तेरे बिना भी क्या जीना-10

कई रोज़ से लिज़ा से संपर्क नहीं हो पा रहा था। अक्सीडेंट के बाद आशीष ने सब बताकर से एक मेल डाला था, पर उसका भी कोई जवाब नहीं मिला। क्या वजह हो सकती है?

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 02 Apr, 2022 | 1 min read

" सुन आशीष,, इस बार तू घर आया है तो कम से कम अपने लिए एक लड़की पसंद कर के जा। शादी भले ही अभी मत करना,, परंतु देख,,सारी सुंदर और सुशील लड़कियाँ पहले ही अपने- अपने ससुराल में जम चुकी हैं। अब ज्यादा देर करेगा ,,फिर तो कोई भी लड़की तुझे मिलने से रही!

" अब तो बत्तीस बरस का तू हो चुका है बेटा,,, और कब तक कुँआरा रहेगा?" दीपा आशाभरी निगाहों से आशीष को देखती हुई बोली।

"देख, तेरे सारे बचपन के संगी- साथियों की शादियाँ हो चुकी हैं, अब तक। जरा सोच,, मेरा भी तो मन करता है कि नहीं,,, कि मरने से पहले अपनी बहू का चेहरा देख लूँ?"

आशीष समझ रहा था कि कल जरूर छोटी कज़िन की लड़की दिखाई कार्यक्रम के अवसर पर उसकी शादी को लेकर फिर से मामा- मासियों के बीच कोई चर्चा चली होगी,, जिसे सुन कर मम्मी बहुत परेशान हो गई । तभी मामा के घर से वापस लौटते ही आशीष के पीछे ऐसे हाथ- धोकर पड़ गई हैं वे।

दीपा कहती गई--

"अपने पापा की तबीयत तो तू देख ही रहा है,, , न जाने हम लोग और कितने दिन जीएँगे,,,,!"

फिर ज़रा रुककर अनुनय के स्वर में दीपा ने अपने पुत्र से कहा,

"सुन बेटा,, मेरी बात,,,,तेरे पापा ने अपने दोस्त राकेश केजरीवाल को एक तरह से जुबान दे रखी है, कि उनकी बेटी कायरा के साथ ही तेरी शादी होगी,,, बस तू हाँ कर दे,,,बेटा! "

अपनी बात मनवाने की मम्मी की यह चिर- परिचित मुद्रा को देख कर आशीष ज़रा असहज हो उठा। उसे पता था कि माँ की इस जिद्द के आगे उसकी कभी एक न चल पाएगी।

इसलिए वह सिर झुकाकर खड़ रह गया। इसके आगे कुछ भी सोच पाने में वह असमर्थ महसूस कर रहा था!

"अच्छा,,,एक बार कायरा से मिल आने में हर्ज़ ही क्या है? आखिर कब तक यूँ कुँवारा फिरता रहेगा? बोल बच्चे? कुछ तो बोल! अपनी मम्मा- पापा की खुशी के लिए इतना भी न करेगा क्या उनका बेटा?"

दीपा ने अब तर्क का सहारा न लेकर भावुकता की आड़ ले ली थी। वे जानती थीं कि तर्क के रास्ते शायद वे अपने बेटे से जीत न पाएगी मगर यह भावुकता का वार अचूक था।मातृत्व का यह श्रेष्ठ हथियार था। जिसके आगे हर एक बेटा आज तक हमेशा अपनी माँ से परास्त हुआ है!

" मम्मा, कल जब से आप घर लौटी हैं ,,, बस एक ही रट लगाई हुई हैं, शादी कर ले,,, शादी कर ले! अरे,,शादी क्या कोई गुड्डे - गुड़िये का खेल है? ,,,जो कभी भी,,, किसी से कर लूँ?!!!" आशीष ने अपने बचाव की एक असफल कोशिश भर की।

" अच्छा, फिर,,, तेरी कोई पसंद है तो बता दे,,, हम उसी से तेरी शादी करवा देंगे,,,,, "कहते हुए दीपा थोड़ी देर के लिए रुक गई। फिर जैसे कुछ याद आया,,, इस तरह वे बोलीं---

" पर देख,,, कोई मेम बहू मत ले आइयो,,, भई,,, इस उम्र में,,, इत्ती अंग्रेजी न कही जाएगी मुझसे,,,, फिर ,कोई विधर्मी बहू हुई तो,,, तेरे घर में कभी पूजा--- हवन आदि तो होने से रहा,,,, हमारे पैर वैर भी न कभी छूएगी,,, वह,,,गाय-बैल का माँस खाएगी,,,,ना बाबा,,,ना,, उसकी रसोई में मैं कभी न खा सकूँगी।" दीपा ने अपने समग्र भविष्यकाल का आकलन कर डाला था वह भी केवल इन दो ही मिनटों में।

आशीष के जुबान पर इस समय एलिज़ाबेथ का नाम लगभग आ ही चुका था। उस बात को छेड़ने के लिए अवसर भी बड़ा सटीक था,,,मगर,,,दीपा का अंतिम वाक्य सुन कर वह रुक गया।

"परंतु ,,मम्मी ने यह क्या कह दिया?!!! पढ़ी- लिखी होने के बावज़ूद भी,,, विधर्मियों के प्रति इनका इतना विद्वेष?!!" आशीष हैरान परेशान था।

बहरहाल, दीपा ने इसके बाद अपना फरमान सुना दिया। आशीष कल कायरा को देखने उसके घर जाएगा। उन्होंने श्रीमती केजरीवाल को फोन करके सब कुछ समझा दिया। उन लोगों को भला क्या आपत्ति होती?!

