"मैडम, सेठजी आपसे मिलना चाहते हैं।"ड्रेसिंग रूम के दरवाजे से झांककर छोटू चिल्लाया। "तुम चलो, मैं थोड़ी देर में आती हूं।" उसकी मैडम जी ने कहा। लगभग आधा घंटा पहले नृत्य का कार्यक्रम समाप्त हो चुका था और आम्रपाली ड्रेसिंग- रूम में बैठकर अभी अपना मेक-अप निकाल रही थी कि सेठजी का बुलावा आ गया।
अक्सर ऐसा ही होता है। जहाँ भी वह प्रोग्राम करने जाती है वहाँ अक्सर उसे इन सब चीजों का सामना करना पड़ता है। अब बुलाया है तो जाना तो पड़ेगा ही ! आखिर पैसे दिए है उसने! कहाँ तो वह घर जाने के लिए छटपटा रही है।
उसका अनिकेत तीन दिन से अस्पताल में पड़ा हुआ है। अस्पताल वाले पूरे पैसे लिए बगैर उसे रिलीज भी तो नहीं कर रहे हैं। इसलिए मन न होते हुए भी उसे सेठजी के प्रोग्राम में नाचने के लिए आना पड़ा। पैसे भी काफी दे रहे थे ये लोग। वर्ना, खूब जानती है इन रइसो के चरित्र को वह। देखो कैसा आदमी है?!
एक ओर तो बीवी को खुश करने के लिए अपनी शादी की सालगिरह मना रहा है ।वहीं दूसरी ओर नर्तकियों के साथ टाइमपास भी करने का शौक रखता है। मन ही मन एक भद्दी सी गाली उसे देकर आम्रपाली चली सेठ से मिलने।
उसका असली नाम आम्रपाली नहीं, श्वेताम्बरा है। माँ- बाप ने यही नाम रक्खा था। पर स्टेज पर सब उसे आम्रपाली कहते हैं। श्वेतांबरा यानी कि देवी सरस्वती। हाँ, सरस्वती जैसी ही गुणवती है वह! जब भी वह नाचती है स्टेज पर तो ऐसा लगता है कि साक्षात् देवी माँ धरती पर अवतरित हुई है अपनी नृत्य-कला के प्रदर्शन के लिए।!
बचपन से ही उसे कत्थक बहुत पसंद था। "कथा कहे सो कत्थक"। हाँ, तब वह खुशी से नाचती थी परंतु अब इसीसे उसके घर का चूल्हा जलता है। इतना सा फर्क है ,बस!
लेकिन जब लोग पीठ-पीछे उसे नाचनेवाली कहते हैं, तो बहुत बुरा लगता है। कुछ लोग तो रंडी, वेश्या और जाने क्या-क्या कह देते हैं । तब उसे उन लोगों की घटिया सोच पर बड़ा रंज होता है । कलाकार के रूप में नर्तकों को आज भी कोई पहचान नहीं देना चाहता। उन्हें जाहिल ही समझते हैं सब।
लेकिन वह तो काफी पढ़ी-लिखी है ,अपनी मर्जी से ही वह इस पेशे में आई थी।
पाली ने जैसे ही सेठ के कमरे का दरवाजा खोला तो उसे बरसों पुरानी एक जानी-पहचानी -सी खुश्बू मिली। कदम एकबार रुक से गए। सेठ उस समय दीवार की ओर मुड़कर किसी से सेलफोन पर बात कर रहा था। थोड़ी देर में जब वह फिर से हँसा तो पाली के दिल की धड़कन तेज हो गई । वह भी बिलकुल इसी तरह हंसता था!! इसी समय सेठ भी बातों में मग्न दरवाजे की ओर मुड़ा। पाली उसे देखकर स्तब्ध रह गई!
