अगले दिन सुबह दस बजे के आसपास अलीपुर स्थित नैशनल लाइब्रेरी का जब द्वार उन्मोचन हुआ तो पाठकों में जो सबसे पहले उससे अंदर गया, उसको आप सभी जानते हैं। वह है हमारा पूर्व परिचित, निशीथ का परम् मित्र ग्रैबरियल!
ग्रैबरियल करीब एक घंटे पहले यहाँ पहुँच गया था और सड़क पार फूटपाथ पर खड़ा इस लाइब्रेरी के द्वार खोलने का इंतज़ार कर रहा था।
कल रात को उसने निशीथ के घर जाकर जो देखा था, उससे उसके मन में एक धारणा जन्म ले चुकी थी। परंतु वह धारणा सच थी या नहीं, इस हेतु कुछ पुख्ता सबूतों को इकट्ठा करने की चाहत, उसे आज सुबह- सुबह नैशनल लाइब्रेरी तक खींच ले आया था!
कलकत्ता में बेलवेडियर एस्टेट, अलीपुर में अवस्थित यह नेशनल लाइब्रेरी लगभग 185 वर्ष पुराना है। यह ब्रिटिश काल में निर्मित की गई थी, जिसका पूर्व नाम "इम्पिरियल लाइब्रेरी" था। इसमें देश भर में सबसे ज्यादा ( करीब 2.2 मिलियन) पुस्तकों का संग्रह है।
एक और खास बात जो इस लाइब्रेरी की है-- वह है कि यहाँ पर एक अनुभाग ऐसा भी है जहाँ आपको आज तक जितने भी नामी- गिरामी अखबार प्रकाशित हो चुके हैं उनका एक पूरा संग्रह उपलब्ध है!
चाहे आप कितना भी वर्ष पुराना अखबार देखना चाहें, यहाँ के लाइब्रेरियन को तारीख बताने पर वे आपको तुरंत निकाल कर दे देंगे! इतनी सुंदर व्यवस्था है यहाँ कि आपको बिलकुल भी खोजना न पड़ेगा! बहुधा पत्रकार और शोधार्थी यहाँ पुराने समाचारों और समाचार- पत्रों की तलाश में आते हैं!
यह कहानी उस समय की है, जब लोग समाचार पत्र पढ़ने लाइब्रेरी जाया करते थे। आजकल, गूगल बाबा के आविष्कार के बाद, इसकी जरूरत भी कहाँ पड़ती है?
बहरहाल,आज ग्रैबरियल का गंतव्य भी उन्हीं पुराने समाचार- पत्रों का अनुभाग ही था!
उसने यहाँ आकर कई महीने पुराने समाचार पत्रों को टटोलना शुरु किया फिर कई वर्ष पुराने समाचार पत्रों को भी निकाल कर देखा। इसके बाद उसने अपने मतलब के कुछ अखबारों को छाँट कर अलग कर लिया।
कुछ समाचार पत्रों की क्लिपिंग की नकल उसने लाइब्रेरी के ही दूसरे अनुभाग में जाकर करवा ली।
यह सब करने में ग्रैबरियल को कोई दो से तीन घंटे लग गए।
लाइब्रेरी से निकलकर ग्रैबरियल सीधे निशीथ के मकान मालिक रमेन बाबू के पास पहुँचा। उस समय दोपहर के दो बज रहे थे। रमेन बाबू इस समय ड्यूटि से आकर, लुंगी और बनियान पहने, जमीन पर पलथी मारे बैठे मध्याह्न भोजन कर रहे थे।
ग्रैबरियल सीधे ही उनके घर के अंदर घुस आया और रमेन बाबू की गरदन को पकड़ लिया! पहले खूब गालियाँ देकर तब समाचार कतरनों की नकलें उनको दिखा कर बोला,
" आपने हमें यह सब पहले क्यों न बताया था? बताइए,,, कितने छात्रों की जिन्दगी ऐसे बरबाद कर चुके हैं? इस तरह का धंधा करते हैं, मासूमों की जिन्दगियों के साथ?"
