निशीथ के जीजाजी, चित्तो बाबू कलकत्ता पहुँच कर निशीथ से मिलने न गए। वे सीधे ग्रैबरियल के घर जाकर रुके।
ग्रैब्रियल ने उन्हें अपने पत्र द्वारा ऐसा ही करने का अनुरोध किया था। अतः चित्तरंजन ने भी आगामी कुछ दिनों के लिए ग्रैबरियल के घर पर ही रुकने का फैसला किया था!
स्नान के उपरांत भोजन करके जब वे उठे तो चित्तरंजन ने अपनी थकान मिटाने के लिए थोड़ी देर के लिए एक छोटी सी निद्रा ले लेना उचित समझा!
बुद्धिजीवी आदमी थे। दिमागी कसरत कर सकते थे पर उसी अनुपात में कायिक श्रम उनसे न हो पाता था! उम्र भी अब उनकी चालीस के उस पार ढल चुकी थी , साथ ही शरीर भी काफी भारी -भरकम था! फिर रेल का सफर काफी थकाने वाला था! अतः अब बिना सोए उनकी बुद्धि काम न करने वाली थी!
सोकर जब वे उठे तो चित्तो बाबू ने ग्रैबरियल को अपने कमरे में बुलाया और उसके साथ बैठकर आगामी योजना यानी कि निशीथ को उस प्रेतिनी के चंगुल से छुड़ाने की प्रक्रिया पर मशविरा करने लगे!
सर्वप्रथम तो उन्होंने ग्रैबरियल से सविस्तार सारी घटना जाननी चाही। फिर वे यह जानकर अत्यंत क्रुद्ध हो उठे कि रमेन बाबू सब पहले से ही जानते थे! तब वे आनन फानन में कुछ फैसला करके ग्रैबरियल को साथ लेकर रमेन बाबू के घर चले।
वहाँ पहुँचकर चित्तोबाबू ने सीधे रमेन बाबू को संबोधित करके कहा--
" जानते हैं, आपके इस कृत्य के लिए मैं आपको पुलिस के हवाले कर सकता हूँ? आपको पैसों का इतना मोह था तो मुझसे कहते, मेरे बच्चे को ख्वामखाह उस प्रेतिनी के हाथों में क्यों सौंपा,,आपने?"
चित्तो बाबू की रुद्रमूर्ति को देख कर रमेन बाबू उनके सामने डर के मारे गिरगिराने लगे! उन्होंने उनसे माफी माँगी और आगे से निशीथ की मदद करने का हर तरह का आश्वासन दिया।
इसके बाद तीनों जने निशीथ से मिलने उसके घर गए।
उस समय दिन के करीब तीन- चार बज रहे थे, निशीथ घर पर ही था और जगा भी हुआ था। उसने कुछ किताबें मेज़ पर फैला रखी थी परंतु उनको पढ़ने के बजाय वह अपना सबसे पसंदीदा काम कर रहा था, यानी,,, लेटे हुए छत की सीलिंग निहार रहा था। ऐसा करते हुए वह निष्ठा के साथ अपने दिवास्वप्नों में अक्सर खोया रहता था!
तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। निशीथ ने उठकर दरवाजा खोला परंतु जीजाजी को सामने देख कर सकपका गया!
काफी समय हुए, निशीथ ने घर से पत्र- व्यवहार करना भूल गया था। उसे लगा कि जैसे माँ ने उसकी खोज- खबर लेने के लिए ही जीजाजी को यहाँ पर भेजा है।
" परंतु साथ में रमेन बाबू और ग्रैबरियल क्यों हैं?"
" और इन तीनों का चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है? क्या खिचड़ी पक रही हैं इन तीनों में?"
कई सारे सवाल निशीथ के मन में एक साथ ही उठे। फिर भी उसने उन तीनों का उचित आदर सत्कार करके उन्हें घर के अंदर ला कर बिठाया!