यह कैसे संभव है!! इसी समय सेठ की दृष्टि पाली पर पड़ी। इतने वर्षों बाद पाली को यों अचानक अपने सामने खड़ी देखकर उसके हाथ से फोन छूटकर गिर गया और वे दोनों एक-दूसरे को अवाक् देखते रह गए! यहाँ तक कि दोनों की आंखे एक साथ डबडबा आई और उनको अपना चेहरा छुपाने के लिए दूसरी ओर जाना पड़ा।
अगले दिन सुबह पाली घर पर रियाज कर रही थी। तीनताल के बोल --
"धेत धेत धा, करधा तेटे धा, धागे तेटे धा"--को तबले और पैरों के बीच सही तालमेल नहीं बैठा पा रही थी। वह इसी उधेड़बुन में पड़ी कोशिश पर कोशिश किए जा रही थी। उसी समय डोरबेल बज उठा। खोलने पर सामने मोहित को खड़ा पाया।
यह वही मोहित था जो इक्कीस साल पहले अचानक उसकी जिन्दगी से गायब हो गया था फिर कल जिसके घर पर अकस्मात् मुलाकात हो गई थी। और पाली बिना कुछ कहे ही लौट आई थी। इसीसे शायद आज वह पाली से मिलने आ गया।
" अंदर आने को न कहोगी?" मोहित ने जरा अपना गला साफ करने के बाद कहा। उसकी आवाज अब संयत थी। जवाब में पाली ने जो कहा वह किसी को समझ न आया। पर उसने दरवाजे के एक ओर हटकर मोहित को अंदर आने दिया। पाली के आंखो के आगे इक्कीस साल पहले की स्मृति नाचने लगी।
कैसे वे और मोहित काॅलेज में पढ़ते समय एक दूसरे को चाहने लगे थे। कैसे वे दोनों कैम्पस में एक-दूसरे के बाहों में बाहे डाले घूमा करते थे। वह जिन्दगी भर साथ रहने का वादा! वह अथाह प्रेम जिसकी गहराई में वे दोनों ही डूबते चले गए थे।
फिर फेयरवेल पार्टी के दिन, पार्टी के उपरांत पाली के घर पर एक-दूसरे के अत्यंत करीब आना। दो जिस्मों का एक हो जाना। फिर मोहित का यह कहना ," मेरे लिए इंतजार करोगी न, श्वेता?" सब फ्लैशबैक की तरह उसकी आंखों के आगे नाचने लगता है।
"कैसी हो तुम, श्वेता?" मोहित ने पूछा। इससे पहले कि पाली कुछ कह पाती अनिकेत कुछ कहता हुआ कमरे से बाहर आया और एक अजनबी को माँ के पास बैठा देखकर चुप हो गया।
इधर अजनबी की हालत उसे देखते ही खराब हो गई थी। जिसे कोई न जान पाया! अनिकेत के वही नैन नक्श थे, वह मोहित पर गया था।
युवा मोहित जैसा ही लंबा छरहरा एक बीस वर्षीय नौजवान था अनिकेत! अनिकेत के चले जाने के बाद मोहित ने हिम्मत जुटाकर पूछा,
"मुझे तुमने यह सब पहले क्यों नहीं बताया, श्वेता?"
"किससे कहती, मोहित? तुम काॅलेज समाप्त होने के बाद ऐसे गायब हो गए थे, कि बहुत ढूँढने पर भी न मिले।"
पाली ने कहा।
" तुम ने तोशइंतजार करने को कहा था, सो कर रही हूँ और वह भी अब तक!" इसके बाद मोहित क्या कहे, कुछ समझ नहीं आया उसे।
लेकिन सच तो बताना ही था। खासकर जब वह वादा करके पीछे हट गया था। फिर धीरे-धीरे उसने अपने बारे में बताना शुरू किया, जैसे अतीत की भूली-बिसरी कोई किस्सा सुना रहा हो,
" परीक्षा समाप्त होने पर जब मैं घर गया तो एक हफ्ते के अंदर मुझे उसी शहर में एक अच्छी सी नौकरी मिल गई थी। माँ ने मेरे लिए पहले ही एक लड़की देख रखी थी। रुचि के साथ शादी करवाने की जिद्द अब वह करने लगी। मेरी एक न सुनी! मना करने पर उसने क्रोध में आकर नींद की गोली खा ली थी।
पिताजी के असमय मृत्यु के बाद उन्होंने ही अकेले मुझे पाला-पोसा था। अतः मुझे उनकी जिद्द के आगे झुकना पड़ा। तुम्हारी बात मैं उनसे कह नहीं पाया!"
