कई छः रोज़ के बाद आशीष ने अपनी आँखें खोली तो जिन दो ममता भरी नेत्रों को अपनी ओर एकटक देखते हुए पाया, वे दोनों उसकी गर्भधारिणी माता की थी जिनके स्नेहांचल को छोड़ कर कई साल पहले वह विदेश चला गया था!
लेकिन वह यहाँ तक कैसे पहुँचा?!! यह सोचने के लिए आशीष ने अपनी आँखें बंद की तो कानों को भेदती हुई एक ज़ोर की आवाज़, आग की धधकती लपटें, कई लोगों का एक साथ चिल्लाना--- बस, और कुछ उसे याद न आया।
लगा कि किसी ने सर पर ज़ोर से हथौड़ा से वार कर दिया है। उसकी कनपटी के पास वाली रगें तेज- तेज दुखने लगी थी! वह कुछ देर के लिए आँखें मूँदकर लेटा रहा!
थोड़ी देर बाद अपनी आँखों को खोल आशीष फिर कुछ समय तक अपनी माँ को देखता रहा। उसके मन में इस समय भयानक उथल- पुथल मची थी। वह कुछ बोल नहीं पा रहा था!
उसकी मम्मी दीपा उसे जगा देख कर उसके सिरहाने पर बैठ गई और धीरे-धीरे उसके माथे पर हाथ फेरने लगी, जिस तरह कि बचपन में, आशीष के बीमार पड़ने पर वे अकसर किया करती थी।
आशीष कुछ देर तक वैसे ही पड़ा रहा और उसकी मम्मी भी प्यार से अपने बेटे का माथा सहलाने लगी। इस तरह आशीष की दुखती रगों को कुछ ठंडक सी मालूम हुई!
अचानक आशीष के दिल में भावनाओं का एक सैलाव सा उठा और उसने झट से अपना सर उठाया और मम्मी से लिपट गया।
माँ - बेटे इसके बाद दोनों साथ-साथ रो पड़े थे।
आशीष की मम्मी दीपा भी बरसों बाद अपनी एकलौती औलाद से गले लग कर बच्चों की तरह रो पड़ी!
कुछ देर बाद, जब रुदन का वेग रुका तब आशीष ने अपनी माँ से पूछा,
" पापा की तबीयत अब कैसी है, मम्मी? क्या वे अभी भी ICCU में हैं?"
" अरे नहीं बेटा! ईश्वर की दया से वे अब ठीक हैं। तीन दिन पहले ही वे अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके हैं! अभी उस कमरे में सो रहे हैं।"
"डाॅक्टर ने दवाई दे दी है और साथ में ढेर सारी हिदायतें भी। इस वक्त उन्हें सिर्फ आराम की जरूरत है। "
एक हफ्ते के बाद फिर चेकअप कराने के लिए उन्हें अस्पताल ले जाना है!" दीपा बोलीं।
" और उनका जो ऑपरेशन होना था---?"
" हाँ, मेरे बच्चे! वह भी हो गया ! डाॅक्टरों ने उनके हृदय में दो स्टेन्ट लगा दिए हैं।"
" ओह, मम्मा मुझे आने में बहुत देर हो गई! आप को सब कुछ अकेले ही संभालना पड़ा!"
आशीष दुःखी स्वर में बोला। पुत्र की जिम्मादारी न निभा पाने का दुःख उसे साल रहा था।
" नहीं मेरे बच्चे, तुम सकुशल हो, यही ऊपरवाले की बहुत मेहेर है! ओह!! इतना बड़ा अक्सीडेन्ट--- ! !सोच कर भी दिल मेरा दहल उठता है!" दीपा ने एक लंबी साँस खींच कर कहा।
आशीष के मन में जो प्रश्न बार- बार चक्कर खा रहा था-- इस समय वही वह मम्मी से पूछ बैठा--
" अच्छा मम्मी, मैं यहाँ तक कैसे पहुँचा?"
" बच्चे, ईश्वर की परम कृपा है हम पर-- वरना--!" दीपा आगे कुछ न बोल पाई। उनकी आँखें फिर से डबडबा उठीं।
आशीष भी और कुछ न पूछा।
सोचने लगा-- "मम्मी पर इन दिनों बहुत कुछ गुज़रा होगा। एक ओर पापा की तबीयत ऊपर से मेरा टेन्शन---ऊंह,,, इंतज़ार कर लेता हूँ, कुछ देर! माॅम जब तैयार होंगी,,, खुद ही बता देंगी सब कुछ!"
पर दीपा ने अपने आँसुओं को तुरंत ही पोंछ लिया। फिर अपना कलेजा मज़बूत करके उसने आशीष की ओर देखा। उसके चेहरे पर आद्यंत जिज्ञासा व्याप्त थी। उसकी आँखों मानों, सारी बातों को तुरंत जान लेने को आतुर थी!
