माहिरा कब तक वैसी ही बेहोश पड़ी रही, उसे पता न चला!जब उसे होश आया तो उसने देखा कि उसके सामने एक भयंकर लड़ाई हो रही है। वे लड़के अब उसे छोड़कर किसी और को पीटने लगे हैं।
लेकिन वह लड़का जो पीट रहा था वह हार नहीं मानता था।बार- बार इन लड़कों के हाथ से बच निकलता था और पलटकर उन पर वार कर देता था। तभी राजा ने पीछे से उस लड़के के सिर पर डंडे से जोरदार चोट किया।
उन्हीं लड़कों की गाली गलौच के बीच यह नया लड़का जोर से दर्द से चिल्ला उठा था!
उसका चिल्लाना सुन कर माहिरा को पूरी तरह से होश आ चुका था। उसने उस बुझते हुए अलाव की रोशनी में उस गिरते हुए लड़के का चेहरा देखा!
" अरे यह तो आशीष है! वही जो उसके साथ स्कूल में पढ़ता था। यह इस वक्त यहाँ पर कैसे आया?" माहिरा सोच में पड़ गई थी।
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आशीष को अपने कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श पाया तो वह पलटकर देखा। यह चीकू था, उसने पूछा,
" अरे, आशीष तू तबसे यहाँ पर खड़ा क्या सोच रहा है? उधर चलकर देख माहिरा रो रही है।"
आशीष चीकू की बात सुनकर माहिरा के पास गया। वह इस समय एक मेज़ के ऊपर बैठी हुई थी और आँचल से अपने आँसू पोछ रही थी।
कुछ दूर पर माहिरा के पिता लेटे हुए थे। उनके कुछ हितैषी उन्हें सांत्वना दे रहे थे। सांत्वना तो क्या दे रहे थे, उन्हें भाँति- भाँति से समझा रहे थे कि अगले ही लगन में कैसे भी करके माहिरा की शादी अगर न करवा दी गई तो उन्हें अपनी जात- विरादरी से हाथ धोना पड़ेगा!
पड़ोस में एक लड़का मिला था, जिसका नाम था मोहन, उसे किसी तरह समझा - बुझाकर माहिरा से शादी करने को तैयार किया गया। वह लड़का बेरोजगार था, मौके की नज़ाकत समझकर वह दहेज की एक मोटी रकम की माँग कर बैठा! हारकर माहिरा के पिता और चाचाजी को उसकी हाँ में हाँ मिलानी पड़ी।
मोहन को एक बड़ी सी गाड़ी और दस लाख रुपये की कैश चाहिए थी। माहिरा ने जैसे ही प्रतिवाद करनी चाही, सबने उसे धमकाकर चुप करा दिया।
आशीष माहिरा को कुछ बोलने ही वाला था कि उसके फोन पर एक एसएमएस आने की आवाज़ आई। आशीष अपनी मम्मी का पुराना फोन लेकर आया था। उसने अपनी जेब में से वही फोन निकाली और उसे खोलकर मेसैज पढ़ने लगा। फिर वह चुपचाप उस फोन को पाॅकिट में रख दिया और धीर कदमों से चलकर माहिरा के पास जाकर खड़ा हो गया।
पर जब माहिरा ने आँखें उठाकर उसकी ओर नहीं देखा। वह अपनी ही भावनाओं में बहती हुई रोती ही रही तो आशीष उसके आगे ज़मीन पर बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथों के बीच थामे बहुत ही मधुर स्वर में आशीष ने पुकारा--
" माहिरा,,, मुझे पहचानती हो?"
" तुम,,, तुम आशीष ,, हो न?!!! अरे तुम कब आए यूनान से?"
" कुछ हफ्ते पहले!"
" यह तुम्हारे हाथ में क्या हो गया? "
" एक एक्सीडेन्ट,,, बड़ी लंबी कहानी है,,, फिर कभी बताऊँगा। तुम कैसी हो? और यह सब क्या है?"
