पिछले दिनों अखबार में यह शीर्षक पढ़कर में एकदम हैरान रह गई । क्या?? अब रोना भी आवश्यक हो गया? वह भी हर हफ्ते ?? यह कोई मजाक तो नहीं है? मतलब, मुझे रोने में कोई परेशानी नहीं है। वह तो हर मौके बेमौके मेरी आंखों से आंसू टपक पड़ते हैं। कभी-कभी इस मामले में तो मैं अपने बच्चों को भी पीछे छोड़ देती हूं।
क्या करूं, शुरू से थोड़ा attention seeker रही हूं! इतना ही नहीं ,बच्चों के पीटीएम में जाकर टीचर के मुंह से उनकी प्रशंसा सुनकर भी मेरी आंखों में हरदम आंसू आ जाते हैं। लेकिन ,कोई रोने को कहे, या जहाॅ सब लोग सामुहिक रूप से आंसू बहा रहे हो, ऐसे मौकों पर मजाल यह कि आंखो से एक बूंद भी आंसू निकले!!
सबसे ज्यादा परेशानी तो मुझे उस दिन हुई थी जिस समय मेरी विदाई हो रही थी और आस-पास सब रो रहे थे। जिन लोगों को मैंने पहले कभी नहीं देखा था ,वे भी दहाड़ मारकर रोए जा रहे थे! और मैं , मुश्किल से दो-चार ही आंसू निकाल पाई थी!!
उल्टे , मुझे उन लोगों को देखकर हंसी आ रही थी --- ससुराल तो मैं जा रही थी और दुःख इन्हें हो रहा था!! भई, अब मैं अपनी मर्जी से थोड़े ही जा रही थी? वह तो इन्हीं रिश्तेदारों की मेहरबानी थी! जब तक मेरी शादी तय न हो गई, इन लोगो ने मेरे माता-पिता का यह कह कर जीना हराम कर दिया था कि " बेटी का ब्याह कब करोगे? " "अरे इतनी बड़ी हो गई अभी तक इसकी शादी नहीं हुई" , " अरे अब क्या बेटी की कमाई खाओगे? आदि तमाम तमाम बातें। और अब देखिए वही लोग मगरमच्छ के आंसू बहा रहे थे!
कुछ लोग तो मेरे माता-पिता को यह कहकर सांत्वना दे रहे थे कि "हमें देखों हमने भी बेटियों को विदा किया है, धीरज से काम लो!" अब मैं कोई बोझ तो न थी इन पर जो इतनी जल्दी सबने मुझे पराया कर दिया। अच्छी-खासी पेंशनवाली सरकारी नौकरी थी मेरी !
मुझे इस बात का दुःख हो रहा था कि जिस घर में मैने जन्म लिया, पली-बढ़ी, जिसे मैंने इतने वर्षों तक अपना माना था अचानक वहीं पल भर की मेहमान रह गई थी! और अब कुछ अनजान लोगों को ज़िन्दगी भर के लिए अपनाना पड़ रहा है। हम बेटियों की जिन्दगियाॅ भी कितनी अजीब होती हैं , है न?
खैर, जो भी हो, बात हो रही थी साप्ताहिक रोने-धोने की। और अब नियमपूर्वक सबको रोना पड़ेगा, तनावमुक्त रहने के लिए, चाहे उस समय रोना आए अथवा नहीं। अरे, यह मैं नहीं कह रही हूं। जापान के एक शिक्षाविद है, जिनका नाम है हादिफूमी योशिदा, वे ऐसा कह रहे है। वे अपने-आपको को 'रूलाई गुरू ' कहते हैं और लोगों को रुलाने के लिए नियमित रूप से कार्यशालाओं का भी आयोजन करते हैं।
उन्होने जापानभर में लोगों को रूलाई के फायदे समझाने हेतु कई व्याख्यान भी दिए हैं। 43 वर्षीय योशिदा का कहना है, " तनाव को बाहर निकालने में हंसने या सोने से ज्यादा कारगर होती है रोने की प्रक्रिया।" योशिदा आगे यह भी समझाते हैं " दुःखद फिल्में देखने अथवा कोई दर्द भरे गीत सुनने या कोई ऐसी कहानी जिसे पढ़ते समय हमारी आंखो में आंसू आ जाते हो, ऐसी वस्तुएं हमारी मानसिक स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होती हैं । इससे हमारे पैरासिम्पेथिक नर्व में हरकत पैदा होती है जो हमारे हृदय गति ( हार्ट- बीट) को धीमा कर देती है, जिससे हमारे मन को एक सुकून मिलता है। इसलिए अगर आप हफ्ते में कम से कम एक बार भी रोते हैं तो आप तनावरहित जीवन जी सकते हैं।"
योशिदा ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति नहीं है जो रूलाई के फायदेमंद मानते हैं। सन् 1981 में मिनेसोटा विश्वविद्यालय में डाॅ विलियम फ्रेश द्वारा आयोजित एक स्टडी, 'रूलाई विशेषज्ञ' भी यह साबित करती है कि रोने से 'एन्डोफिन' हार्मोन निकलता है जिससे आनन्द और मानसिक खुशी मिलती है। सन् 2000 ई• में लगभग 3000 लोगों पर एक स्टडी का आयोजन किया गया था जिसमें भी यह पाया गया कि मुश्किल दौर में रोने से बहुत आराम मिलता है।
कुछ लेखकों और विशेषज्ञों ने तो यहाॅ तक सुझाव दे डाला कि रोने की प्रक्रिया को थेरेपी के रूप में अपनायी जाई जिसे अनेक प्नकार के मनोरोगों की चिकित्सा संभव हो सके। जैसे ही म्यूजिक थेरेपी, लाफ्टर थेरेपी है वैसे ही क्राइंग थेरेपी भी जल्द ही मार्केट में आने वाली है।
इस विषय में जिस फिल्म का नाम अब हमारे जेहन में सबसे पहले उभर कर आता है वह है कल्पना लाजमी जी की फिल्म 'रुदाली'। इस फिल्म में उस कबीलाई जिन्दगी को दर्शाया गया था जिनकी रोजी-रोटी ही चलती थी दूसरों के घर-घर जाकर रोने से।
खैर ,अब आप लोग क्या करेंगे ---यह आपको तय करना है। मैं तो चली ग्लिसरीन लगाने😂😂 आखिर तनावमुक्त जीने का सवाल है!! ********************************************** मौमिता **********
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut acha lekh..
बेहद आभार,सोनिया जी🙏
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