माँ की अलमारी- 4

मायरा आखिर अनिकेत से मिलने उसके घर गई!

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 08 Jun, 2021 | 1 min read

मायरा ने उस बड़े से लोहे के गेट को धक्का मारकर खोल दिया। अब वह उस पुराने से मकान के अंदर थी। आँगन के किनारे कई सुंदर फूलों के पेड़ लगे हुए थे। उनमें से गुलमोहर और अमलतास के पेड़ों को वह पहचान पाई।

कुछ सूखे पत्ते जो आंगन पर यहाँ वहाँ बिखरे पड़े थे, मायरा के उन पर कदम रखते ही वे आवाज़ कर उठे थे। दफ्तर से तो अनिकेत का यही पता उसे मिला था। परंतु मायरा के मन में इस समय एक अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगी थी।

बुआ जी के आग्रह से वह यहाँ तक पहुँच तो गई है लेकिन पता नहीं उस अजनबी से वह कैसे बात करेगी?

क्या कहेगी--- " मेरी नौकरी मुझे वापस दे दो?"

या फिर-- ' देखों, तुमने मेरी नौकरी जबरदस्ती हथिया ली है,,, वापस करो, नहीं तो मैं कोर्ट में जाऊँगी!"

कोर्ट कचहरी कहीं मायरा के बस की बात है क्या? वह ठहरी नादान सी, बिन- बाप की बच्ची, सदा माँ की स्नेह- छत्र-छाया में पली,,, वह क्या जाने इतनी दुनिया दारी?

फिर जिस शख्स को उसने कभी पहले देखा ही नहीं, पहली मुलाकात पर ही उसके साथ झगड़ा कैसे करेगी? वह भी अकेले? वे लोग कहीं संख्या में बहुत अधिक हुए तो?

सबसे मुसीबत की बात तो यह है कि अगर बुआ जी भी साथ आ पाती तो वे ज़रूर मोर्चा संभाल लेती। पर ऐन मौके पर मायरा को यहाँ अकेले ही आना पड़ा। बुआ जी साथ आने को तैयार तो थी। लेकिन हुआ यह कि आज सुबह ही वे वाशरूम में पैर फिसल कर गिर पड़ी थी। घुटनों और कोहनी पर उनको काफी चोटें आई थी। किसी तरह उनको पेनकिलर देकर सुलाने के बाद ही मायरा ढूँढती हुई इस पते पर पहुँच पाई है।

परंतु अब? अब वह क्या करें? दरवाज़े के बाहर सिमेन्ट का एक नामपट्ट लगा हुआ था। मायरा आगे की ओर झुककर उसे देखने लगी! गहरे काले रंग के अक्षर कुछ धुँधले हो चले थे। कहीं- कहीं से वे घिस भी गए थे। फिर भी जोड़- तोड़ कर वह पढ़ पाई-- सचिन्द्रनाथ खेमका! अरे,,,यह तो उसके नाना जी का भी नाम था।

एक बार माँ को उन्हें पत्र लिखते हुए देखा था। वैसे तो अपने पिता के साथ उनकी बोलती बंद थी। परंतु किसी विशेष कारण से उन्हें लिखना पड़ गया था। माँ ने लिफाफे पर उसे पता लिख देने के लिए जब बोला था तो उसने उनसे पूछ लिया था, कि कौन हैं यह सचिन्द्र खेमका? यह बहुत समय पहले की बात है। आज वह पता भी उसे याद नहीं है।

पर सवाल यह है कि क्या यह उसके नानाजी का घर हैं? तो अनिकेत नानाजी के घर में रहते हैं?!! मायरा अभी इन्हीं प्रश्नों का हल खोज रही थी कि तभी घर के अंदर से एक नौकरनुमा शख्स बाहर आया और उससे पूछ बैठा,

" क्या आप किसी को ढूँढ रही हैं, मेमसा'ब?"

" अनिकेत जी यहीं पर रहते हैं?"

" जी हाँ।"

" तो मैं उनसे मिलना चाहती हूँ।"

" अंदर आइए,,,, क्या नाम बताऊँ उनको?"