" मेरी शादी टूट गयी, आशीष । अब पापा जातिच्युत न हो जाए,,,, इसलिए किसी निकम्मा, नालायक से चाचाजी अब मेरी शादी करवाना चाहते हैं,,, बस!"
" तुम तो बहुत दिलेर हो, अकेली रात के अंधेरे में राजा के गैंग से निहत्थी भिड़ गई थी, उस दिन! फिर आज सच का सामना क्यों नहीं कर पा रही हो?"
"" हम्म,,, उम,,सारी उसी दिलेरी दिखाने का ही तो नतीजा है ,, जो आज यह दिन देखना पड़ रहा है।"
" तुम अपने साथ यह सब क्यों होने दे रही हो,,, ? सबको जाकर सच क्यों नहीं बता देती हो?"
" सच बताने से कौन विश्वास करेगा,,, उसदिन से जितनी भी बार कोशिश की सबने मुझे चुप करा दिया है,,,, तुमने भी तो मेरे लिए कितना कुछ सहा है,,, अब सबको सच बताने से भी तुम्हारे वे दिन ,,,, गुजरा हुआ वक्त वापस नहीं आएगा! जाने दो,,, जो मेरी किस्मत में लिखी है वह हो जाने दो अब,, आशीष,, मैं अब थक चुकी हूँ लड़ते-लड़ते!"
" पर , माहिरा,,, मैं इस तरह बार -बार हारते हुए नहीं देख सकता!" कहता हुआ आशीष वहाँ से उठा और सबके बीचोंबीच खड़ा हो गया। फिर माहिरा के पिताजी को संबोधित करता हुआ बोला,
" अंकल, मेरा नाम आशीष है। मैं माहिरा का बचपन का दोस्त हूँ, और उससे बहुत प्यार करता हूँ।अगर माहिरा को आपत्ति न हो तो आज, इसी लगन में उससे शादी करना चाहता हूँ।"
चीकू दौड़ कर आशीष के पास आया और बोला --
"आशीष , तू यह क्या कह रहा है?"
इतने में आशीष के चाचा जी आगे आए और बोले,
"तुम वही हो न,,, जिसने हमारी माहिरा बिटिया को अपवित्र कर दिया था? तुम्हारी हिम्मत कैसी हुई, यहाँ आने की?"
"नहीं अंकल,,,माहिरा का कभी रेप हुआ ही नहीं था। अदालत में चाहे जो भी प्रमाणित किया गया,,,लेकिन माहिरा आज भी उतनी ही पवित्र है,,, जितनी की उस दिन थी। यह राजा के गिरोह की एक चाल थी। वे काॅलेज में गैर- कानूनी ढंग से ,विद्यार्थियों के बीच ड्रग बेचा करते थे। माहिरा ने उस दिन उनको रंगेहाथ पकड़ लिया था।
अंकल ड्रग का धंधा करोड़ों में हुआ करता है अकसर। वे लोग माहिरा से डर गए थे, अतः उसको काॅलेज से निकालना जरूरी हो गया था। अतः उस पर यह बलात्कार आदि होने का अफवाह फैलाकर उसे काॅलेज से निकलवा दिया। आप तो जानते ही हैं कि अगर एकबार किसी लड़की का बदनाम कर दिया जाए तो वह समाज में किसी को मुँह दिखाने के काबिल न रहती है। उसके घरवाले तक उस पर यकीन नहीं करते हैं।"
" पर बेटा, मैंने उसका मेडिकल रिपोर्ट अपनी आँखों से देखा था!"
" अंकल, डाॅक्टर को डरा धमकाकर फर्ज़ी रिपोर्ट भी बनवाया जा सकता है। आप एकबार अपनी बेटी से पूछ कर तो देखते!"