भल्ला परिवार में दीपा ही एकमात्र ऐसी थी जो हमेशा मुसीबत के आगे अडिग खड़ी रह सकती थी!
चाहे कैसा भी मुश्किल समय क्यों न हो, वे परिस्थिति से कभी हार न मानती थी। और तब तक संघर्ष करती थीं जब तक कि परिस्थितों को अपने अनुकूल ढाल न लेती थी।
उनकी यह जुझारू प्रवृत्ति थोड़ी- बहुत आशीष को भी विरासत में मिली थी। वह भी मेहनती होने के साथ- साथ काफी संघर्षशील भी था। शायद इसी वजह से आज कोलोनासी में इतना बड़ा व्यापार चला पा रहा है!
परंतु आज, अपनी इकलौती संतान के प्राण-संशय होने के क्षणों को याद कर शायद दीपा थोड़ी देर के लिए अपनी भावनाओं पर से नियंत्रण खो चुकी थी।
लेकिन उसी अवस्था में भी उन्होंने स्वयं को जल्दी ही संभाल लिया। फिर पहले की ही तरह आशीष के बालों पर अपनी ऊँगलियाँ चलाते हुए बोली,
" तुम्हारे लैपटाॅप बैग के अलावा सब कुछ टैक्सी के साथ जल कर राख हो गया था। यहाँ तक कि तुम्हारा मोबाइल फोन भी कहीं नहीं मिला!"
अचानक आशीष को ध्यान आया कि जब वह टैक्सी से उतर कर झाड़ियों के पीछे हल्का होने के लिए गया था तब उसने अपने सेल फोन को टैक्सी की सीट पर ही छोड़ दिया था। परंतु एयरपोर्ट से निकलने के समय से ही वह अपना लैपटाॅप बैग को कांधे पर टांग रखा था, जिसे उतारने के बारे में उसे ख्याल ही न आया था! अतः केवल वही एक चीज़ बच गई थी!
आशीष ने जब अपना सिर दायीं ओर घुमाया तो उसने अपना वही लैपटाॅप बैग को साइड टेबुल पर पड़ा पाया!
"और तुम्हारे पासपोर्ट में केवल यूनान का पता लिखा हुआ है! इसलिए पुलिस को तुम्हारे इंडिया का पता कहीं से भी नहीं मिल पाया था! उन्होंने तुम्हारे ऑफिस में भी फोन किया था! पर कोई कुछ बता न पाया था !" दीपा कह रही थी!
" पर लिज़ी,,, उसको तो मालूम है!" आशीष बीच में ही बोल पड़ा था!
" लिज़ी,कौन है बेटा? तुम्हारी कोई सहकर्मी?"
आशीष मम्मा को देखकर एकदम चुप हो गया। उसने अब तक एलिज़ाबेथ के बारे में घर पर किसी से बात न की थी। सोचा था," मिल कर बताऊँगा।" क्योंकि उसे पता था, कि बिना शादी किए साथ-साथ रहने वाली बात कोई भी भारतीय माता- पिता सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पाएँगे!
हालाँकि, आज कल इंडिया के बड़े शहरों में भी लिव- इन - रिलेशनशिप की तादाद बढ़ती ही जा रही है। परंतु हमारी पुरानी पीढ़ी की समस्त आस्था अब भी पारंपरिक ढंग से शादी करके घर बसाने पर ही टिकी हुई है!
यही सब सोच विचार कर आशीष ने इस समय केवल अपना सिर हिलाने में ही भलाई समझी।
दीपा आगे कहती गई।
" वह अक्सीडेन्ट चूँकि दिल्ली रोहतक हाईवे पर रोहतक के नज़दीक ही हुआ था, इसलिए तुम्हें पास के फार्चुन अस्पताल में दाखिल करवाया गया था। तुम्हारे बाएं हाथ में फ्रैक्चर हुआ है। साथ ही सर पर भी थोड़ी सी चोट लगी थी। यह सब गिरने के कारण हुआ था। साथ ही ट्राॅमा ----पिछले चार- पाँच दिनों तक तुम लगातार डाॅक्टर की निगरानी में रहे हो!"
दीपा ने आगे बताया
"यह एक दैवी संयोग है था कि तुम्हारे पापा का ट्रिटमेन्ट भी उसी अस्पताल में चल रहा था!! वर्ना हम तुमसे क्या कभी मिल पाते? तुम्हारी कोई चिकित्सा भी ढंग से न हो पाती! "
" हमें तो अक्सीडेन्ट के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था! वह भी ईश्वर का लाख- लाख शुक्र है कि जिस समय तुम्हें वहाँ लाया गया था, उसी समय चीकू भी तुम्हारे पापा के लिए कुछ इंजेक्शन लेने केमिस्ट के पास जा रहा था। वही था जो तुमको उसी हालत में भी पहचान लिया था!" दीपा बोली।
क्रमशः
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत अच्छी जा रही है कहानी
🙏
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