" इसके बाद क्या हुआ था, अंकल,,, बताइए न?"
कहानी सुनाते हुए रवीन्द्रण अंकल जब ज़रा दम लेने के लिए रुके थे,, तब उन्हें थोड़ी देर के लिए विश्राम देने के लिए मायरा उठकर बाहर आ गई थी। और किचन में जाकर उनके लिए चाय और नाश्ता का बंदोबस्त कर आई थी।
बुआ जी का कौतुहल इस समय अपने चरम पर था,, बंद कमरे के अंदर क्या हो रहा है,, यह जानने के लिए वे बार- बार उसी कमरे के आस- पास डोल रही थी। यह देखकर मायरा को पहले तो बहुत हँसी आई, और साथ ही साथ उसे थोड़ी शरारत भी सूझी।
उसने बुआ जी को बुलाकर कहा,, " बुआ जी, सुनिए! रवीन्द्रण अंकल मुझसे कुछ जरूरी बातें करना चाहते हैं, इसढह,लिए प्लिज देखना कि उस कमरे में इस समय कोई न आए! "
"सविता को भी आज कमरे में झाड़ू लगाने से मना कर दीजिएगा।"
"और हाँ, उनकी चाय- नाश्ता का इंतज़ाम हो चुका है, इसलिए ,,, अंदर आने की किसी को जरूरत नहीं है। हमें no disturbance, चाहिए,, समझीं न आप?"
" हाँ समझी गयी,, तुम्हारे ज़माने की नहीं हूँ तो क्या इतना भी नहीं समझती? फिर, मुझे इन सब से क्या लेना- देना? तुम जानो और तुम्हारा वह अंकल " कहती हुई अपने आप में बड़- बड़ाती हुई बुआ जी फिलहाल के लिए वहाँ से खिसक ली। ओह,,,उनका खिसियाया हुआ वह चेहरा देखने लायक था!
मायरा फिर से अपने कमरे के अंदर चली गई और दरवाज़े को कस कर अंदर से लाॅक कर लिया। वह, अब बुआ जी की उत्सुक स्वभाव से भली- भाँति वाकीफ़ हो चुकी थी। आगे की कहानी को सुनने के लिए उसने अपने अंकल से पुनः पूछा--
" फिर क्या हुआ था, बताइए न, अंकल?" एक घूँट चाय का पीकर उसके वकील अंकल ने कहा, " तो मैं क्या कह रह था बेटे,,, हाँ, तुम्हारे नानाजी तब इस शादी के खिलाफ़ बिलकुल अड़ गए थे। उनका साथ इस समय उनके दोस्त ने भी दिया जो कि अभिनव के बदनसीब पिता थे। पुत्र शोक ने उनको इतना कठोर बना दिया था कि बहू की खुशी उन्हें फूटी आँखों से नहीं सुहाई। बहू का फिर से घर बस जाए-- इससे तो उनके परिवार की नाक कटती थी!
"विधवा- विवाह? राम! राम!" दोनों पक्षों के बीच काफी देर से बात चित हुई पर मसला ढंग से हल न हो पाया! तब तुम्हारे नाना जी ने विमला और अमोल के समक्ष एक बहुत ही अजीब सी शर्त रखी। "
"अगर विमला यह शादी करती है तो उसे अपने बच्चे और हमारे परिवार से सदा दूर रहना पड़ेगा।" विमला और अमोल को लगा था कि एक बार शादी हो जाए, फिर वे लोग पिता जी को किसी तरह उनको समझा- बुझाकर मना लेंगे और अनिकेत को साथ ले आएंगे। इतने छोटे बच्चे का लालन- पालन माँ के बिना संभव नहीं है, यह बात तुम्हारे नाना जी कभी न कभी तो समझ ही जाएंगे। पर उन दोनों की यह सोच सरासर गलत निकली।
शादी हो जाने के बाद तुम्हारे नाना जी अपनी शर्त से जौ भर भी न हिले! यहाँ तक कि अनिकेत की कॅस्टडी के लिए तुम्हारे माता-पिता कचहरी तक भी गए। मैंने ही उनका केस तैयार किया था! परंतु तुम्हारे नाना जी किसी और ही मिट्टी से बने थे।
उन्होंने अनिकेत को रातोंरात किसी पहाड़ के होस्टल में भिजवा दिया और स्वयं भी शहर छोड़कर कहीं और चले गए थे! केवल अपनी मृत्यु के एक वर्ष पूर्व वे अपने मकान में लौट आए थे! विमला और अमोल ने उन दोनों की बहुत तलाश की।
पर वे कभी न मिले। फिर तुम उनके जीवन में आई। तब तक तुम्हारे माता- पिता ने एक प्रकार से नाना जी के आगे हथियार डाल दिए थे! इसके पश्चाता वे तुम्हारे लालन- पालन में व्यस्त हो गए! पर विमला को इस शादी से भी सुख न मिला। अमोल उसका बहुत ख्याल तो रखता था लेकिन ऐसा लगता था कि जैसे विमला की किस्मत में सुख लिखा ही न था। तुम्हारे नाना जी सही कहते थे शायद , विमला मांगली थी, उसके भाग्य में पति का सुख न लिखा था।
तुम जब दो वर्ष की थी तो एक सड़क दुर्घटना में अचानक अमोल की मृत्यु हो गई। विमला मानसिक रूप से एक बारगी टूट गई थी। परंतु थी तो वह एक माँ ही! और माँ को हिम्मत हारने की इज़ाज़त नहीं होती है।
