" अरे इंस्पेक्टर चौहान साहब, आप? आपसे दुबारा मुलाकात हो गयी।" अपने मुँह में बँधा हुआ कपड़ा हटा दिए जाने पर टिना ने राहत की एक लंबी श्वास छोड़ी, फिर उसने यह पहला वाक्य बोला!
" टिना जी, आपकी यह हालत कैसी हो गई? क्या आप उन लोगों को पहले से जानती थीं?---- और आपके पतिदेव---? वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं? --- कहाँ चले गए?"
" सारांश तो, सर जब से थाने गए हैं, लौटकर आए ही नहीं।"
टिना का हाथ अभी भी रस्सी से बंधा हुआ था। एक सिपाही उसे खोलने में उसकी मदद कर रहा था। टिना इस समय ज़मीन पर बैठी हुई थी। उसकी पुरानी नीली जीन्स घुटनों के पास से फटी हुई थी। जीन्स के ऊपर उसने रेयन की एक मैचिंग कुर्ती पहन रखी थी जो हाथा पाई के दौरान जगह-जगह से फट चुकी थी। फटे हुए स्थानों पर कुर्ती से निकले हुए कुछ धागे ऊपर से लटक रहे थे। इस समय, उसके कंधों पर एक सफेद रंग का स्टोल डाल दिया गया था। बात को आगे बढ़ाते हुए टिना इंस्पेक्टर की ओर मुँह करके बोली--
" आप लोगों ने बुलाया था सारांश और नवीन जी को लाश शिनाख्तीकरण हेतु!"
" यह आप क्या कह रही हैं, मिसेज़, सारांश?!! हमने तो कोई काॅल नहीं किया था?!!
और वह लाश भी अभी तक नहीं मिल पाई है, हम लोगों को।"
"वैसे हमने मुख्यालय से कुछ जासूसी विभाग के प्रशिक्षित स्निफ्फर डाॅग स्काॅवाड मँगवाएं हैं, और उम्मीद हैं कि आपके कैमरे के फोटोज़ भी कल सुबह तक हमें मिल जाएगी। उनके मिलते ही कल भोर को ही आपके बताए हुए सुरागों के आधार पर एक जाँच अभियान हम चलाने वाले हैं! आशा करता हूँ लाश और अपराधी दोनों को हम जल्दी ही खोज निकालेंगे!!"
पुलिस की लंबी- चौड़ी जाँच अभियान के विषय में सुनते हुए टिना अब तक ऊबने लगी थी। परंतु उसका माथा इस बात पर ठनका था कि--
" क्या---? सारांश थाने नहीं गया था?" इस बार हैरान होने की बारी टिना की थी।
" फिर कहाँ गया वह? उसका तो मैसेज आया था कि--" कुछ आशंका होते ही जल्दी से फोन उठाकर सारांश को वह काॅल मिलाती हैं। पर सारांश का फोन स्विच्ड ऑफ आने लगा-- बार- बार!