अगले दिन आशीष मम्मी- पापा के आदेश पर बन-ठनकर चीकू, चीनी और चीकू की धर्मपत्नी सारिका के साथ अपनी शादी के लिए कायरा को देखने उसके घर गया।

वहाँ पहुँचकर सारी बातचीत चीकू और चीनी ने ही की। चीकू की पत्नी सारिका ने भी कायरा से दो- चार प्रश्न पूछे, परंतु आशीष पूरा समय अधोवदन ही बैठा रहा। उसका इस विवाह में कोई भी दिलचस्पी न थी। वह सिर्फ बात रखने के लिए वहाँ पर आया था। इस तरह के बंधन से उसे आजीवन कुँवारा रहना मंज़ूर था!

परंतु कायरा के घर वालों को आशीष बहुत पसंद आ गया था!

आखिर वह पसंद आने लायक ही तो था,,, विदेश में रहनेवाला, खुद का बिज़नेस, मकान,,, गाड़ी,, सब कुछ तो है,,,,उसके पास!! ऐसा दामाद उन्हें चिराग लेकर ढूँढने पर भी नहीं मिलता,,,, और इधर देखो,, सोन- चिड़िया खुद- ब-खुद उनके घर तक चलकर आई थी!

अतः श्रीमान एवं श्रीमति केजरिवाल इस रिश्ते को जोड़ने के लिए पुरजोर कोशिश करने लगे। उन्होंने सबका खूब अतिरिक्त स्वागत- सत्कार किया। वह इतना अधिक था कि चीकू और चीनी को भी एक समय जाने कैसा महसूस होने लगा था!

कायरा अच्छी लड़की थी। उसमें कोई ऐब नहीं था। किसी माता- पिता के लिए अपनी बेटी के लिए बेस्ट दामाद का चयन करना भी गलत न था। लेकिन आशीष को जिस लड़की के साथ जिन्दगी बिताना था,,, वह कायरा ,,, न ,, यह न हो सकती थी!

तभी जब घर आते समय कायरा के पिता ने आशीष का हाथ पकड़ कर लगभग अनुनय के स्वर में कहा --

" बेटा तुम्हारे पापा और मैं बचपन के दोस्त हैं। और अब हम एक रिश्ते में बँध जाना चाहते हैं-- फैसला लेकिन तुम्हारे हाथ में हैं। बेटा,,,मैं तुम्हें इतना यकीन दिलाता हूँ अगर तुम हाँ कह दोगे-- तो कायरा को जरूर अपनी उचित जीवनसंगिनी के रूप में पाओगे-- मेरी बेटी है इसलिए नहीं कह रहा हूँ,,, मगर कायरा जैसी समझदार और संस्कारी लड़की तुम्हें विदेशों में भी नहीं मिलेगी,,,प्लीज़ बेटा,,!"

आशीष बड़ा असहज महसूस करने लगा था।

तब चीकू ने बीच में आकर उसे उबारा। उसने कहा,

" हम घर जाकर ही आपको काॅल करेंगे, अंकल,,, आप चिंता न करें।"

घर आकर आशीष ने फिर से एकबार एलिजाबेथ को काॅल करने की व्यर्थ कोशिश की।

पापा ने आशीष को मोबाइल खरीदने न दिया था। अतः चीकू के मोबाइल से ही उसने लिज़ी का नंबर लगाया था। चीकू अब तक आशीष का सब सीक्रेट जान चुका था। अतः वह भी मुस्कराकर उन दोनों को बात करने का अवसर देकर परे हट गया।

पर बार- बार रिंग होने पर भी लिज़ा ने फोन नहीं उठाया।

पहले भेजे हुए मेल का भी कोई ऊसने कोई जवाब नहीं दिया था। हाँ, अक्सीडेन्ट के समय जब वह अस्पताल में था,,, उन दिनों लिजी के बहुत सारे मेल आए थे,, जिसका जवाब आशीष तब नहीं दे पाया था। लेकिन स्वस्थ्य होते ही सारी बातें बताकर उसने लिज़ी को लंबा सा एक मेल भेज दिया था!

परंतु,,, फिर उस दिन के बाद से उसके साथ कोई संपर्क न हो पाया था।

"क्या लिज़ा बुरा मान गई?!! या कुछ और बात हुई,,, लिज़ा,, ठीक तो है न? हे भगवान,,, अब मैं क्या करूँ?" आशीष सिर पर हाथ धर कर सोचने लगा!

क्रमशः


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Moumita Bagchi

moumitabagchi

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • j.tomar · 2 years ago last edited 2 years ago

    बहुत खूब, बहुत अच्छी कहानी है/

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