किसान बिल, 2020 क्या है? क्या इससे हमारे देश के कृषक सचमुच असहाय हो जाएंगे?
बचपन में विद्यालय में हम एक गीत गाया करते थे जिसकी कुछ पंक्तियाँ मुझे अभी तक याद हैं--
" शस्य श्यामलां सुजलां सुफलां,
है धरती के हम वासी।
फिर क्यों अपने महादेश की
जनता रहे उपवासी।"
जी हाँ,यह शायद एकमात्र हमारे देश की ही विडम्बना है कि जो हाथ पूरे देश के लिए अन्न उपजाता हैं, उन्हे ही भूखे पेट सोना पड़ता है। मैं यहाँ बात कर रही हूँ , हमारे अन्नदाता, किसानों की। किसान हमेशा से ही बदहाल रहे हैं, और दूसरों के द्वारा उनका शोषण होना कोई नई बात नहीं है। इसका सविस्तार वर्णन हमें प्रेमचंद की रचनाओं में पढ़ने को मिलता हैं।
प्रेमचंद - काल को तो बीते हुए अब अरसा हो गया है, परंतु क्या आज भी किसानों की हालत में कोई सुधार आया है? मैं कृषक परिवार से नहीं हूँ । फिर भी मेरी जानकारी के मुताबिक हमारे देश के अन्नदाता आज भी गरीबी और कर्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं। क्योंकि किसानों की मेहनत की सफलता का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी मौसम पर निर्भर करता है। इसके साथ ही अधिक उत्पादन हेतु अत्याधुनिक यंत्रों, बीज, खाद इत्यादि की भी उनको आवश्यक्ता पड़ती हैं।
अभी तक हम करोना से जीत नहीं पाए थे कि सितम्बर माह में संसद के शीतकालीन अधिवेशन के दौरान किसान बिल पास हो गया। इसके पास होते ही इसके विरोध में देशभर में आंदोलन की चिनगारी भड़क उठी। खासकर पंजाब और हरियाणा कं किसानों इस बिल के खिलाफ मोर्चा लेकर सड़क पर उतर आए।
जिस समय दो गज की दूरी बनाए रखने की आवश्यक्ता थी वहीं हज़ारो की संख्या में किसान संगठनो के कार्यकर्ताएँ दिल्ली के जगह- जगह धर्ना और सड़क जाम करते हुए नज़र आए!
यहाँ तक कि विरोधी पार्टियों ने भी मिलकर 8 दिसम्बर को भारत बंद का ऐलान कर दिया। यही नहीं, इन तीनों कानूनों के रद्द न किए जाने की दशा में 12 दिसम्बर को दिल्ली-जयपुर हाइवे को भी ब्लाॅक किए जाने की खबरें मिल रही हैं।
पुलिस की ओर से भी विरोधियों को रोकने की कोशिश की गई हैं। इस ठिठुरती सरदी में विरोध- प्रदर्शन कारियों पर उनकी ओर से जम़कर पानी के जेट डाले गए थे।
इस प्रकार, सरकार द्वारा हाल ही में पारित तीन कृषि विधेयकों को लेकर काफी विरोध किया गया है। और आश्चर्य की बात तो यह है कि इसमें सिर्फ विपक्षी राजनीतिक दल की नेताएँ ही शामिल नहीं है, वरन् सत्तापक्ष के साथ गठबंधन वाली पार्टियाँ भी इससे बहुत खुश नहीं नज़र आ रही हैं। यहाँ तक कि मौजूदा गठबंधन की वरिष्ठ मंत्री हरसिमरत कौर बादल जी ने इनके विरोध में अपना इस्तिफा तक दे दिया है।
तो चलिए, अब जानते हैं कि वे तीन विधेयक क्या हैं? और सरकार एवं विरोध पक्ष का इन तीनों विधेयकों के बारे में क्या राय है?
