कुछ टुकड़े बचपन के:--दोस्त सुमना तालुकदार की हिन्दी की प्रथम और दूसरी प्रकाशित पुस्तक है।
लेखिका की पहली विशेषता शायद इस बात में निहीत है कि पिछली बार पुस्तक बांगला में, नाॅन फिक्शन, कबीरदास की जीवनी लिखने के पश्चात् उतनी ही कुशलता से दूसरी बार उन्होंने अपने नन्हें- मुन्ने पाठकों के लिए लेखनी उठाई है। बांगला और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में समान दक्षता से इनकी लेखनी चली है जो अपने आपमें एक अनूठा दृष्टांत है।
दूसरी विशेषता यह है कि संत कबीरदास जैसे भारी-भरकम विषय पर लिखने के बाद बालकों के लिए कहानी की पुस्तक लिखने में, सच में ,अत्यंत साहस की आवश्यक्ता होती है। केवल वाक्-संयम और बालोचित विशेष शब्दावलियों का चयन करना ही नहीं है बल्कि एक बाल-कथाकार को बाल-मनोविज्ञान का भी पारखी होना पड़ता है। कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि सुमना इन सब कसौटियों पर भलीभाँति खरी उतरी है।
बहुत ही स्वच्छंदता से उन्होंने इन सरल कहानियों को गढ़ा है। अत्यंत स्वाभाविक घटनावलियों को कहानी का रूप दे दिया गया है, कहीं- कहीं तो ऐसा भी लगा कि माता और पुत्र के बीच के दैनंदिन कथनोपकथन के हम निरव साक्षी हैं।
यह पुस्तक कुल बीस कहानियों का एक संग्रह है। जिसे प्रकाशित किया गया है आनंद प्रकाशन, कलकत्ता के द्वारा। और इसका मूल्य है दो सौ रुपये मात्र! (एमेजाॅन पर भी उपलब्ध है। )
यदि आप भी , मेरी तरह अपने बचपन का एक और दौरा करना चाहेंगे तो इस पुस्तक को हाथ में उठाने से आपको कोई नहीं रोक पाएगा!
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