आमतौर पर एक हिन्दुस्तानी लड़की के तीन प्रकार के भाई होते हैं-- एक सहोदर भाई, दूसरा राखी भाई और तीसरा मुँह- बोला भाई। परंतु राखी का इन तीनों में से कोई भी न था। वह अपनी माता- पिता की इकलौती संतान थी। और उसके माता- पिता दोनों भी बड़े ही अद्भुत् संयोगवश अपने माता- पिता की अकेली संतानें ही थीं।
श्रावण पूर्णिमा के दिन वह पैदा हुई थी इसलिए उसका नाम राखी रखा गया था।
राखी एक छोटे से कस्बें में रहती थी। उसने हमेशा से ही कन्या- विद्यालय में शिक्षा पाई है। जाहिर तौर पर उसकी सारी सहेलियाँ भी लड़कियाँ ही थी। घर के रूढ़ीवादी शासन- व्यवस्था के बदौलत किसी लड़के से कभी उसकी कोई दोस्ती न हो पाई थी। और इस कारण उसका कोई मुँहबोला भाई भी न बन पाया था।
हर वर्ष रक्षाबंधन का त्यौहार आता था और आकर चला भी जाता था और राखी को उदासी से भर जाया करता था। उसकी बड़ी इच्छा थी कि अपनी सहेलियों के मानिंद वह भी किसी भाई की कलाई पर कभी राखी बाँधे!
बचपन से ही, इस तरह, एक भाई की चाहत उसके मन के एक कोने में छिपी हुई थी। यह गूढ़ इच्छा वह किसी को कभी बताती न थी। परंतु यही इच्छा उसके मन की गहराई में, सुषुप्त अवस्था में ही सही, एक चाहत की मोटी परत बनकर पसरी हुई थी।
धीरे- धीरे समय बीतता गया और राखी ने स्कूल की पढ़ाई समाप्त कर काॅलेज की देहलीज पर कदम रखा। वह पढ़ने में काफी तेज़ थी। उसे मेडिकल काॅलेज में दाखिला मिल गया था। उसके माता- पिता की बड़ी इच्छा थी कि बेटी एक सफल चिकित्सक बनें। आज उनका यह सपना पूरा होने जा रहा था।
परंतु मेडिकल की पढ़ाई के लिए उसके कस्बे में कोई अच्छा काॅलेज नहीं था। अतः उसे इसके लिए शहर जाना पड़ा। वहीं काॅलेज के होस्टल में रहकर वह पढ़ाई करने लगी। हर महीने के दूसरे शनिवार को उसका काॅलेज बंद रह करता था। तब वह दो- दिन के लिए अपने घर पर रहने आ पाती थी।
एक सोमवार सुबह को जब वह काॅलेज वापस जाने के लिए सुबह साढ़े छः बजे का लोकल पकड़ने को स्टेशन गई तभी उसने नीली जीन्स और नारंगी टी शर्ट वाले उस लड़के को पहली बार देखा था, जो उसकी ओर एकटक देखे जा रहा था।
आयु में वह राखी से कोई छः सात साल बड़ा दिखता था। खूब ऊँचा कद, चौड़ा कंधा और काले घने घुंघरालू बाल जो उसके माथे को पारकर उसकी भौंहों को छूने की कोशिश कर रहे थे। अपने एक कान में उसने एक छल्ला भी पहन रखा था।
दाढ़ी- मूछें उसकी साफ थी। परंतु इस ऊँचे डील- डौल वाले लड़के की आँखें कुछ बुझी हुई सी थी। न जाने कौन- सा दुःख था उसे। और वह इन्हीं दुःखभरी निगाहों से राखी को बिना पलक झपकाए देखे जा रहा था!
