हनुमान मंदिर में जाकर रूही को पता चला कि अब मंदिर का कपाट साढ़े चार बजे के बाद ही खुलेगा। "ओह, यहाँ भी ,,, बंद कपाट!" रूही हताश नयनों से इधर- उधर देखने लगी! "आज तो संकट मोचन ही पार लगाए तो तरे! पता नहीं किसका मुँह देखकर निकली थी, घर से। लगता है यूँ अचानक चले आना सही न हुआ। थोड़ा जाँच- पड़ताल करके आती तो अच्छा होता।" सब ओर से निराश होकर रूही ने पर्स में से अपना फोन निकाला। "अब रानी से पूछने के अलावा और कोई चारा बचता ही नहीं है! वे ही बताइए कि उसके पिताश्री कहाँ पर हैं, इस वक्त! लेकिन,,,,अरे,,, देखो तो ,,यहाँ पर नेटवर्क है ही नहीं! काॅल नहीं जा रहा है!" कुई नाकाम कोशिशों के बाद रूही ने वापस फोन को अपने पर्स के अंदर पटक दिया! लगभग साथ ही साथ रूही को कुछ औरतों के तेज़- तेज़ बोलने की आवाज़ें सुनाई दी। जैसे कोई किसी को डाँट रहा हो! आवाज़ हनुमान मंदिर के पीछे की तरफ से आ रही थी। कौतुहली रूही जल्द ही भाग कर मंदिर के पीछे वाले हिस्से में जाती ताकि देख सके कि माजरा क्या है? वहाँ जाकर जो रूही ने देखा, उससे उसके रोंगटे खड़े हो गए!घुँघट काढ़े पोछा लगाती हुई एक बेचारी गरीब औरत को दो लोगों ने धक्के देकर जमीन पर गिरा दिया और उस पर जम कर थप्पड़, घूसे और लातों की वर्षा वे देवियाँ कर रही थी ! बेचारी औरत सिर झुकाए बैठी थी! गाँव के इस शांत वातावरण में ऐसा दृश्य देखने को मिलेगा, ऐसा रूही ने कभी कल्पना भी न की थी। औरतों द्वारा दूसरी औरत के प्रति यूँ हिंसात्मक व्यवहार,,, वह भी ईश्वर के पवित्र स्थान पर,,,, सब कुछ देख कर रूही थोड़ी देर के लिए स्तब्ध सी खड़ी रही। परंतु अधिक देर के लिए वैसी न रह सकीं! उस पीड़िता को बचाने के लिए कुछ करना जरूरी था। इतनी देर में, जाने कहाँ से कुछ और औरतें निकल कर आई और उस महिला को ज़ोर- ज़ोर से गालियाँ देने लगी। समवेत हिंसा का एक दारुण माहौल पैदा हो गया था! रूही तब बचाव के उद्देश्य से बीच में जाकर खड़ी हो गई,,, " आप सब इन्हें क्यों मार रहे हैं, बेचारी का कसूर क्या है? अरे!! इनको तो खून भी आने लगा है!" " अरे,, यह औरत रोज़ मंदिर से फल चुराकर ले जाती हैं। हम प्रसाद चढ़ाते पर ये महारानी सब चुरा ले जाती हैं!" एक बड़ी- बड़ी बिन्दी लगाए औरत ने कहा। " मैंने सिर्फ एक केले उठाए हैं,,, वह भी आज पहली बार,,, मेरे पति खाना चाह रहे थे!" फर्श पर गिरी हुई महिला ने इस आरोप के विरोध में अपने घूँघट की ओट से कहा! सहारा पाकर शायद उनको भी अपना पक्ष रखने का मौका मिल गया था! " अरी ,,पति को खिलाना है तो खरीदकर खिला,,,।" जुड़ेवाली एक दूसरी महिला ने कहा। " दीदी,,, यह झाड़ू- पोछा करने वाली,,, खरीदकर क्योंकर खिलाएगी? जब यहाँ से मुफ्त मिल जाया करता है तो!" एक तीसरी औरत जो अब तक पान चबा रही थी, अपने लाल दाँतों को निकालकर हँसती हुई ताना देकर बोली। " अरे,,, आप लोग इस तरह एक छोटी सी बात के लिए लड़िए मत! मुझे नहीं लगता है कि अब इनकी कोई उमर है चोरी करने की,,,अच्छा कितने फल चुराए हैं, ज़रा बताइए,,, मैं उसका भरपाई कर देती हूँ! और यह झगड़ा यहीं समाप्त कीजिए!" कहकर रूही अपना पर्स निकालती है। " जाने दे बहनों,,, चल,,, ऐसे लोगों का क्या मुँह लगना!" माथे पर लगी गोल बिंदी को चमकाती हुई पहली वाली महिला ने कहा! जब एक- एक कर सारी झगड़ती महिलाएँ वहाँ से निकल गई तो रूही ने धीरे से पीड़िता के पास जाकर कहा,, " उठिए आपको चोट लगी है,,, चलिए आपके जख्मों को साफ कर दूँ!" पानी लाकर जख्म धोते समय रूही ने साश्चर्य देखा कि चोट खाई महिला कोई और नहीं, उसकी ऋतु आंटी थी, जिनसे मिलने के लिए वह इस गाँव में आई थी!
उसके डैड की मुहब्बत, भाग - 4
रुही ने हनुमान मंदिर जाकर ऐसा क्या देखा?
Originally published in hi
Moumita Bagchi
26 Jun, 2021 | 1 min read
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