"मैं तुम्हारा गुनहगार हूं। जो सजा चाहे दे सकती हो।"
कुछ रुककर मोहित ने पूछा, "तुम्हारे माँ-बाबू जी अब कैसे हैं? पाली ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "जब अनिकेत होनेवाला था, तो सबने मुझसे यही कहा कि बच्चा गिरा दो। यह नाजायज है। पर मैथ राजी न हुई। मोहित, हमारा प्यार नाजायज कैसे हो सकता है? "
"प्यार में सबकुछ जायज है। एक माँ के लिए उसकी हर एक संतान जायज होती है। माँ के स्नेह में कभी जायज -नाजायज का फर्क नहीं होता । माँ तो केवल माँ होती है! फिर तुम्हारे चले जाने के बाद अनिकेत के रूप में तुम्हारी यही एकमात्र निशानी तो रह गई थी मेरे पास! जो मेरे इस जीवन के लिए सहारा बनी। इसलिए मैंने उसे जन्म दिया। और अब उसका पालन-पोषण भी कर रही हूं। तुम्हीं बताओ, क्या मैंने कुछ गलत किया?"
" उसके जन्म लेते ही मेरे माॅ-बाप ने लोकलाज के कारण मुझे त्याग दिया। फिर मैं और मेरा नन्हा अनिकेत दोनों काफी संघर्ष करते हुए किसी तरह जीवित रहे। नृत्यकला ने बचा लिया था हमें उस समय। मुझे काम मिलते गए और जैसे-तैसे हमारा गुजारा होता चला गया।"
मोहित घर पहुंचा तो वह काफी परेशान था। रुचि की बातें उसे सुनाई भी न दी आज, और वह चुपचाप अपने कमरे में आ गया। आज जो उसने सुना उसके लिए वह अपने आपको कसूरवार मान रहा था। श्वेता को जब उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी तब वह उसके साथ न था। सच तो यह है कि उसकी इस हालत की उसने कभी कल्पना भी न की थी। पर मन ही मन उसकी हिम्मत को उसने सलाम किया।
प्यार उसने श्वेता से किया जरूर था कभी पर श्वेता ने अपनी जिन्दगी को दाव पर रखकर उसे निभाया! और अनिकेत ,उस मासूम का क्या दोष? मोहित की मातृभक्ति का खामियाजा उसे भरना पड़ा। अपने पिता के साएँ से सदा के लिए वंचित----इतना त्याग उस छोटे से बच्चे को करना पड़ा!!
पिता के होते हुए भी नाजायज का लेबल चिपका रहा हमेशा उसपर। यह हमारे समाज का कैसा न्याय है?
इसके तीन दिन के बाद मोहित सुबह उठकर अनिकेत को अपने ड्राइंग रूम में बैठा पाता है। उसने बताया कि पाली का एक्सीडेंट हो गया और वह आखिरी बार उससे मिलना चाहती है।
जब मोहित अनिकेत को साथ लेकर अस्पताल पहुंचता हैं तो वह नर्तकी मोहित से हाथ जोड़कर एक आखिरी विनती करती है कि अनिकेत को उसके हिस्से का पितृ-स्नेह मिले। और अनिकेत को उसके पिता के हाथ में सौंपकर एक माॅ, वह नर्तकी इहलोक त्याग जाती है।
इधर मोहित भी मन ही मन संकल्प करता है कि श्वेता तो बखूबी माँ का पार्ट खेल चुकी अब उसकी बारी है। वह अपना स्नेहपूर्ण हाथ रोते हुए अनिकेत के सिर पर रखता है। पिता-पुत्र के वर्षों बाद इस मिलन से मानो चारो दिशाएं जगमगा उठी।
दिए और पटाखे जलने लगे। आज दिवाली है।
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