कंधे पर उसका एक भारी-सा थैला लटक रहा था जिसे वह एक हाथ से संभाले रहा था, जबकि दूसरा हाथ उसका मजबूती से साइकिल की हैण्डिल को थामें हुआ था। और वह रेलवे लाइन के किनारे खड़े होकर टकी-टकी बाँधे तब तक राखी को देखता रहा जब तक कि उसकी ट्रेन चली न गई हो। इसके बाद वह स्वयं भी आगे बढ़ गया।
राखी को लगा कि जरूर कोई सड़क छाप रोमियो होगा!! कोई लड़की देखी नहीं कि लगा उसे ताड़ने! उसने पहले तो इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। परंतु हर महीने जब भी वह घर से काॅलेज जाती थी, उस लड़के को उसी भाँति अपने- आपको निहारते हुए पाती थी। आश्चर्य की बात तो यह थी कि वह केवल दूर से ही उसे निहारा करता था। पास आकर कभी कुछ नहीं कहता था।
शुरू शुरू में राखी उसकी इस हरकत से बड़ी ही असहज महसूस करती थी। परंतु आजकल वह इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देती है।
और यह सिलसिला हर महीने बादस्तूर चलता रहा।
लेकिन राखी गलत थी। उसका मन भी शायद धीरे-धीरे उन निगाहों की आदी होने लगा था। इसका पता उसे कोई छह महीने बाद चल पाया था। एक सोमवार को सुबह जब वह ट्रेन पकड़ने को स्टेशन गई तो वह लड़का उसे नहीं दिखा।
उसने इधर- उधर प्लैटफाॅर्म के एक सिरे से दूसरे सिरे तक उसे ढूँढा पर वह उसे कहीं नज़र नहीं आया। यहाँ तक कि थोड़ी देर में ट्रेन भी आकर प्लैटफाॅर्म से लग गई, तब भी वह नीली जिन्स वाला लड़का उसे नहीं दिखा, कहीं।
" ऊँह, मुझे क्या?"
कहकर अपना कंधा ऊचकाकर राखी लेडिज़ कमरे में चढ़ गई और आराम से सीट पर बैठ गई।
इस तरह दो-तीन हफ्ते तक जब वह लड़का राखी को दिखाई न दिया तो वह धीरे- धीरे उसको भूलने लग गई थी।
अगस्त का महीना आ गया था। होस्टल शनिवार, रविवार, रक्षाबंधन, ईद आदि के कारण चार दिन तक बंद रहने वाला था। राखी तो घर जाने की खुशी में कक्षाएँ समाप्त होते ही शुक्रवार शाम को अपना सामान बाँधकर स्टेशन के उद्देश्य में चल दी थी।
परंतु वहाँ पहुँचकर पता चला कि कोई अक्सीडेन्ट होने के कारण आज की सारी ट्रेनें देर से चल रही हैं। उसका घर शहर के स्टेशन से कोई चार घंटे के सफर पर था।
दूसरा कोई साधन न होने के कारण वह अन्य यात्रियों के समान लेटफाॅर्म पर ही इंतेज़ार करने लगी।
इसके कोई एक घंटे के बाद गाड़ी प्लेटफाॅर्म पर लगी।अपने गंतव्य स्टेशन तक पहुँचते- पहुँचते रात घिर आई थी। सावन का महीना था दोपहर से ही हल्की- फुल्की बारिश हो रही थी। अपने स्टेशन पर उतरकर राखी ने पाया की बारिश की वजह से बिजली की कटौती कर दी गई है, जिसके फलस्वरूप चारों तरफ अंधेरा फैला हुआ है। बारिश की बूँदे इस समय भी गिर रही थी।
पिता जी को खबर की होती तो वे जरूर स्टेशन पर लिवा लेने आते परंतु राखी का मंसूबा उनको सरप्राइज़ देना था। इसलिए उनको फोन नहीं किया। उसने छतरी निकालकर फोन का टाॅर्च जलाकर जल्दी- जल्दी कदम भरकर चलने लगी।
उसे लगा कि स्टेशन से बाहर जाएगी तो जरूर रौशनी मिल जाएगी। वह जल्द से जल्द स्टेशन इलाके से निकल जाना चाहती थी। उसका घर नजदीक ही था।
उसने आसमान की ओर देखा तो बादलों के कारण पूरनमासी का चाँद कहीं नज़र नहीं आ रहा था। स्टेशन इलाके में इस समय रात होने के कारण लोग भी बड़े कम थे। वैसे छोटा सा स्टेशन था, ज्यादा गाड़ियाँ नहीं रुकती थी यहाँ। फिर दिन की आखिरी गाड़ी होने के कारण राखी के साथ उतरनेवाले यात्रियों की संख्या बिलकुल नगण्य थी। वे सभी भी ट्रेन से उतरते ही न जाने कहाँ ओझल हो गए थे।
स्टेशन से निकलकर वहघर जाने के लिए रिक्शा ढूँढने लगी। पर इतनी रात को उसे वहाँ कोई दिखाई न दिया। सो, वह पैदल ही घर के रास्ते पर चल पड़ी।
