क्वार का महीना लग चुका था।
आशीष के कमर की हड्डियाँ अब ठीक-ठाक जुड़ गई थीं। टूटा हुआ हाथ उसका हालाँकि अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया था। परंतु अब वह बिना किसी के मदद के चल-फिर सकता था। और बाएँ हाथ से किसी तरह अपने दैनंदिन कामों को करने की आदत भी उसने धीरे- धीरे डाल ली थी।
आशीष जब अक्सीडेन्ट के बाद सड़क पर गिरा था तो उसके ऊपर से सामान से लदी हुई एक टैम्पों चली गई थी! टैम्पोवाले को वह नज़र भी नहीं आया था, उसकी नज़र उस समय केवल सामने जलती हुई गाड़ियों पर थी। वह ड्राइवर हतवाक्- सा उनको ही देखे जा रहा था!
यह तो शुक्र है, कि केवल टेम्पों का पिछला पहिया ही उसके शरीर के ऊपर से निकला था, जिसके चलते उसकी कमर की पेल्विस हड्डी और दाहिने हाथ की ह्यूमरस नामक हड्डी में फ्रैक्चर आ गया था।
खैर, उचित आराम और औषधि से एवं माता के हाथों की भरपूर सेवा और दुआ के बदौलत आशीष शीघ्र ही स्वस्थ होने लगा था।
आज वह पाँव- पाँव चलता हुआ पापा के कमरे तक आया। अंदर झाँक-कर देखा तो पापा अकेले- अकेले ताश की पत्तियों को बिस्तर पर बिछाए खेल रहे थे। आशीष को देख कर वे प्रसन्न होकर बोले--
" खेलेगा, ब्रिज? एक- एक बाज़ी? अपनी मम्मा को भी बुला ले।"
फिर स्वयं ही आवाज़ तेज़ करके दीपा को बुलाने लगे!
पर किसी ने उत्तर न दिया।
अचानक जैसे कुछ याद आया, इस तरह अनिमेष बोले,
" अरे,,, मैं तो बिलकुल भूल ही गया था। आज तेरी ममेरी बहन, रूपा को देखने के लिए लड़के वाले आने वाले हैं। तेरी माँ को तो वहाँ जाना है। शायद इस समय दीपा तैयार हो रही होंगी।"
"ओह, अच्छा! फिर तो पापा पूरी शाम हमारी है-- चलिए ब्रीज खेलते हैं ,,, आपके लिए कुछ आर्डर कर दूँ? चीकू कह रहा था कि रोहतक में बड़े अच्छे- अच्छे होम- डिलिवरी के ज्वाइंट्स खुल गए हैं। कुछ के तो नंबर भी वह छोड़ गया मेरे पास! अपना मोबाइल दीजिए न,,,"
" अरे रुक जा बेटा,,,, तेरी माँ को पहले जाने दे। रात के खाने के लिए बोल देना। हाँ एक केक का आर्डर जरूर देना आज! पर इस समय के लिए तेरी माँ ने जरूर हमारे लिए कुछ न कुछ पकाया होगा।"
" अच्छा,, ठीक है।" आशीष ने हामी भरी और पिता- पुत्र फिर ताश के पत्तों में डूब गए।
कुछ देर के बाद आशीष फिर से बोला,
" पापा,सोच रहा हूँ कि एक मोबाइल फोन का आर्डर दे ही डालूँ। पता नहीं, वे लोग मेरे बिज़नेस को किस तरह चला रहे होंगे। मेल पर औपचारिक बातें हो जाया करती हैं, परंतु मैं स्वयं अपने पार्टनर से एक बार बात करना चाहता हूँ। मुझे एक- एक बात की जानकारी चाहिए।"
"फिर सोशल मिडिया से भी अब गायब हो गया हूँ। आज कल न पापा, अगर आप एक हफ्ता भी सोशल मिडिया से गायब रहो तो लोगों को शुबहा होने लगता है कि आप ज़िन्दा भी हैं या नहीं! बिजनेस हाऊसों के लिए लंबे समय तक गायब रहना ठीक नहीं हैं। व्यापार पर इसका बुरा असर पड़ता है।"
" पर बेटा, तू ज्यादा समय के लिए यहाँ रुकेगा तो नहीं? फिर इतने थोड़े से समय के लिए फोन- वोन के पीछे खर्चा करने की क्या जरूरत है, भाई। वह दीपा का पुराना फोन है न,,,वही जिसे तूने काॅलेज में पढ़ते समय खरीदा था,,, ? वह अब भी एक दम ठीक- ठाक काम करता है। मैंने एक बार उसकी बैटरी बदली थी,,, बस! "
"नोकिया वाले फोन की बात ही निराली थी,,, बैटा! मेरे ख्याल से तू उसे ही इयूज़ कर ले। फिर नया फोन भी तू लेगा तो ,,यह ,इंडिया वाला फोन तेरे यूनान में तो नहीं चलने वाला? " अनिमेश ने अपनी राय ज़ाहिर की।
"वह मेरा यूनान नहीं है, पापा!"
