" हैलो मायरा जी, कैसी तबीयत है अब,आपकी?" मनोहरलाल ने उसे देखते ही पूछा। "
जी अंकल, मैं ठीक हूँ। आप सुनाइए?!"
" बेटे, आपको कल सारे कागजातों के साथ एक बार दफ्तर चले आना है। हम बहुत कोशिश कर रहे हैं कि विमला जी की जाॅब आपको मिल जाए!"
" ठीक है, अंकल!" " तो बेटा,,, यह आपका नियुक्ति- पत्र है और डक्यूमेन्ट्स की यह लिस्ट आप रख लीजिए। एक बार चेक करके सारे कागज़ात रख लीजिएगा। कल ग्यारह बजे मिलते हैं।"
"ओक्के,,थैन्क्यू!! नमस्ते अंकल!"
रात को मायरा बहुत खुश थी। उसे माँ के दफ्तर में काम मिल रहा था। अपने सभी सहपाठियों में से सबसे पहले उसी की नौकरी लग रही है! अभी उनका ग्रेजुएशन भी पूरा न हुआ था। उनका कोर्स पूरा होने में एक साल और बाकी था।
काॅलेज में आवेदन कर देगी। नाइट में पढ़कर एग्ज़ाम दे देगी और साथ ही दिन के टाइम जाॅब भी कर लेगी! मायरा के लिए यह बहुत खुशी की बात है।
इससे एक और अच्छी बात होगी कि वह बुआ जी के साथ गाँव जाने से बच जाएगी। ---- घर पर ही एक कूक और मेड रख लेगी। फिर तो उसका सारा काम मजे से चल जाएगा!
इन्हीं सुख स्वप्नों में खोई- खोई सी मायरा चैन से सो गई थी। माँ के गुज़र जाने के बाद शायद पहली बार! मायरा की मम्मी विमला सरकार के एक विभाग में उच्चपद पर आसीन थी।
उनकी अकस्मात् मृत्यु की वजह से सरकार की ओर से उनके निकटतम संबंधी, यानी की उनकी बेटी मायरा को, अनुकम्पा के आधार पर उसी कार्यालय में नियुक्त किया गया था। इस कार्य में दफ्तर के लोगों ने भी उसकी बहुत मदद की थी। खास कर इस मनोहरलाल जी ने। वही जो आज मायरा का नियुक्ति पत्र देने उसके घर आए थे।
अगले दिन सुबह सारे ज़रूरी काग़जातों को एक फाइल में समेट कर नियत समय से कुछ पहले ही मायरा मनोहर अंकल के केबिन के सामने आकर दरवाज़ें पर आकर दस्तक देती है। उसको अंदर आते देख कर अंकल के प्रसन्न चेहरे पर अचानक गंभीरता छा जाती है। वे उससे बैठने को कहना भी भूल जाते हैं, और उससे कहते हैं--
" मायरा, आपका एक बड़ा भाई भी है, यह तो आपने हमें कभी नहीं बताया?!! फिर मैं आपको यह कुर्सी दिलाने के लिए इतनी भाग- दौड़ करता ही नहीं!"
" यह आप, कैसी बातें कर रहे हैं, अंकल? मैं तो अपनी माँ की अकेली संतान हूँ! आपको शायद कोई भयंकर गलतफहमी हुई है।"
" नहीं, बेटा अब आप घर चले जाइए। हम आपके लिए जो कुछ कर सकते थे, कर चुके हैं!"
इतना कह कर मनोहरलाल एक फाइल खिंच कर उस पर कुछ लिखने लगे!
" पर अंकल कल आपने ही मुझे यहाँ आने को कहा था। अब आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? कोई भी आकर अनाप- शनाप कुछ कहेगा और आप लोगो मेरी माँ की जगह उसको दे देंगे?"
" क्या बात कर रही हैं आप, मायरा? दफ्तर का काम है कोई मज़ाक थोड़े ही है? हमारे एच° आर° विभाग द्वारा अनिकेत जी के सभी डक्यूमेन्ट्स की कई बार जाँच की गई। और जब उनके सारे काग़ज़ात सही निकले, तभी उनको इस जाॅब के लिए हाँ कहा गया! हम सब ने भी कई - कई बार चेक किया है। "
" अंकल, पर--- ।"
" कोई पर नहीं,,, इस बात पर और कोई बहस नहीं। आप घर जाइए।"
"हाँ एक और बात बताना आपको जरूरी समझता हूँ -- इस पद के लिए न्यूनतम योग्यता ग्रेजुएट है। और आपका ग्रेजुएशन अभी कम्प्लीट नहीं है,, सो आपको वैसे भी यह जगह देना मुश्किल होता!"
किसी अज्ञात कारण से मनोहरलाल जी की रातोंरात कायापलट हो गई थी। कल जो उसके घर आकर हँस- हँसकर बातें कर रहे थे आज उसी मनोहरलाल को पहचानने में मायरा को दिक्कत हो रही थी!
" यह फिर आप पहले ही कह देते, अंकल!! मुझे यहाँ आने को कह कर ऐसी बेइज्जती करने की क्या जरूरत थी, आपको? ---मैं ,,,आपका कम्प्लेन करूँगी!"
इतना कहकर तैश में मायरा मनोहरलाल के केबिन से निकल कर जेनरल मैनेजर के केबिन की ओर चल दी। पर वहाँ भी उसे यही सुनने को मिला।
" हम क्या कर सकते हैं, मैडम? हमें भी तो कायदे से चलना होता है।"
घर आकर मायरा किसी से कुछ न बोली। कल कितनी खुश हो रही थी और आज ही उसकी सारी खुशियों में मानों ग्रहण लग चुका था। वह वैसी ही आकर विस्तर पर लेट गई और खाने को भी न उठी।
अपमान की तीव्रता से उसकी आँखें जलने लगी थी। उसने कमरे की सारी बत्तियाँ गुल कर दी और सर पर हाथ रखकर पलंग पर देर तक लेटी रही।
कुछ देर बाद एक स्नेह- स्पर्श पाकर उसने जब अपनी आँखें खोली तो देखा कि-- बुआ जी उसके सिरहाने बैठकर उसके सिर पर हाथ फेर रही है। कुछ समय पहले माँ भी इसी तरह आकर बैठ जाती थी। न जाने कैसे समझ जाती थी वे कि मायरा का मन बिलकुल भी अच्छा नहीं है!
" बिट्टो, मम्मी की याद आ रही है, क्या?" बुआ जी का इतना पूछना था कि बिट्टो बुआजी की गोदी में सर छुपाकर सिसकने लगी।
क्रमशः-----
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👏👏👏
Interesting
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