चित्र

मनमोहक चित्र

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 03 Feb, 2021 | 1 min read

इन आंखों के बसा है

एक मोहक -सा चित्र तुम्हारा।


मानो कि वहां प्रत्यक्ष

है निवास तुम्हारा।


तुम्हीं हो विराजमान

इन पलकों के इस या उस पार

हटती न यह छवि तुम्हारी ,आंखों से।


देखती जिसे मैं बारंबार,

शयन हो अथवा जागरण।


तुम्हीं में होता विलीन

अस्तित्व मेरा

होकर तुम्हीं से शुरू।


लोग करते हैं तारीफ

बेबजह मेरी इन आंखों की,

क्या पता उन्हें कि

अगर खूबसूरत हैं ये

तो इसका कारण केवल यह

कि उनमें बसा है चित्र मेरे प्रीतम का।

तुम्हारी सुंदरता से सजकर ही

मोहमय हो उठते हैं मेरे नयन भी।


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Moumita Bagchi

moumitabagchi

Comments

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  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    👏👏👏👏👏

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर

  • Moumita Bagchi · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत शुक्रिया सोनु जी एवं अर्चना -- कविता लिखती नहीं हूँ, कुछ भाव लिखे थे कभी-- सोचा कि रोमांस फेस्टीवेल के काम आ सकता है😊

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