Moumita Bagchi
09 Nov, 2020
परछाइयाँ बोलती हैं।
सांय - सायं करती जिन्दगी में
परछाइंयाँ है बोलती,
पीड़ित सी जिन्दगी में
अतीत के किस्से हैं सुनाती!
वह भी कभी लाडली थी,
माँ- बाप ने पलकों पर बिठा रखा था,
अब किस्मत की मारी बेचारी,
बिन दोष की सज़ा है भुगतती!
Paperwiff
by moumitabagchi
09 Nov, 2020
पीड़ितों को पीड़ित न करों।
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