अतः वह अपने मानसिक दुःख को परे रख कर एक बार फिर उठ खड़ी होने की कोशिश करने लगी! नौकरी हेतु तैयारी तो वह शादी से पहले से ही कर रही थी। इसी दौरान उसकी पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी। अब उसने जी जान एक करके उसी में जुट गई। फिर क्या था,,एक अच्छी सी सरकारी नौकरी उसे जल्द ही मिल गई।
उसने अपने दोहरे मेहनत से घर और दफ्तर दोनों का ही खूब अच्छे से निर्वहन किया। आज से ठीक पाँच वर्ष पहले विमला को अनिकेत का एक पत्र मिला था। उसी से उसे ज्ञात हुआ कि तुम्हारे नाना जी की अब मृत्यु हो चुकी है। और अनिकेत भी अब ननिहाल लौट आया है।
अनिकेत होस्टल में जाकर बुरी संगत में पड़कर बिगड़ गया था। उसने पढ़ाई- लिखाई बीच में ही छोड़ दी थी। और ऐसा हो भी क्यों न? बिन माँ- बाप के साये से पला बच्चा ,, उसके जीवन में प्यार और अनुशासन दोनों,, का ही नितांत अभाव था। जिन्दगी को दिशा देने वाला जब कोई न था उसके पास। तो वह दिशाहीन सा भटकने लगा था-- दर, दर। फिर किसी ने उसे व्यापार करने की आइडिया दी थी। उसने तुम्हारे नाना जी से पैसे लेकर कुछ दिन के लिए एक बिजनेस शुरु किया था,, पर वह उसे चलाने में कामयाब न हो सका।
जब उसकी आयु अठारह भी पार न हुआ था, उसी कम उम्र में उसने एक दिन सुहानी से शादी भी रचा डाली थी। और इस तरह परिवार की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली थी। तमाम आर्थिक संकट में पड़कर उसे अपनी गर्भधारिणी की जब याद आई तो उसने विमला को वह पत्र लिखा था।
विमला उससे जाकर मिल आई। तब तक तुम्हारे नाना जी गुज़र चुके थे। परंतु मृत्यु से पहले उन्होंने अपना घर और तमाम जायदाद अनिकेत के नाम पर कर दी थी। उस धन राशी से अनिकेत ने अपना सारा कर्ज़ा तो चुका दिया था, परंतु उसके पास आय का कोई साधन न बचा था।
किसी तरह तुम्हारे दादा जी का मकान बच गया था, जिस पर दोनों पति- पत्नी रहते थे। तुम कल वहीं गई थी! तुम्हारी माँ ने बड़ी सूझ- बूझ से, सख्त हाथों से अनिरुद्ध को संभाला था। अनिकेत की इस हालत के लिए वह स्वयं को ही कहीं न कहीं जिम्मेदार मानती थी, क्योंकि उसकी पिता की मृत्यु के बाद अनिकेत की सारी जिम्मेदारी उसी पर थी।
आखिर वह माँ थी उसकी! परंतु परिस्थिति के कारण वह इतन विवश थी कि न तो अपने बच्चे को सही परवरिश दे पाई और न ही प्यार। जैसे कि वह तुम्हें दे पाई थी। तुम एक तरह से किस्मतवाली हो! बस,यही है पूरी राम कहानी!"
"बेटे तुम्हारे मन में यह सवाल शायद बहुत बार आया होगा कि आखिर तुम्हारी माँ क्यों चाहती थी कि उनकी नौकरी तुम्हारे बजाय अनिरुद्ध को मिले?"
"वह इसलिए कि तुम्हारी माँ तुम्हें सशक्त और आत्मनिर्भर देखना चाहती थी। वह चाहती थी कि तुम अनुकम्पा आधारित नौकरी के बजाय खुद की काबिलियत से कुछ हासिल करो। तुम्हारे लिए उसके कई सारे सपने थे।
पहले एक अव्वल इंजीनियर बनना फिर उच्चशिक्षा के खातिर वे तुम्हें विदेश भी भेजना चाहती थी। मुझसे भी कई बार उसने कहा था। बेटे, तुम बचपन से ही बहुत होशियार हो, अतः खूब पढ़ो और जो धन राशि तुम्हें तुम्हारी माँ से उत्तराधिकार में मिल रही है, उसका सदुपयोग करो। उसे अपने विकास के लिए व्यय करो। जिन्दगी में बहुत सारी सफलताएँ हासिल करों,यह मेरा आशीर्वाद है तुमको।
तभी तुम्हारी माँ की आत्मा को भी शांति मिलेगी!" रवीन्द्रण अंकल अब अपनी बात समाप्त कर चुके थे। वह कमरे से बाहर जाने के लिए उठ खड़े हुए थे। फाइल में रखी सारी कागज़ातें मायरा के सुपुर्द करते हुए बोले,,
" मैंने सब पेपर्स बना दिए हैं-- किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझे एक काॅल करना,, बेटे,, I am just a call away!"---
उनकी बात अभी समाप्त हो रही थी कि बाहर से बुआ जी ज़ोर- ज़ोर से दरवाज़ें पर दस्तक देने लगी--
" क्या हुआ, बुआ जी?" मायरा अपनी आवाज़ को ऊँची करके पूछी।
" अरे बिट्टो,,, कोई अनिकेत आया है तुझसे मिलने!" " अच्छा बुआ जी! उनको बैठक में बैठने को कहिए,। मैं अभी आती हूँ।" मायरा ने जवाब में कहा।
( अगले भाग में समाप्त)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👏 👏 👏
Interesting
शुक्रिया आप दोनों को🙏
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