कुछ कदम चलते ही उसे दूर से कुछ लोगों का एक जत्था दिखाई दिया। यह देखकर वह बड़ी खुश हुई कि चलो कोई तो मिला। परंतु आगे बढ़कर तबनिराशा उसके हाथ लगी जब उसे समझ में आया कि वह कुछ शराबियों का जमावड़ा था। वह चुपचाप पास से निकल जाना चाहती थी।
परंतु उसे अकेली देखकर एक आदमी उसकी ओर लपक कर आया और उससे अश्लील भाषा में बातें करने लगा। तभी दूसरा आदमी हाथ पकड़कर राखी को खींचने लगा। राखी ने घबड़ाकर उस आदमी को पूरी शक्ति से जोर से एक धक्का दिया और वह आदमी सड़क पर गिर गया।
उसे गिरते देखकर बाकी लोगों ने आकर राखी को घेर लिया। शराबियों के बीच इस समय एक अजीब सी एकता देखी गई कि एक को चोट पहुँची तो सबके सब उसका बदला लेने को तैयार हो गए। किसी ने राखी का दुपट्टा छिन लिया, कोई उसका बाल पकड़कर खींचने लगा। राखी चार- चार मुस्तैणडों से अपने आपको छुड़ाने की कोशिश नाकाम करने लगी।
इतनी देर में अंधेरे से कोई आदमी साइकिल लेकर वहाँ से गुज़रा। उसने यह दृश्य देखी तो साइकिल को किनारे पर रखकर इन शराबियों पर पील पड़ा। उसने सबसे पहले राखी को इन लोगों के च॔गुल से छुड़ाया।
राखी के कपड़े यहाँ-वहाँ से फट चुके थे और उसका दुपट्टा भी कीचड़ में गिर गया था। उस आदमी ने तब राखी को अपना लंबा सा रेनकोट निकालकर पहना दिया।
राखी ने गौर से अपने उद्धारकर्ता की ओर देखा तो पाया कि यह वही नीली जिन्स वाला लड़का है! उस लड़के ने पहले तो उन शराबियों की जमकर पिटाई की और फिर राखी को कुशलपूर्वक उसके घर पर छोड़कर आया।
रास्ते में उस लड़के ने राखी को यह बताया कि उसका नाम कमल है और वह रेलवे प्लैटफार्म पर अगरबत्तियाँ बेचा करता है।
लगभग एकवर्ष पहले ऐसे ही सावन की एक बरसाती रात में कुछ गुंडों ने उससे दस वर्ष छोटी बहन के साथ दुष्कर्म करके उसे मरने के लिए रेल की पटरियों पर फेंक दिया था। काम्या उसकी इकलौती बहन थी जिसे माता- पिता की मृत्यु के बाद उसीने अपने हाथों से पाल- पोसकर बड़ा किया था। कहते हुए कमल की आँखों से कुछ बूँद आँसू निकल आए थे।
जाने से पहले कमल ने राखी से एक और अजीब सी बात कही कि राखी का चेहरा उसकी दिवंगत बहन काम्या से हू बहू मिलती है। तभी वह जब भी राह चलते राखी को देखता था तो यूँ विह्वल होकर सिर्फ उसे ही देखा करता था । मन ही मन यह सोचकर उसे एक तरह का संतोष मिलता था कि उसकी बहन अभी भी उसके आस पास ही कहीं हैं।
यह जानकर राखी सिर से पाँव तक काँप उठी थी। उसके पैर जहाँ के तहाँ रुक गए। कमल उसे घर पहुँचाकर वापस जा रहा था।
तभी राखी की मम्मी घर से बाहर निकलकर आई। उन्होंने सबकुछ सुन लिया था और राखी की हालत देखकर शेष बात उन्हें समझते देर न लगी। उन्होंने तुरंत आवाज़ देकर कमल को वापस बुलाया और कहा,
" बेटा, आज जो तुमने राखी के साथ किया वैसा कोई भाई ही कर सकता है। कौन कहता है कि तुम्हारी काम्या नहीं है? आज से राखी ही तुम्हारी काम्या है। कल रक्षाबंधन है। राखी बंधवाने जरूर आना बेटा!"
राखी के मन में उभर रहे भावों को माँ ने शब्दों का जामा पहनाकर रख दिया था । वह दौड़कर कमल के पास गई और उसका हाथ पकड़कर आग्रहपूर्वक पूछने लगी--
" आओगे न, भैया? मुझे वर्षों से आप ही की कलाई का इंतज़ार था। मेरा भी आजतक कोई भाई नहीं था। आज से आप मेरे भाई हुए। ठीक है, न?"
तब आँखों से उमड़ते हुए आँसुओं के सैलाव को पोछकर कमल ने उससे कहा,
" आऊँगा पगली! क्यों नहीं आऊँगा? तू बुलाएगी तो, मुझे आना ही पड़ेगा!"
और वह ऐसे ही अपनी काम्या को भी पगली कहा करता था!
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
Thank you dear ❤
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