगा। मन ही मन इसी तरह सामानों की सूची तैयार कर रहा था निशीथ कि साथ चल रहे ग्रैबरियल ने उससे पूछा,
" तो निशीथ तुम्हें कमरा कैसा लगा?" ग्रैबरियल इस पूरे प्रकरण में बिलकुल चुप खड़ा था।
अतः आज की सारी बातचित निशीथ और मकान मालिक के बीच ही हुआ था। यहाँ तक कि निशीथ अपने ख्यालों में इतना खोया हुआ था कि वह ग्रैबरियल की उपस्थिति भी मानो वह थोड़ी देर के लिए भूल गया था! अभी ग्रैबरियल के यूँ अचानक कुछ पूछने पर वह चौंक कर उसकी ओर देखा।
फिर बोला--- " कमरा तो बहुत बढ़िया है। बिलकुल जैसा मुझे चाहिए था, वैसा!! सोच रहा हूँ कि अब बहुत कमरे देख लिए हैं ! इसी को पक्का कर दूँ!"
" फाइनल करने से पहले आसपास ज़रा पूछताछ कर लेते, निशीथ।" ग्रैबरियल बोला।
" अरे भाई इसमें पूछने की क्या जरूरत है? लोगों का क्या? वे अच्छे- अच्छे काम बिगाड़ कर रख देते हैं। और मुझे उनका करना भी क्या है? दिनभर काॅलेज करना है और रात को आकर पढ़ाई। और फिर खाना खाकर सो जाना है! गर्मियों की छुट्टियों में घर चला जाऊँगा,बस!! कुछ ही दिनों की तो बात हैं!" " परंतु यहाँ के लोग यह कहते हुए पाए गए हैं कि इस मकान पर कोई भूत- प्रेत का साया है। तुमने भी देखा न कि कमरा काफी समय से खाली पड़ा हुआ था? लोग, दरअसल यहाँ रहने से डरते हैं!"।
" अरे,,, ग्रैबरियल तुम विज्ञान के छात्र होकर भी भूत- प्रेत में विश्वास रखते हो?!! मैं नहीं मानता,,यह सब! लोग यूँ ही डरा करते हैं और डराया भी करते हैं!" निशीथ ने अपनी नाराज़गी जताई।
" देखो भाई निशीथ, तुम्हें बताना मैं अपना ड्यूटि समझता था, सो बता दिया। आगे तुम्हारी मर्ज़ी! " कह कर ग्रैबरियल लंबे- लंबे कदम भरता हुआ अपने घर की दिशा में चला गया! क्रमशः
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