घटना इतनी अप्रत्याशित थी और समाचार कतरनों के सबूतों के आँखों के सामने होने पर रमेन बाबू के मुँह से सहसा झूठ नहीं निकल पाया! अपने परिवार के सामने होने के कारण भी उन्होंने ग्रैबरियल के आगे सच कबूल कर लिया कि उनके उस मकान में एक प्रेतिनी की साया है, जिसके बारे में उन्हें पहले से ही पता है!और वह पहले भी कई लड़कों का सर्वनाश कर चुकी है!
ग्रैबरियल ने उनको बताया कि अब वह प्रेतिनी निशीथ का सर्वनाश करने के लिए उसके पीछे पड़ी हुई है। उसने कल रात को अपनी आँखों से देखा है!
ग्रैबरियल रमेन बाबू ईए वहाँ से निकल कर अपने घर गया। फिर आधी रात को वह निशीथ पर नज़र रखने के उद्देश्य से उसके घर तक चल कर गया। इस बार उसे ज्यादा दूर न जाना पड़ा और उसने निशीथ एवं निष्ठा को पार्क के एक बेंच पर बैठा हुआ पाया।
चारों ओर रात का घना अंधकार छाया हुआ था,, और ऐसी ही निशुति रात ( देर रात) में दोनों प्रेमी अपने आसपास को बिसारकर एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले किसी और ही दुनिया में रमण करने कर रहे थे!
ग्रैबरियल इसके बाद वहाँ रुका नहीं सका। उसे पता चल गया था कि इस समय निशीथ को कुछ भी कहना बेकार होगा। वह यकीन ही नहीं करेगा! फिर सब कुछ जान लाने पर निष्ठा तुरंत ही उसे मार न डाले--- इस आशंका को दिल में थामे--- वह ग्रैबरियल अपने घर वापस आ गया!
अब जो भी करना था, बहुत सोच- समझकर करना था। उसकी दोस्त की जिन्दगी दाँव पर लगी थी! उसे बचाना अब उसका अहम कर्तव्य था!
घर पहुँचकर ग्रैबरियल ने निशीथ के जीजाजी को एक लंबा पत्र लिखा। उस पत्र में ग्रैबरियल ने निशीथ की वर्तमान स्थिति--उसके निष्ठा के चंगुल में फँसने का विस्तृत ब्यौरा लिख भेजा और उन्हें इस समय एक बार कलकत्ता पधारने के लिए अनुरोध भी किया।
साथ ही ग्रैबरियल ने यह भी ताकीद कर दी थी कि अभी निशीथ की माताजी को कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वे व्यर्थ में चिंतित होंगी।
निशीथ अपने बासा में जाने से पहले, गाँव से पत्र व्यवहार के हेतु ग्रैबरियल के घर का पता इस्तेमाल किया करता था। इसी कारण ग्रैबरियल के पास निशीथ के जीजा जी का पता पहले से सुरक्षित था।
पत्र पाठ करते ही निशीथ के जीजा जी चित्तरंजन बाबू अगले ही दिवस की पहली गाड़ी पर चढ़ बैठे थे। उन्होंने घर में सिर्फ इतना कहा था,
" बहुत दिन हुए निशीथ से नहीं मिला हूँ,,, आजकल उसकी बहुत याद आने लगी है,, न जाने वह बच्चा कैसा होगा,, जरा, कुछ दिनों के लिए उसके पास रहकर आता हूँ!"
परंतु पता नहीं कैसे,, निशीथ की जननी को कुछ दुर्घटना का आभास हो चुका था। आखिर गर्भधारिणी माता जो थी वे निशीथ की!! बच्चा तकलीफ में हो,,, और माँ को इसकी खबर न हो,,,, ऐसा कहाँ तक संभव था? खासकर अपने जिस बेटे पर उनकी जान बसा करती थी!
अतः जब वे स्टेशन तक अपने जामाता को छोड़ने आई तो कपड़े की छोर से अपने आँसुओं को बराबर पोछे जा रही थी।
गाड़ी छूटने पहले अचानक उन्होंने अपने दामाद का हाथ पकड़ लिया और अश्रुपूरित नेत्रों से उससे बोली,
" चित्तो बेटा, निशीथ इस वंश का इकलौता चिराग है। जैसे भी हो उसे सही सलामत मेरे पास लौटा लाना!
" आप चिंता न करें माँजी! सब ठीक होगा!"
-क्रमशः--
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