" अबे, चुप!! एक शब्द और बोला तो! तूने ही हमारी बेटी को भ्रष्ट किया है, और अब उल्टी- सीधी कहानी गढ़कर हमें बहकाने आया है। तुझे तो पुलिस के हवाले कर देना चाहिए! अरे हाँ, याद आया,,, तू तो पैरोल जम्प करके विदेश भागा था,,, रुक जा,,, पुलिस को फोन लगाता हूँ।" कह कर माहिरा के चाचा जी पुलिस को फोन मिलाने लगे।
तभी माहिरा ने आकर उनके हाथ से फोन छिन लिया। और अपने चाचा से बोली--
" पुलिस में तो इस बार आप जाएँगे। आपने राजा के गिरोह से पैसे लिए थे आशीष के खिलाफ कोर्ट में गवाही देने के लिए! यह मुझे पहले से ही पता था। पर मेरे हाथ में कोई सबूत नहीं था। फिर आपने ही सभी रिश्तेदारों के बीच मेरी बदनामी की। यह भी आपने राजा के कहने पर किया ताकी लोगों को हमसे इतनी घृणा हो जाए कि उनके तानों से हम कहीं भी मुँह दिखाने के काबिल न बचे।"
" आज भी,आप जान बूझकर मेरे लिए ऐसा रिश्ता ढूँढकर लाए जिससे कि पिताजी के समाज में और बदनामी फैल जाए! उन्होंने आपको पढ़ाया- लिखाया। आपकी शादी करवाई और आपने उनके इस उपकार का बड़ा ही अच्छा सिला दिया चाचाजी ,,,वाह!! क्या बात है?" माहिरा बोली।
पुलिस को नंबर लग चुका था।उधर से कोई " हैलो" बोला तो माहिरा ने पुलिस को यहाँ का पता बता दिया।
" इ,,इ ,,, तूने क्या किया माहिरा? अरे यह तेरे चाचा जी है।हमेशा तुम्हारे भले के लिए सोचते हुए जिसने अपने बाल सफेद कर लिए।" माहिरा की चाची ने गुस्से से माहिरा को मारने के लिए जैसे ही हाथ उठाया, आशीष, जो वहाँ पर खड़ा था, उसने चाचीजी का हाथ झट से पकड़ लिया।
" माहिरा सच ही कह रही है, अंकल। आप शायद नहीं जानते कि चाचाजी ने आपकी सारी संपत्ति आपको बिना बताए अपने नाम कर ली है। हमारे वकील अंकल ने एक दिन मुझे वह डीड दिखाया था। और हाँ अंकल, आपने ध्यान दिया ,, जब से वह काँलेज वाला वाक्या हुआ था,,, तब से इनके पास इतनी बड़ी गाड़ी, बंग्लो,,,सब कहाँ से आया? एलआईसी के क्लर्क को क्या इतना पैसा मिल जाता है कि वह बीएमडब्लू खरीद सके?"
"वह तो हमने बैंक से लोन लेकर खरीदा है,," माहिरा के चाचाजी तुरंत बोले।
" हाँ जी, और वह लोन भी आपने एक साल के अंदर ही चुका दिया है।एक साल के अंदर आपके पास पच्चीस लाख रुपए कहाँ से आ गए? बैंक में डाका डाला था क्या आपने?" आशीष व्यंग्यात्मक रूप से बोला।
" रघू,, तूने यह सब कुछ मेरे साथ किया? मेरी बच्ची को तूने बदनाम किया?!! मैं कितना बेवकूफ हूँ,,, बरसों से अपने ही आस्तीन में साँप पालता रहा। तेरे कारण, मैंने अपनी मातृहीन बच्ची पर भी भरोसा न कर पाया!" इतना कहकर माहिरा के पिताजी ने उसके चाचा को एक जोरदार चाँटा लगा दिया।
पुलिस आ चुकी थी और वह इस बार चाचा जी और चाची जी को अपने साथ वैन पर बिठाकर ले गई।
*** अगले भाग में समाप्त***
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