तीनों विधेयक इस प्रकार है--
1) कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य विधेयक, 2020:-
2)किसान अनुबंधक विधेयक, 2020
3) असेंशियल कमोडिटी बिल, 2020।
आइए,अब इन तीनों विधेयकों के बारे में थोड़ा और विस्तारपूर्वक जानते हैं।
1) कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य विधेयक, 2020 के प्रस्तावित कानून का उद्देश्य है किसानों को अपने उत्पाद नोटिफायड एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग काॅमेटी ( APMC ) यानी तय मंडियों से बाहर बेचने की छूट देना है। इस कानून के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई सेस या फीस नहीं ली जाएगी। इस कानून का लक्ष्य होगा किसानों को उनकी उपज के लिए प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना है।
इससे होने वाले लाभ:--
यह विधेयक किसानों के लिए नये विकल्प उपलब्ध करवाएगा। उनकी उपज बेचने पर आने वाली लागत को कम करेगा, उन्हें बेहतर मूल्य दिलाने में मदद करेगा। इससे जहाँ उत्पादन हुआ है उन क्षेत्रों के किसान कमी वाले दूसरे प्रदेशों में अपनी कृषि उपज बेचकर बेहतर दाम प्राप्त कर सकेंगे।
इससे हानि:--
किसान अपनी उपज यदि पंजीकृत मंडियों से बाहर बेचते हैं तो, राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा, क्योंकि वे मंडी शुल्क प्राप्त नहीं कर पाएंगे। इससे कमिशन एजेंट बेहाल हो जाएंगे। लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे अंततः न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP ) आधारित खरीद प्रणाली का अंत हो सकता है और निजी कंपनियों द्वारा शोषण बढ़ सकता है।
2) किसान अनुबंध विधेयक, 2020
इस प्रस्तावित कानून के तहत किसानों को उनके होने वाले कृषि उत्पादों को पहले से तय दाम पर बेचने के लिए कृषि व्यवसायी फर्मों, प्रोसेसर, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध करने का अधिकार मिलेगा।
इससे फायदा:-
इससे किसान को अपनी फसल लेकर जो जोखिम रहता है वह उसके खरीदार की तरफ से जाएगा जिसके साथ उसने अनुबंध किया है। उन्हें आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट तक पहुँच देने के अलावा, यह विपणन लागत को कम करके किसान की आय को बढ़ावा देता है।
इसका विरोध:-
किसान संगठनों का कहना है कि इस कानून को भारतीय खाद्य और कृषि उद्योग पर हावी होने की इच्छा रखने वाले बड़े उद्योगपतियों के अनुरूप बनाया गया है। यह किसानों की मोल- तोल करने की शक्ति को कमज़ोर करेगा। इसके अलावा, बड़ी निजी कंपनियों, निर्यातकों, थोक विक्रेताओं और प्रोसेसरों को इससे कृषि क्षेत्र में बढ़त मिल सकती है।
3) असेंशियल कमोडिटी बिल 2020,
यह प्रस्तावित कानून आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, प्याज़ और आलू जैसी कृषि उपज को युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि व प्राकृतिक आपदा जैसी ,
"असाधारण परिस्थितियों" को छोड़कर सामान्य परिस्थियों में हटाने का प्रस्ताव करता है तथा इस तरह की वस्तुओं पर लागू भंडार की सीमा भी समाप्त हो जाएगी।
सरकार का पक्ष:-
इसका उद्येश्य कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित करने के साथ- साथ मूल्य- स्थिरता लाना है।
विपक्ष की दलील:-
इससे बड़ी कंपनियों को छूट मिल जाएगी जिससे वे किसानों पर अपनी मर्ज़ी थोप सकेंगे।
इस विषय में कृषि मंत्री का कहना है:--
कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर जी का कहना है कि कृषि बिल से हमें निम्न फायदे होंगे---
• किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP) की व्यवस्था जारी रहेगी।
• प्रस्तावित कानून राज्यों के कृषि उपज विपणन समिति कानूनों का अतिक्रमण नहीं करता है।
• ये विधेयक यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि किसानों को मंडियों के नियमों के अधीन हुए बिना उनकी उपज के लिए बेहतर मूल्य मिले।
उन्होंने यह भी कहा कि --
• इन विधेयकों से यह सुनिश्चित होगा कि किसानों को उनकी उपज बेहतर दाम मिले, इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और निजी निवेश के साथ ही कृषि क्षेत्र में अवसंरचना का विखास होगा एवं रोज़गार के अवसर पैदा होंगे।
हर वस्तु, हर विचार के हालाँकि दो नज़रिए हो सकते हैं। इसलिए देश के कुछ भागों में लोगों ने इनका समर्थन भी किया है। पंजाब और हरियाणा के कृषक संगठनों के अलावा और कहीं से विरोध की बहुत अधिक खबरें नहीं मिली है।
अब देखना है कि इन तीनों प्रस्तावित कृषि कानूनों से किसानों का कितना भला होगा, यह तो समय ही बता पाएगा। मेरे विचार से एक तरह से देखा जाए तो यह कृषि उद्योग का निजीकरण है।
जिस तरह अन्य बड़े- बड़े सरकारी उपक्रमों का समय के साथ- साथ निजीकरण कर दिया गया था, और उनमें से कुछ पहले से बेहतर उत्पाद भी कर रही हैं। अब इन तीनों विधेयकों का क्या परिणाम निकलेगा यह तो हमें वक्त ही बता पाएगा कि इन बिलों के तहत कृषकों को राहत मिलेगी, उनकी हालत सुधरेगी अथवा और बिगड़ जाएगी!
तथ्य स्रोत: साभार गूगल, दैनिक जागरण
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