टिना को हैरान परेशान देखकर इंस्पेक्टर चौहान ने उससे पूरी बात जाननी चाही। टिना यह जानकर हैरान थी कि न तो नवीन और न ही सारांश कोई भी आज दिन भर में कभी पुलिस थाने में न गया था। सारांश केवल एकबार सुबह उसके साथ थाने गया था, जिसके बारे में वह जानती है।
इंस्पेक्टर चौहान ने टिना से फोन लेकर सारांश का मैसेज पढ़ा। फिर फोन करके अपने आदमियों को सारांश का मोबाइल ट्रैक करने को बोला।
इसके बाद इंस्पेक्टर से टिना ने नवीन के बारे में कुछ जानकारी इकट्ठी करनी चाही। इस मंशा से वह उनसे उसके बारे में पूछ- ताछ करने लगी। इंस्पेक्टर चौहान ने उसे इस समय बस इतना ही कहा कि एक लड़की के खो जाने की रिपोर्ट आज दोपहर को आई तो थी, थाने से पुलिस की टोली तब इस होटल में इंक्वारी हेतु भी आई थी, लेकिन उस लड़की के बारे में ज्यादा सुराग न होने के कारण उसको ढूँढ पाने में पुलिस अब तक कामयाब नहीं हो पाई है।
यह जानने के बाद टिना इंस्पेक्टर को यह बताने को हुई कि वह लाश वाली लड़की और नवीन की बहन दोनों एक ही है। लेकिन कुछ सोचकर वह चुप रही।
पुलिस इंस्पेक्टर अपनी फोर्स लेकर बाहर चला गया, परंतु फिर अकेले वापस लौटकर टिना से बोला--
" मैम, आप अपना ध्यान रखिएगा। यदि आप चाहे तो आपके लिए दो गार्ड का बंदोबस्त कर सकता हूँ।"
टिना को अब डर लगने लग गया था-- वह अंदर ही अंदर इस डर से थोड़ा काँपने भी लगी थी। सबसे ज्यादा चिंता उसे इस बात की हो रही थी कि सारांश का कहीं पता नहीं था और उसका फोन भी नहीं लग रहा था।
एकबार उस पर हमला हो चुका था और सारांश की गैर-मौजूदगी में वह इस होटल में अकेली थी। इसलिए उसने अपने सिक्यूरिटी के खातिर दोनों गार्डों को रखना स्वीकार कर लिया।
उसने इंस्पेक्टर चौहान को धन्यवाद दिया और इंस्पेक्टर भी उसे चिंता न करने का आश्वासन देकर वापस थाने लौट गया था।
परंतु चिंता कैसे न करती वह--- टिना का दिमाग अब खाली घर में तेज- तेज़ भागने लगा था।
पुलिस का वैन चारों अपराधियों को साथ लेकर नीचे से सायरन बजाती हुई थाने की दिशा में चल पड़ी थी।
सबके चले जाने के बाद वेटर ने टिना के पास आकर पूछा कि उनको रेस्तराँ बंद करना है-- इसलिए यदि टिना को रात्रि भोजन हेतु कुछ मँगवाना हो तो अभी बता दें।
आज के पूरे मिशन का नायक यही वेटर था। वह नहीं होता तो टिना का अब तक राम- नाम सत्य हो चुका होता।
टिना ने वेटर की बहुत शुक्रिया अदा करी। उसके बार- बार थैन्क्यू बोलने पर वह वेटर शर्मा कर बोला--
" मैम, आप हमारी गेस्ट हैं। गेस्ट का देखभाल करना तो हमारी ड्यूटि है। सो हमने उससे ज्यादा कुछ नहीं किया। आप इस तरह बार- बार हमें-- थैन्क्यू न बोले।"
" और मैम, आप चिंता न करें-- रात को हम जितने लोग ड्यूटी पर है, सभी मिलकर आपका ख्याल रखेंगे। दुबारा ऐसा कुछ आपके साथ नहीं होने देंगे।"
वेटर की इस सरलता पर टिना बहुत ही खुश हुई।
टिना ने इसके बाद अपने और सारांश के लिए रोटी-सब्ज़ी-दाल का आर्डर दे दिया और वेटर से बोला कि खाना रूम में सर्व कर दें।
वेटर "हाँ" में सिर हिलाकर खामोशी से वहाँ से खिसक गया था।
वेटर के जाने के बाद, टिना को रुलाई आने लगी थी। हनीमून में आकर यह सब उनके साथ क्या हो रहा है? अब सारांश कहाँ चला गया उसे छोड़कर!
दूसरे ही पल उसके विचारों ने पलटा खाया--कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया? अगर सारांश को कुछ हो गया तो-- वह जिन्दगी भर अकेली--- क्या करेगी--- नहीं।
रात के अंधेरे में दरवाज़ा खोलकर टिना कमरे से बाहर आ गई और नवीन चड्ढा के 204 नंबर लिखे रूम के दरवाज़े को जोर- जोर से अपने हाथ से पीटने लगी।
--- क्रमशः---
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