तेरे बिना भी क्या जीना - 3

लिज़ा आशीष को एयरपोर्ट ड्राॅप तो कर देती है, परंतु एक प्रकार की असुरक्षा उसके मन में घर कर जाती है-- उसका आशीष उसके पास वापस तो आएगा न?

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 15 Feb, 2022 | 1 min read

लिज़ा आशीष को खुद ड्राइव करके एयरपोर्ट छोड़ने आई थी।

आशीष ने कल घर के लिए अपने टिकट बुक करा लिए थे। बारह वर्ष के बाद वह इंडिया जा रहा था! और करता भी क्या? पापा की तबीयत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी, अतः इस समय एक बार घर जाकर उनसे मिलने का उसने पक्का इरादा कर लिया था! माँ - पापा जिन्दगी भर साथ तो नहीं रहते हैं---आखिर पापा की भी तो यही एक ख्वाहिश थी!

उसके पापा ने कभी आज से पहले किसी बात के लिए उससे इतनी मिन्नत न की थी! अब बेटे का भी तो उनके प्रति कोई फर्ज़ था!

विदाई की बेला में लिज़ा थोड़ी सी भावुक हो गई थी। अचानक उसने पूछा--

" Are you sure, that you're going to come back, Ashish?" ( तुम वापस तो आ रहे हो न, आशीष?")

" Ofcourse, Lizi!! I am leaving everything behind! " ( ज़रूर लिज़ी!! मैं सबकुछ यहाँ पर छोड़े जा रहा हूँ!!) आशीष बोला।

" Will you miss me, there ?" ( क्या तुम मुझे वहाँ पर मिस करोगे?) लिज़ा ने फिर से पूछा।

"Certainly dear! And you?" ( जरूर प्रिये, क्या तुम नहीं मिस करोगी मुझे?) आशीष पूछा।

लिज़ा ने आशीष के इस प्रश्न का कोई जवाब न दिया। पर उसकी झील-सी नीली आँखों की पुतली के ऊपर से एक असुरक्षा का भाव तैर कर चला गया। फिर बहुत अचानक ही वह काफ़ी पोज़ेसिव स्वर में आशीष से पूछ बैठी--

" I guess, you're not going to marry any Indian girl of your family's choice?" ( आशा है, कि तुम वहाँ जाकर अपने परिवार की पसंद की किसी भारतीय लड़की से तुम शादी नहीं कर बैठोगे?)

" Why are you even thinking this, Liz? This is not the right time to discuss all these!! Control yourself, my dear! My Dad is not keeping well! I am going to meet him,,thats all!" (तुम ऐसा सोच भी क्यों रही हो लिज़। इन सब बातों के लिए यह सही समय नहीं है। संभालो खुद को!!मेरे पापा बीमार हैं। मैं केवल उनसे मिलने जा रहा हूँ।)

"Yeah, I know--!" ( हाँ मैं जानती हूँ--!)

फिर एक जिद्दी बच्चे की तरह थोड़ा मचलकर लिज़ा बोली--

" Then take me along too---" ( फिर मुझे भी अपने साथ लेकर चलो)

"Not this time dear, next time when I visit India, you'll be with me, I promise !" ( इस बार नहीं। पर मैं तुमसे वादा करता हूँ, अगली बार जब मैं इंडिया जाऊँगा तो तुम जरूर मेरे साथ होगा।) आशीष उसका हाथ पकड़कर बोला।

इसके बाद आशीष ने कस कर लिज़ा को गले से लगा लिया।

अब आशीष को भी लिज़ा को छोड़ कर जाने में बड़ा दुःख हो रहा था। पिछले चार वर्षों से उनका रिलेशनशीप था। इस तरह अलग होने का मौका शायद पहले ही दफ़ा आया था।

एलिज़ाबेथ ब्रिटिश मूल की एक सुंदर विदेशी बाला थी। उसके पूर्वज़, कोई तीन पीढ़ी पहले एथेन्स शहर में आकर बस गए थे। तब से उसका परिवार यूनान में ही रह रहा था।

एलिज़ाबेथ पेशे से एक डाॅक्टर थी। उसी के चेम्बर में आशीष के साथ उसकी पहली मुलाकात तब हुई थी जब आशीष अपने कंपनी के इंप्लाइज़ हेल्थ केयर फेसीलिटिज़ के सिलसिले में उससे मिलने गया था। पहली ही नज़र में लिज़ा आशीष को अपना दिल दे बैठी थी।

आशीष को वह पसंद तो बहुत थी। पर न जाने क्यों एलिज़ाबेथ के बहुत बार कहने पर भी वह उससे शादी के लिए तैयार नहीं हो पाया था।

एलिज़ाबेथ एक नेक दिल इंसान थी और आशीष का बहुत खयाल भी रखती थी, फिर भी उसे लेकर आशीष के मन में कुछ द्वन्द्व सा था। उसमें वह अपनी दुल्हन की छवि न देख पाता था। कहीं कुछ ऐसा था--- पता नहीं क्या-- आशीष नहीं जानता कुछ! पर वह इतना जानता है कि इस विदेश में लिज़ा जैसी कोई अन्य लड़की उसे मिल भी नहीं सकती थी!

" कई वर्षों से मम्मा भी मुझे घर बसाने के लिए कह रही है। इस बार उनकी यह इच्चा भी पूरी कर देनी चाहिए! उनसे जाकर लिज़ा के बारे में सब कुछ बता दूँगा, देखूँ वे क्या कहती हैं---आशा है, वे मना नहीं करेंगी! उसके बाद वापस आकर लिज़ा से शादी कर लूँगा।" आशीष ने मन ही मन यह निश्चय कर किया। और लिज़ा से वह बोला--

" I have to go now dear,! ,, Ohh sweetheart, do you have a good pic of yours? I want to show it to my parents,,, Now cheer up, we are going to get married when I return, alright?!" ( मुझे अभी जाना होगा, प्रिये। अच्छा तुम्हारे पास कोई अच्छा सा फोटो है? मैं घर जाकर अपने मम्मी- पापा को दिखाऊँगा। अब खुश हो जाओ। मैं जैसे ही वापस आऊँगा, हम लोग शादी कर लेंगे- ठीक है न?)

" Wow,,,Are you sure, honey ? I shall send you one of my pics in whats app then !!" ( क्या तुम sure हो प्रिय? चलो, मैं whats app में तुम्हें अपना फोटो भेज दूँगी।)

" Sure thing, good bye, see you soon!" ( जरूर, चलो फिर चलता हूँ। जल्दी मिलते हैं।) इतना कहकर आशीष एक बार फिर लिज को गले से लगाया और चेक- इन काउंटर की ओर चल पड़ा।

जब तक फ्लाइट ने टेक-ऑफ न कर लिया। आशीष और एलिज़ाबेथ एक दूजे से ह्वाट्स एप्प पर बतियाते रहे। कभी इमोजिज़ भेजकर तो कभी छोटे- छोटे संदेशों के ज़रिए उनका प्रेमालाप तब तक चलता ही रहा जब तक कि फ्लाइट- एटेन्डेन्ट ने आशीष को आकर अनुरोध न कर लिया कि वह अपना फोन अब स्विच- ऑफ कर दें।

क्रमशः


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