रूही ऋतु आंटी को छोड़ने उनके घर तक गई! घर तो क्या था,,, मंदिर से लगभग आधे कोस की दूरी पर एक परित्यक्त खपरैल में इस समय अंकल और आंटी दोनों जने किसी तरह अपनी जिन्दगी के दिन गुज़ार रहे थे। खपरैल का किवाड़ खोलते ही एक सीली हुई अंधेरा रूही का स्वागत करता है! उसी अंधेरे में से किसी ने कमज़ोर कंठ से पुकार कर कहा, " पानीऽ, पानीऽ ,,,ज़रा पानी पिला देना!" यह क्षीण आवाज सतवीर अंकल की थी। रूही एक पल में पहचान गई। उसने मोबाइल से टर्च जलाया और भाग कर अंकल के पास गई। फिर पास मे ही रखी मिट्टी की सुराही में से, जिसके ऊपर रखी एक एलमुनियम का जरा सा घिसे हुआ पुराना गिलास भी था,उसी में काँपते हाथों से पानी भरकर उन्हें पीला दिया। सतवीर अंकल की यह हालत देखकर रूही मारे क्रोध से काँपने लगी थी। तभी पानी भरते समय उसके हाथ से कुछ पानी नीची जमीन पर गिर पड़ा था, जिसे सूखी, प्यासी ज़मीन ने तुरंत ही सोख लिया था! ऋतु आंटी अंदर आते ही जमीन पर बैठ गई थी! बैठने की और कोई दूसरी जगह उस खपरैल में कहाँ मौजूद थी? एकमात्र टूटा- फूटा चारपाई जो था, उस पर अस्वस्थ सतवीर अंकल पहले से ही लेटे हुए थे! अंटी जी की चोट से हालाँकि अब खून बहना बंद हो गया था, लेकिन दर्द,,, वह अभी तक कम न हुआ था। इन दोनों की हालत पर रूही को अब ज़ोर से रुलाई आने लगी थी! रास्ते में ऋतु आँटी ने रूही को पूरी कहानी बता दी थी,,, " शायद सतवीर से शादी के लिए हाँ कहना,,, मैंने बहुत बड़ी भूल कर दी थी, बेटा! मैं तो पहले से ही अभागी थी,, परंतु मैंने अपने साथ- साथ उनकी जिन्दगी को भी नरक बना दिया। " उन्होंने कहना शुरु किया था! " क्या हुआ था, आँटी,, बताइए ,,, आप दोनों इस हालत में कैसे पहुँची,, मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है! आप लोगों से मिलने चली आई थी, पर निराश होकर घर वापस जा रही थी तो संकट मोचन ने इस तरह आप से मिला दिया,,, आपके पुराने घर भी गई थी,,, पर वहाँ तो कोई और ही परिवार का निवास है,,,,यह सब कैसे हो गया ? बताइए न, आँटी?" " अरे रूही बेटा,,, जिसके किस्मत में दुःख लिखा हो,,, उसे संकटमोचन भी संकट से नहीं उबार सकते---! पहले छः महिनों तक तो सबकुछ ठीक- ठाक चल रहा था। हमने वह मकान दुबारा बनवाया था,, खेती- बारी भी अच्छी चल रही थी। तुम्हारे अंकल की मेहनत खूब रंग लाई थी। मकई की खेती उस साल इतनी अच्छी हुई थी कि उन्हें बेचकर खूब पैसे मिले थे।" " दिवाली के समय तुम्हारे अंकल शहर जाकर अपने पोता- पोती और बेटी-दामाद को नए कपड़े वगैरह अपने हाथों से देकर आए थे। बेटे और बहू को भी उन्होंने पैसे भिजवाए थे। इसके कुछ ही समय बाद ,,, यही कोई एक महीना बाद होगा शायद,,,राजा देश लौट आया था। एक दिन वह अपनी बहन को साथ लेकर यहाँ गाँव में हमसे मिलने आया था! विदेश में उसका कारोबार बंद हो गया था उसे इसलिए रुपयों की ज़रूरत थी। वह अपने पिता के पास आकर पैसों के लिए अनुरोध करने लगा। ये पिता थे तो अपने बेटे को कैसे मना करते? वह भी उस समय जब बेटाशमुश्किल में हो?सो ये रुपये देने को तैयार हो गए। राजा सारे कागज़ात साथ बनवाकर लाया था,,,और साथ में उसका वकील भी आया था। तुम्हारे अंकल ने उसके कहने पर तुरंत दस्तखत कर दिए थे! कुछ दिनों के बाद कोर्ट से निर्देश आया कि हमें वह घर खाली करना पड़ेगा!! यही नहीं हमारे खेत भी सारे रानी ने अपने नाम करवा लिए थे। और मकान को राजा ने हड़प लाया था! दोनों भाई- बहन शहर से ही सारी योजना बनाकर आए थे कि हमें हमारी समस्त संपत्ति से बेदखल करके ही दम लेंगे! राजा ने इसके बाद उस घर को तिनगुने कीमत पर किसी को बेच दिया था, अतः हमें वह घर खाली करना पड़ा! और हमारे बेघर होने के बाद यहाँ इस झोपड़ी में आ गए!" " ओह, कितना भयानक छल,,,! वह भी अपने ही औलादों के द्वारा!" रूही का रूह तक हिल चुका था। *********************************************** उस रात को रूही घर वापस न जा पाई थी। रात को सतवीर अंकल का बुखार बढ़ गया था। उसने उन्हें दूध लाकर गर्म करके दिया। अपने और आँटी के लिए रोटियाँ पकाई! रात को ही रूही ने फोन पर अपने पति को सारी बातें बता दीं थी! उसका पति विकास एक एनजीओ में कार्यरत था। उनका एनजीओ वृद्धों, लावारिसों और बेघरों के लिए काम करती थी। विकास ने सतवीर अंकल और आँटी के रहने के लिए वहाँ पर सब तरह का बंदोबस्त करा दिया। विकास के पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। रूही ने भी कम उम्र में ही अपनी माता और पिता को खो दिया था। अतः विकास और रूही माँ- बाप की अहमियत समझते थे। कुछ समय पश्चात् दोनों पति- पत्नी ने यह सम्मिलित निर्णय लिया कि वे सतवीर अंकल और ऋतु आँटी को अपने माता- पिता के रूप में गोद लेंगे। ( अर्थात् विधीवत रूप से उन्हें अपनाएँगे।) काफी दौड़ भाग करके विकास ने आखिर वह काम कर दिखाया जो सतवीर अंकल के खुद के बच्चों ने कभी न किया था! सतवीर अंकल के दोनों बच्चों ने हमेशा उन्हें एक मीठे पानी का कुँआ ही समझा था,, जिनसे जब- जब उनको जरूरत पड़ी वे बालती भर- भरकर पानी निकालते रहे! परंतु उनके दो नए कानूनी बच्चों के लिए केवल उनका आशीर्वाद ही सबसे मूल्यवान संपत्ति स्वरूप था! उन दोनों का उनके जीवन का हिस्सा होना ही सबसे बड़ा पुरस्कार था! हालाँकि उन दोनों के गोद लिए जाने के इस काम के विपक्ष में राजा और रानी की ओर से जोरदार विरोध हुआ था! कई- कई महीनों तक कोर्ट में केस भी चला,,परंतु आखिर जीत प्रेम ,श्रद्धा और मानवता की ही हुई थी!
***** समाप्त*****
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Happy Ending 👏
सुखद अंत👌👌
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