" बताइए कि मायरा उनसे मिलने आई है।"

" अच्छा मायरा बिटिया हो आप?!! हैं,,, आइए,, आइए,, अंदर आ जाइए,,,,।" इतना कह कर वह आगे- आगे रास्ता दिखाता हुआ चला।

एक ही सेकेण्ड में मायरा मेमसा'ब से बिटिया बन चुकी थी। हैरानी से उसने पूछा--

" आप कौन हैं? क्या आप मुझे जानते हैं? "

जी,, बिटिया,, यहाँ सभी मुझे रामूचाचा कहते हैं। काफी वर्षों से हूँ। जब अनिकेत सा'ब छोटे से थे न,,, तब से। जानता हूँ बिटिया। मेमसा'ब ने बता दिया था,,कि आप आने वाली हो।"

मायरा आश्चर्य से सब सुनने लगी। फिर तो वह यहाँ अजनबी बिलकुल भी नहीं है!! और तो और ,, यह लोग उसके आने का इंतज़ार भी कर रहे थे!

रामूचाचा ने उसे सादर अंदर ड्राइंगरूम में ले जाकर बिठाया। फिर वह अंदर चल गया। थोड़ी देर बाद गृहस्वामिनी स्वयं उसके लिए एक ट्रे में सुगंधित शर्बत लेकर आई। शर्बत को टेबल पर रखकर वे बोली,,,

" आप,, तुम मायरा हो न? मैं सुहानी, अनिकेत की पत्नी। अनिकेत पूजा कर रहे हैं। अभी आते हैं। आपको घर ढूँढने में कोई तकलीफ तो न हुई?"

" जी नहीं। "

" अरे बैठो,, बैठो!" मायरा को सोफे से उठते हुए देखकर सुहानी ने कहा।

" आप भी बैठिए न!"

" हाँ।" इसके बाद सुहानी मायरा से उसके बारे में पूछने लगी कि वह क्या पढ़ती है, घर में इस समय कौन- कौन है इत्यादि। फिर वे उसकी माँ के बारे में भी पूछी। उन्हें क्या हुआ था- यही सब! माँ के बारे में बताते हुए एक बार मायरा जब रो पड़ी थी तो सुहानी उसके पास खिसककर आई और उसे गहरे आलिंगन में भरकर सांत्वना देने लगी थी।

इतनी देर में अनिकेत बाहर आया । वह सफेद शोक के कपड़ों में था। वह आकर कुर्सी पर अपना छोटा सा आसन रख कर बैठा। मायरा उसे अवाक् होकर देखती रही।

अनिकेत का चेहरा बिलकुल उसकी माँ जैसी थी। अनिकेत ने उसे यूँ टकटकी लगाकर देखते हुए देखा तो हँसकर बोला,

" मायरा, मैं ही तुम्हारे पास आने वाला था। साॅरी,मुझे ज़रा देर हो गई। और मेरे जाने से पहले ही तुम चली आई! जानता हूँ कि तुम्हारे मन में बहुत सारे सवाल है। आज मैं सभी बातों का खुलासा करता हूँ धीरे- धीरे। मैंने माँ से तुमसे मिलवाने के लिए बहुत बार कहा था। पर वे मानी नहीं। हमेशा कहती रही कि मायरा अभी भी बहुत छोटी है। यह सब समझ नहीं पाएगी। जब बड़ी होगी तो मैं उसे सब समझा दूँगी और तुम दोनों भाई बहन का मिलन करवा दूँगी! पर जिन्दगी ने उन्हें वह समय नहीं दिया!"

मायरा हैरानी से सुन रही थी सब।

" पर भाई - बहन? कैसे?!!" मायरा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।

" बताता हूँ,,, विमला देवी जैसी तुम्हारी माँ थी,, वैसी वे मेरी भी माँ थी!"

" नहीं समझी??,,, अच्छा बताता हूँ सब! पहले तुम नाश्ता कर लो।" थोड़ी देर पहले रामू चाचा टेबल पर उसके लिए नाश्ता रखकर गया था। उसकी ओर इशारा करके मायरा ने पूछा,,,

" और आपका?"

" मैं इस वक्त नहीं खाऊँगा, मैं आज कल एकाहार ले रहा हूँ।"

" फिर क्या हुआ बताइए--।" मायरा सारी बात जानने के लिए अधीर हो रही थी। सुहानी जो वहाँ बैठी थी उसने भी मायरा से खा लेने का आग्रह किया तो मायरा ने एक प्लेट में थोड़ा सा हलवा उठाकर खाने लगी।

" ठीक है अब फिर आगे सुनो--मायरा,,, तुम शायद नहीं जानती कि हमारी माँ ने दो शादियाँ की थी?"

" क्या?!!! नहीं,,, मैं सचमुच यह सब कुछ नहीं जानती।' मायरा बोली!

क्रमशः  

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Moumita Bagchi

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    👏

  • Moumita Bagchi · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद चारु😍🥰

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