" अरे,,,वही,,, हें हें,,, एक ही बात है।" कह कर अनिमेष हँसने लगे।
"पापा नहीं समझेंगे!" अपने-आप से कहता हुआ आशीष उठ कर खड़ा हो गया! " इनके ज़माने के लोग ऊंगली से फोन का नंबर घूमा कर ऊँची आवाज़ में एक- दूसरे से बात करके ही खुश थे।"
स्मार्टफोन चलाते तो हैं, आशीष के पापा अनिमेष लेकिन वह अब भी उनके लिए कोई अबूझ पहेली के समान ही है। तभी वे नोकिया के पुराने फोनों की इतनी तारिफ़ कर रहे थे। कहाँ तो अब हम 5 G तक पहुँच चुके हैं,,, तकनीकी कहाँ से कहाँ चली गई हैं-- पर अनिमेष जैसे शख्शों को न उसकी कोई समझ है और न कोई जरूरत।
अनिमेष अपनी सर्जरी के बाद अब काफी हद तक ठीक हो चुके थे। हाँ दीपा, अब भी उनको घर से बाहर निकलने न देती थी, अतः अनिमेश घर के अंदर स्वाभाविक रूप से सारे कार्य कर लिया करते थे।
उनके खाने- पीने और दवाइयों में हर- संभव एहतियात दीपा बरता करती थीं! लेकिन अनिमेष का मना सदा मसालेदार चटा-पटा चीज़ खाने को किया करता था जिसे डाॅक्टर ने इस समय सख्त मना कर रखा था! तभी आशीष के ऑर्डर की बात सुनते ही उनका जी ललचा उठा बुरी तरह। परंतु दीपा की डाँट खाने से वे डरते थे!
दीपा अपने भाई के घर के लिए जा चुकी थी। जाने से पहले बाप- बेटे के मध्याह्न- भोजन का वे पूरा इंतज़ाम कर चुकी थीं। और आशीष से बार- बार ताकीद कर के गई थी कि उसके पापा को बाहर से मँगवाकर कुछ न खिलवाए।
शाम को बाई आकर दोनों के लिए रोटी सब्ज़ी बनाकर जाएगी।
करने को कुछ भी न था। इसलिए आशीष मम्मी के कमरे में जाकर अपना पुराना फोन ढूँढने लगा।
इसलिए नहीं कि उसे अपने पुराने फोन से कोई खास काम करने थे। पर उसने सोचा कि शायद फोनबुक से किसी पुराने दोस्त का नंबर मिल जाए तो फोन करके हाल- चाल पूछ लें।
बरसों बाद आशीष इंडिया लौटा था तो थोड़ा नास्टाॅलजिया महसूस करने लगा था। पुराने किसी दोस्त से बात हो जाती तो,,, आजकल वह घर से बाहर निकल भी नहीं पाता था।
आशीष को ज्यादा ढूँढना न पड़ा। थोड़ा सा ढूँढते ही उसकी माँ की दराज में से वह पुराना वाला नोकिया कंपनी का नीले रंग का पुश- बटन वाला फोन निकल आया था। फोन को देख कर आशीष को ध्यान आया कि मम्मी इसका खास ख्याल रखती हैं। तभी यह इतनी अच्छी अवस्था में है।
सिर्फ फोन ही क्यों, दीपा अपने बेटे के पीछे छोड़कर गए समस्त चीज़ों और स्मृतियों को बड़ा समेटकर रखा करती हैं! आखिर एक माँ हैं,वे।
बहरहाल ,सारे पुराने नंबर अब बदल चुके थे। आशीष के सभी दोस्तों के पास शायद अब नया नंबर आ चुका था। आशीष ने कई नंबरों को मिलाया भी --- पर सब जगह से एक ही जवाब मिला--
" डायल किए गए नंबर को कृपया जाँच लें।"
आशीष हताशा से भर उठा। उसने फोन को मम्मी के पलंग पर झटक दिया। फिर कुछ सोचकर उसने फोन को दुबारा खोल कर, आए हुए संदेशों को पढ़ने लगा।
" जन्मदिन की बहुत बधाई! जीवन भर की ढेर सारी खुशियाँ तुम्हें मिले सदा,-- ईश्वर से मेरी यही है इल्तज़ा।"
आज ही सुबह मिली इस संदेश को पढ़ कर और भेजने वाले का नाम देख कर आशीष एकदम से चौंक उठा। हाँ, आज उसका जन्मदिन जरूर है। पर--
"तो क्या, माहिरा को यह आज भी उसका जन्मदिन याद है?,,, न जाने कैसी होगी वह अब?,,, अरे हाँ, चीकू ने तो बताया था,,, कि उसकी जल्द ही शादी होने वाली है!"
क्रमशः
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.