कुछ देर की निःस्तब्धता के बाद चित्तो बाबू ने सबसे पहले कहना शुरु किया। उन्होंने यहाँ आने के बाद इस कमरे के बारे में जो भी जानकारी हासिल की थी वह सब निशीथ को एक- एक करके कह सुनाया। रमेन बाबू ने भी अपना सिर झुकाकर उनका समर्थन किया। ग्रैब्रियल ने तब अपने साथ लाए हुए समाचार- पत्रों के कतरनों को निशीथ को दिखाया।
लेकिन निशीथ को इसके बाद भी कुछ विश्वास न हुआ।
" निष्ठा इतनी सुंदर और कोमल नारी है, और वह प्रेतिनी??!! असंभव!! ऐसा नहीं हो सकता है !! आप लोगों को जरूर कोई धोखा हुआ है !!" उसने कहा।
ग्रैबरियल काफी होमवर्क करके आया था। वह अपने दोस्त को बचाने को बद्धपरिकर था। उसने उन घरों को ढूँढकर निकाला था जिन घर के बेटों पर निष्ठा ने पहले भी अपना निशाना साधा था। ग्रैबरियल, उनके घर- घर जाकर पीड़ितों के परिवारों से बातचीत भी की थी। उनका दुःख भी बाँटा था!
इस समय वह निशीथ और सभी को ऐसे ही एक परिवार से मिलवाने ले गया।
उस परिवार की कहानी सुनकर निशीथ चौंक उठा!। यह तो उसी की कहानी है!! हूबहू एक समान!!
निष्ठा हमेशा रात के अंधेरे में आती है। और जैसे ही वह आती है, बत्तियाँ गुल हो जाती है। वह धीरे- धीरे इस लड़के के वैसे ही करीब आई थी जैसा कि उसने निशीथ के साथ भी किया था।
निशीथ अब कुछ- कुछ हकीकत से रूबरू होने लगा था। लेकिन वह सच जान कर बहुत घबरा गया। इसके बाद वह अपने चेहरे को दोनों हथेलियों से ढक कर रोने लगा!
इस समय इन तीनों सज्जनों ने मिलकर निशीथ का हौसला बढ़ाया इन्होंने उसको यकीन दिलाया गया कि वे सब निशीथ की रक्षा में कोई कसर न छोड़ेंगे और उसके साथ ऐसा कुछ कभी होने न देंगे!
सांत्वना देने के बाद निशीथ को उसके जीजाजी और ग्रैबरियल घर तक छोड़ने आए।
रमेन बाबू बीच में ही अपने घर चले गए थे,,, परंतु जाने से पहले वे कह कर गए थे कि उनकी जान पहचान में एक ऐसा ओझा है ,, जो भूत- प्रेतों को भगाना जानता है! उनसे पूछकर वे निशीथ की मदद करने की हरसंभव कोशिश करेंगे।
निशीथ को सबने कहा कि जब तक कोई दूसरा कोई उपाय न निकल आता है, तब तक उसे निष्ठा के साथ अपने प्रेम का नाटक जारी रखना पड़ेगा।
उसे किसी तरह भी पता नहीं चलना चाहिए कि निशीथ अब उसके बारे में सब कुछ जान गया है। वर्ना निशीथ के प्राणों को खतरा हो सकता है!
इस तरह निशीथ को समझा- बुझाकर चित्तो बाबू और ग्रैबरियल घर को लौट आए थे।
रात को जब निष्ठा आई तो निशीथ उसे देखकर एक बार तो भय से थर- थर काँप उठा! बुखार से उसका सारा बदन तपने लगा था। फिर भी किसी तरह उसने निष्ठा का हँसकर स्वागत किया।
इसके बाद वे दोनों पार्क में जाकर बैठे।
निष्ठा कोई किस्सा सुना रही थी और खिल- खिल कर हँस रही थी। परंतु निशीथ से आज कुछ भी सुना नहीं जा रहा था। कुछ देर बाद वह बेहोशी की हालत में वहीं पर गिरने को हुआ तो निष्ठा ने उसे पकड़ लिया।
फिर उसे बीमार देख कर धीरे से उसके घर पर छोड़कर चली गई।
बुखार की गोली खाकर जब अगले दिन उसका ज्वर उतरा तो रमेन बाबू उसके पास आए और बोले,
" राम ओझा से कल मेरी बात हुई है। वे आपसे आज ही एक बार दो बजे के करीब मिलना चाहते हैं।"
निशीथ ओझा के घर जाने को सम्मत हुआ। उसका साथ देने को ग्रैबरियल और चित्तोबाबू भी आ गए थे!
***अगले भाग में जारी****
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